बाल विवाह सामाजिक अभिशाप, इसे रोकने के लिए मिलकर करें प्रयास : जिला न्यायाधीश
Child marriage is a social curse
उप मुख्य संवाददाता, मुजफ्फरपुर जिला विधिक सेवा प्राधिकार, मुजफ्फरपुर और समया शिक्षण एवं विकास संस्थान के संयुक्त तत्वावधान में नालसा के निर्देश पर एएसएचए-एसओपी पर हितधारकों के साथ एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन बुधवार को किया गया. इसका उद्घाटन प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश श्रीमती श्वेता कुमारी सिंह, परिवार न्यायालय के न्यायाधीश पीयूष प्रभाकर, जिला विधिक सेवा प्राधिकार की सचिव श्रीमती जयश्री कुमारी, सिविल सर्जन डॉ अजय कुमार और कवच परियोजना के राज्य प्रतिनिधि अभिजीत डे एवं अनुमंडल पदाधिकारी पूर्वी एवं पश्चिमी तथा बाल संरक्षण पदाधिकारी ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्वलित कर किया. बेटियां तभी सुरक्षित जब विवाह न हो सामाजिक अभिशाप उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश श्रीमती श्वेता कुमारी सिंह ने कहा कि बाल विवाह एक सामाजिक अभिशाप ही नहीं, कानूनी अपराध भी है. उन्होंने जोर देते हुए कहा कि बेटियां तभी सुरक्षित रहेंगी जब विवाह एक सामाजिक अभिशाप नहीं होगा. उन्होंने सभी हितधारकों से बाल विवाह मुक्त समाज बनाने के लिए सरकारी और गैर सरकारी प्रयास को आवश्यक बताया. उन्होंने आगे कहा कि सभी हितधारकों को यह सुनिश्चित करना होगा कि पंचायत में नियमित बाल सभा और बाल कल्याण संरक्षण समिति की बैठक हो तथा मीना मंच और बाल संसद का बाल संरक्षण के मुद्दे पर नियमित प्रशिक्षण हो. राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय आंकड़े दुखद वहीं परिवार न्यायालय के न्यायाधीश पीयूष प्रभाकर ने राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय आंकड़ों को दुखद बताया. उन्होंने कहा कि अगर महिला एवं पुरुषों के अनुपात में एक पक्ष भी कमजोर होता है, तो परिवार और समाज में दुष्प्रभाव पड़ता है. बाल विवाह को पूर्ण रूप से रोकने के लिए सभी हितधारकों को मिलकर प्रयास करना जरूरी है. बाल विवाह को समाप्त करना हमारी जिम्मेदारी जिला विधिक सेवा प्राधिकार की सचिव श्रीमती जयश्री कुमारी ने कहा कि बाल विवाह जैसे कुरीति को समाप्त करना हम सब की जिम्मेदारी है. उन्होंने नालसा (एएसएचए – जागरूकता, समर्थन, सहायता और कार्रवाई) मानक संचालन प्रक्रिया ही बाल विवाह से मुक्ति दिलाएगी. उन्होंने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय बाल विवाह जैसे ज्वलंत मुद्दों को काफी गंभीरता से ले रहा है और इसे रोकने के लिए दृढ़ संकल्पित है. जिला विधिक सेवा प्राधिकरण हितधारक संस्थाओं के साथ समन्वय कर ठोस रणनीति बनाएगा. एनएचएफ़एस -5 के आंकड़े कवच परियोजना के राज्य प्रतिनिधि अभिजीत डे ने कहा कि लड़कियों की शादी अगर 18 के पहले की जाती है तो उनका शारीरिक, मानसिक क्षति पहुंचता है जो समाज के लिए दुखद है. उन्होंने बताया कि बाल विवाह से निपटने के लिए एक संस्थागत ढांचा का निर्माण करना होगा, जिसमें सभी हितधारकों का योगदान महत्वपूर्ण है़ उन्होंने बताया कि एनएचएफ़एस -5 सर्वे के अनुसार बिहार में प्रति 1000 लड़कों पर सिर्फ 685 लड़कियां है जो एक गंभीर सामाजिक लैंगिक भेदभाव के तरफ अग्रसर होता जा रहा है. एनएचएफएस -5 के अनुसार जिन लड़कियों की शादी 2020 से 2024 के बीच हुई उनमें से 20 से 24 वर्ष की लड़कियों की शादी में 32.9 प्रतिशत लड़कियों की शादी 18 वर्ष से कम आयु में हुई है. इस अवसर पर अनुमंडल पदाधिकारी, अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी, जिला बाल संरक्षण इकाई, चाइल्ड लाइन, स्वास्थ्य विभाग तथा पीएलवी के अलावे विभिन्न हितधारकों के साथ समया शिक्षण एवं विकास संस्थान के प्रतिनिधि एवं जिला विधिक सेवा प्राधिकरण कार्यालय के कर्मचारी श्री संजीव कुमार, श्री शिवनाथ प्रसाद, श्री फैयाज अहमद, श्री परवेज आलम, दिनेश कुमार, अजीत कुमार, राजीव कुमार एवं रवि कुमार राजन मौजूद थे.
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