बिहार में सूदखोरों का अपना ‘बैंक’, हर साल 10 हजार करोड़ से अधिक का होता है कारोबार

सूदखोरों के जाल में फंसने वाला नवादा का गुप्ता परिवार इकलौता नहीं है. बिहार में पांच हजार से अधिक सूदखोर तकरीबन 10 हजार करोड़ रुपये की समानांतर बैंकिंग व्यवस्था खड़ी कर चुके हैं. वह भी ब्याज की दर आठ से दस प्रतिशत महीने पर.

By Prabhat Khabar | November 13, 2022 8:10 AM

पटना. सूदखोरों के जाल में फंसने वाला नवादा का गुप्ता परिवार इकलौता नहीं है. राज्य में पांच हजार से अधिक सूदखोर तकरीबन 10 हजार करोड़ रुपये की समानांतर बैंकिंग व्यवस्था खड़ी कर चुके हैं. वह भी ब्याज की दर आठ से दस प्रतिशत महीने पर. इसका अर्थ यह है कि किसी ने 10 हजार का कर्जलिया है, तो उसे हर माह एक हजार सिर्फ सूद देना होगा. 12 महीने तक पैसा नहीं लौटा पाने पर 10 हजार कर्ज के एवज में 12 हजार सूद की अदायगी कर चुके होते हैं. मूलधन 10 हजार की देनदारी अलग रहती है. आधिकारिक तौर पर प्रशासन के पास भले कोई आंकड़ा न हो, पर एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया कि सभी जिलों व कस्बों तक में कर्ज देने वाले मौजूद हैं. इनसे छोटा-बड़ा कर्ज लेने का चलन आम है. लोगों की मजबूरी ऐसे लोगों को उन्हें पहुंचा देती है.

महाजनी प्रथा को रोकने के स्पष्ट कानून

आश्चर्य की बात यह है कि यह सब तब हो रहा जब प्रदेश में महाजनी प्रथा को रोकने के स्पष्ट कानून हैं. सरकार ने सभी जिलों में एक एडीएम स्तर के अधिकारी को नन बैकिंग कारोबार समेत सूदखोरी के इस तरह के कारोबार से लोगों को बचाने की जिम्मेवारी दे रखी है. पटना हाइकोर्ट ने भी भागलपुर और सीमांचल इलाके में चल रहे गुंडा बैंक से जुड़े लोगों पर कारवाई के निर्देश दिये हैं. रखे हैं. कोर्ट के आदेश के बाद भागलपुर इलाके में कई ऐसे कारोबारियों के खिलाफ कार्रवाई की गयी है. सूद के इस धंधे में कई सफेदपोश भी शामिल हैं, जिनके चंगुल में छोटे-छोटे कारोबारी और मध्यवर्गीय परिवार फंसा है.पिछले दिनों नवादा में सूदखोरों की प्रता़ड़ना से ग्रस्त होकर एक ही परिवार के छह सदस्यों ने आत्महत्या कर ली.

कोसी-सीमांचल में गुंडा बैंक

कोसी-सीमांचल व पूर्व बिहार में कभी गुंडा बैंक, तो कभी महादेव बैंक या कभी कुछ और नाम से सूदखोरी का जाल बुना जाता रहा है. कटिहार व भागलपुर के ये सूदखोर अपना अवैध कारोबार झारखंड तक फैला चुके हैं. जब हाइकोर्ट ने संज्ञान लिया तो कई जगहों पर छापेमारी हुई. अभी जांच जारी है. 10 प्रतिशत तक प्रति महीने की दर से ब्याज वसूला जाता है.

ऐसे ब्याज पर पैसे देने वाले अपराध

सरकार ने ऐसे तत्वों पर कार्रवाई के लिए नियम बनाया है. आर्थिक अपराध से जुड़े मामलों में अनुसंधान और कार्रवाई आर्थिक अपराध इकाई करती है. इओयू के लॉ आॅफिसर शशिशेखर सिंह ने कहा कि बिना लाइसेंस के ब्याज पर रुपये उधार देना अपराध है. इसके लिए एसडीएम के यहां से लाइसेंस जारी कराना होता है. ऐसा न कराने पर मनी लाॅन्ड्रिंग एक्ट के तहत कार्रवाई की जा सकती है. इसमें तीन साल की सजा हो सकती है.

सूद पर पैसे की क्या है व्यवस्था

बिहार में बिना लाइसेंस के ब्याज देते समय अनुबंध होता है. सरकार लाइसेंस जारी करते समय ही ब्याज लेने की दर सुनिश्चित कर देती है. इसी दर से कर्ज देते समय अनुबंध किया जाता है. महाजन को लेखा-जोखा रखना होता है.

अधिक ब्याज लेने पर तीन साल की सजा का है प्रावधान

सूदखोरी से जुड़े शोषण को रोकने के लिए 1974 में बिहार साहूकारी अधिनियम बना. सूद के कारोबार को कानून के दायरे में लाया गया. मनी लांड्रिंग कंट्रोल एक्ट.1986 के तहत मनमाना ब्याज वसूलने और शर्तों का उल्लंघन दंडनीय अपराध है. इसमें तीन से सात साल के कारावास काप्रावधान है. अधिनियम में प्रावधान है कि कोई भी व्यक्ति बिना लाइसेंस के सूद का कारोबार नहीं करेगा. लाइसेंस देने का अधिकार रकम के अनुसार सीओए एसडीओ और डीएम को है. लेकिन, कम लोग ही लाइसेंस लेते हैं. 2006 में इस कानून में संशोधन करके इसके दायरे से रिजर्व बैंक में पंजीकृत नन बैंकिंग संस्थानों को अलग किया गया. फिर इस कानून में वर्ष 2016 में संशोधन किया गया, जिसके तहत एनबीएफसी को 15 फीसदी से अधिक ब्याज लेने की छूट दी गयी.

जमीन तक लिखवा लेते हैं महाजन

भागलपुर कोसी-सीमांचल व पूर्व बिहार में गुंडा बैंक व महाजन काफी सक्रिय हैं. यह रैकेट इतना शातिर है कि बिना कोई प्रमाण छोड़े व्यवसायियों व महिलाओं को गिरफ्त में ले लेता है. कटिहार व भागलपुर के ये सूदखोर अपना अवैध झारखंड तक फैला चुके हैं. कटिहार में लगातार हो रही घटनाओं के बाद हाइकोर्ट ने संज्ञान लिया, तो कई जगहों पर छापेमारी हुई. जानकार बताते हैं कि 10 प्रतिशत तक प्रति महीने की दर से ब्याज वसूला जाता है.

ज्यादातर मामले पुलिस तक नहीं पहुंच पाती

भागलपुर के नाथनगर, सबौर व बांका के देवघर से सटे कई इलाकों में नये तरह का शोषण की बात जब तब सामने आती रही हैं. ज्यादातर मामले पुलिस तक नहीं पहुंच पाती. कुछ जगहों पर तो सूद के पैसों से जमीन तक लिखवा लिया जाता है. गुंडा बैंक व महाजन के कर्ज से परेशान कई व्यवसायी शहर से पलायन भी कर चुके हैं. इतना ही नहीं, गुंडा बैंक व महाजन का इतना तगड़ा नेटवर्क है कि कर्ज नहीं देने पर जान से मारने की धमकी तक दे दी जाती है. यहां तक की परिजनों को उठाने की तक की बात कहते है.

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