श्रीराम के जीवनादर्श पर चलकर ही भारत व विश्व का हो सकता है कल्याण: प्रो रंजय

श्रीराम के जीवनादर्श पर चलकर ही भारत व विश्व का हो सकता है कल्याण: प्रो रंजय

By Kumar Ashish | April 17, 2025 6:03 PM

मधेपुरा. टीपी कॉलेज की ओर से विश्वविद्यालय दर्शनशास्त्र विभाग में भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय के अंतर्गत संचालित भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद नई दिल्ली द्वारा प्रायोजित रामचरित मानस में राष्ट्रीय चेतना विषयक संवाद का आयोजन किया गया. कार्यक्रम के मुख्य वक्ता डीएवी कॉलेज कानपुर में दर्शनशास्त्र विभाग के विभागाध्यक्ष सह छत्रपति शाहूजी महाराज विश्वविद्यालय कानपुर में विद्या परिषद के संयोजक प्रो रंजय प्रताप सिंह थे. उन्होंने कहा कि रामचरित मानस हमारा सांस्कृतिक ग्रंथ है व मर्यादा पुरुषोत्तम राजा श्रीराम हमारे सांस्कृतिक महानायक हैं. उनके जीवनादर्श पर चलकर ही भारत व विश्व का कल्याण हो सकता है. भारतीय राष्ट्रीय चेतना व राष्ट्रीय स्वाभिमान के प्रतीक हैं श्रीराम प्रो रंजय ने कहा कि राम शब्द दो शब्दों रा और म के योग से बना है. इसमें रा राष्ट व म मंगल का प्रतीक है. इस तरह श्रीराम संपूर्ण राष्ट्र के अपने मंगलमय कर्तृत्व व व्यक्तित्व से प्रभावित करने वाले राष्ट्रनायक हैं. वे भारतीय राष्ट्रीय चेतना व राष्ट्रीय स्वाभिमान के प्रतीक हैं. उनके द्वारा लोक कल्याण व परोपकारिता पर आधारित रामराज्य एक आदर्श राज्य है, जहां श्रीराम राजा नहीं है, यह देश राष्ट्र नहीं है और जहां श्रीराम निवास करेंगे, वह वन भी राष्ट्र हो जायेगा. हमेशा परिवार, समाज व राष्ट्र की मंगलकामना से युक्त रहे श्रीराम उन्होंने कहा कि श्रीराम भारतीय जन-मानस के प्रेरणास्रोत हैं. वे हमेशा परिवार, समाज व राष्ट्र की मंगलकामना से युक्त रहे हैं. श्रीराम आदर्श पुत्र, भाई, पिता, मित्र व राजा हैं. उनका संपूर्ण जीवन व कार्य सबों के लिए आज भी अनुकरणीय है. उन्होंने बताया कि श्रीराम ने अपने विभिन्न कार्यों के माध्यम से राष्ट्र को सुदृढ़ करने का हरसंभव प्रयास किया. उन्होंने चक्रवर्ती साम्राज्य में युवराज का पद त्यागकर प्रसन्नता के साथ वल्कल वेष धारण कर वनवास का वरण किया. उन्होंने जनजीवन का अवलोकन करते हुए अयोध्या से रामेश्वरम तक पद यात्रा की. यह राष्ट्र को एकजुट करने का एक महत्वपूर्ण प्रयास था. श्रीराम ने शबरी के जूठे बेर खाकर की सामाजिक समरसता की स्थापना प्रो रंजय ने कहा कि श्रीराम ने सभी क्षेत्रों में एक उच्च आदर्श कायम किया. उन्होंने अहिल्या का उद्धार कर, निषादराज के साथ मित्रता का निर्वाह किया. शबरी के जूठे बेर खाकर सामाजिक समरसता की स्थापना की और भारत में रावण के द्वारा चलायी जा रही गतिविधियों का अंत करने के लिए ताड़का, सुबाहु, खर व दूषण का वध किया. उन्होंने कहा कि श्रीराम भारतीय राष्ट्रवाद व विश्व नागरिकता के आदर्श हैं. वे स्नेह-प्रेम, दया, करुणा, सौहार्द, मैत्री आदि मानवोचित गुणों के महासागर हैं. उन्होंने समाज, राष्ट्र व विश्व में सुख-शान्ति व समृद्धि का मार्ग प्रशस्त किया है. उनके बताये रास्ते पर चलकर ही दुनिया के सभी संकटों का समाधान किया जा सकता है. रामचरित मानस को स्कूली शिक्षा का अनिवार्य अंग बनाने की जरूरत मुख्य अतिथि बीएनएमयू के पूर्व कुलपति प्रो ज्ञानंजय द्विवेदी ने कहा कि रामचरित मानस में सुदृढ़ राष्ट्र के लिए आवश्यक सभी तत्व विद्यमान हैं. इस ग्रंथ के नायक श्रीराम ने स्वयं जननी जन्मभूमि स्वर्ग से भी महान बताया है. विशिष्ट अतिथि बीएनएमयू के सामाजिक विज्ञान संकाय के संकायाध्यक्ष प्रो कैलाश प्रसाद यादव ने कहा कि रामचरित मानस की भारतीय समाज व राष्ट्र के चारित्रिक निर्माण में महती भूमिका है. वर्तमान समय में इस ग्रंथ को स्कूली शिक्षा का अनिवार्य अंग बनाने की जरूरत है. श्रीराम ने पूरे भारत को सूत्र में बांधने में निभायी महती भूमिका सम्मानित अतिथि बीएनएमयू के मानविकी संकाय के संकायाध्यक्ष प्रो राजीव कुमार मल्लिक ने कहा कि श्रीराम ने पूरे भारत को सूत्र में बांधने में महती भूमिका निभायी. अतिथि उर्दू विभाग के विभागाध्यक्ष डाॅ मो एहसान ने कहा कि रामचरित मानस में निहित मूल्यों को अपने जीवन में उतारने की जरूरत है. कार्यक्रम की अध्यक्षता विश्वविद्यालय दर्शनशास्त्र विभाग के विभागाध्यक्ष देव प्रसाद मिश्र व संचालन ठाकुर प्रसाद महाविद्यालय मधेपुरा में असिस्टेंट प्रोफेसर डाॅ सुधांशु शेखर किया. वहीं धन्यवाद ज्ञापन रमेश झा महिला महाविद्यालय सहरसा में असिस्टेंट प्रोफेसर डाॅ प्रत्यक्षा राज ने किया. मौके पर असिस्टेंट प्रो धीरेंद्र कुमार, अतिथि व्याख्याता डाॅ कुमार ऋषभ, शोधार्थी सौरभ कुमार चौहान, सुशील कुमार मिश्रा, शशिकांत कुमार, चंदन कुमार, नूतन कुमारी, राजीव कुमार, प्रकाश चंद्र कुमार, दिनेश कुमार यादव, शक्ति सागर, सुरेंद्र कुमार सुमन, बरुण कुमार आदि मौजूद थे.

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