गैर संचारी रोगों से समय पर उपचार ही सबसे प्रभावी बचाव

गैर संचारी रोग (एनसीडी) जैसे कैंसर, मधुमेह, उच्च रक्तचाप, हृदय रोग, अल्जाइमर और मोतियाबिंद आज समाज के लिए बड़ी स्वास्थ्य चुनौती बनकर उभर रहे हैं

By AWADHESH KUMAR | December 4, 2025 6:39 PM

फोटो 4 महिलाओं को चिकित्सीय परामर्श देती स्वास्थ्य कर्मी

-एनसीडी फिक्स्ड डे सर्विस पर जिलेभर में महिलाओं की व्यापक जांच, संभावित मरीजों को दी गई दवा व परामर्श

-सभी सीएचसी-पीएचसी में समीक्षा बैठक, मेडिकल किट उपलब्ध, जांच को लेकर विभाग हुआ और सख़्त

प्रतिनिधि, किशनगंजगैर संचारी रोग (एनसीडी) जैसे कैंसर, मधुमेह, उच्च रक्तचाप, हृदय रोग, अल्जाइमर और मोतियाबिंद आज समाज के लिए बड़ी स्वास्थ्य चुनौती बनकर उभर रहे हैं. समय पर उपचार कराना सबसे प्रभावी उपाय है. इन बीमारियों की गंभीरता इस कारण और बढ़ जाती है कि लोग अक्सर शुरुआती लक्षणों को नज़रअंदाज़ कर देते हैं, जिसके चलते उपचार देर से शुरू होता है और स्थिति जानलेवा हो जाती है. एनसीडी नियंत्रण को लेकर जिला स्वास्थ्य विभाग लगातार सक्रिय है और इसी क्रम में शुक्रवार को जिलेभर में एनसीडी फिक्स डे सर्विस के तहत विशेष जांच अभियान चलाया गया.

महिलाओं की रिकॉर्ड स्तर पर जांच

एनसीडी फिक्स्ड डे सर्विस के दौरान आज किशनगंज जिले में बड़ी संख्या में महिलाओं ने जांच कराई. कैंसर, डायबिटीज, बीपी, सर्वाइकल कैंसर, स्तन जांच तथा अन्य जोखिमों की पहचान के लिए विशेष मेडिकल किट का उपयोग करते हुए स्वास्थ्य कर्मियों ने व्यापक स्क्रीनिंग की. इस दौरान ऐसे संभावित मरीज, जिनमें शुरुआती लक्षण दिखे, उन्हें तुरंत चिकित्सकीय परामर्श के साथ डीवी (दवा वितरण) भी किया गया. कई महिलाओं को भविष्य में होने वाले जोखिमों की जानकारी देकर उन्हें समय-समय पर जांच की आदत अपनाने का आग्रह किया गया.महिलाओं में बढ़ते एनसीडी जोखिम को देखते हुए विभाग ने इस विशेष दिवस को गांव-कस्बों की महिलाओं तक जांच सुविधा पहुँचाने का बड़ा अवसर बताया. यह पहल पिछले महीनों की तुलना में अधिक व्यापक रही, जिससे जिले में पहली बार इतने बड़े स्तर पर महिला-केन्द्रित एनसीडी स्क्रीनिंग दर्ज की गई.

लक्षण हल्के हों तो भी जांच आवश्यक

गैर संचारी रोग पदाधिकारी डॉ. उर्मिला कुमारी ने बताया कि कई महिलाओं में ऐसे शुरुआती संकेत पाए जाते हैं जिन्हें आमतौर पर सामान्य थकान या कमजोरी समझकर अनदेखा कर दिया जाता है. उन्होंने कहा कि एनसीडी का सबसे बड़ा खतरा यही है कि ये धीरे-धीरे शरीर पर प्रभाव डालते हैं और जब तक मरीज को अहसास होता है, तब तक रोग गंभीर रूप ले चुका होता है. महिलाओं में जागरूकता बढ़ाना बेहद जरूरी है, क्योंकि परिवार की जिम्मेदारी निभाते-निभाते वे अपना स्वास्थ्य प्राथमिकता पर नहीं रखतीं.”

स्वास्थ्य संस्थानों में मेडिकल किट उपलब्ध, जांच हुई और तेज

सिविल सर्जन डॉ. राज कुमार चौधरी ने बताया कि 30 वर्ष से अधिक आयु वर्ग के लोगों विशेषकर महिलाओं में एनसीडी का जोखिम अधिक होता है. उन्होंने कहा कि जिले के सभी प्रमुख स्वास्थ्य संस्थानों में ब्लड प्रेशर मशीन, ग्लूकोमीटर, बीएमआई उपकरण, कैंसर स्क्रीनिंग किट और अन्य परीक्षण सामग्री उपलब्ध कराई गई है, जिससे रोग की त्वरित पहचान संभव हो सके.उन्होंने स्पष्ट किया कि एनसीडी के किसी भी जोखिम की पुष्टि होने पर मरीजों को आवश्यक दवाएं और परामर्श पूरी तरह निःशुल्क उपलब्ध कराया जा रहा है.

एनसीडी कार्यक्रम पर समीक्षा बैठक

आज प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पोठिया में सएएनएम के साथ कार्यक्रम की विस्तृत समीक्षा बैठक आयोजित की गई. वहीं जिले के सभी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारियों की अध्यक्षता में एनसीडी कार्यक्रम पर केंद्रित विशेष बैठकें बुलाई गईं, जिनमें फिक्स्ड डे सर्विस की कार्यप्रणाली, जांच की गुणवत्ता, मेडिकल किट उपयोग, रिपोर्टिंग एवं मरीजों की फॉलो-अप प्रक्रिया पर विस्तृत चर्चा हुई.बैठकों में निर्देश दिया गया कि आने वाले हफ्तों में महिलाओं और 30 आयु वर्ग के पुरुषों की स्क्रीनिंग को और तेज किया जाए तथा हर पंचायत में जागरूकता की पहुंच बढ़ाई जाए.

जागरूकता, नियमित जांच और समय पर इलाज—यही है एनसीडी से बचाव

स्वास्थ्य विभाग और जिला प्रशासन ने जोर देकर कहा है कि जागरूकता ही गैर संचारी रोगों से बचाव की सबसे मजबूत रणनीति है. डॉ. उर्मिला ने दोहराया कि जिले की हर महिला और पुरुष को साल में कम से कम एक बार एनसीडी जांच अवश्य करानी चाहिए. देर से जांच करवाना या लक्षणों को सामान्य समझना खुद के स्वास्थ्य के प्रति लापरवाही है, जो भविष्य में भारी खतरा बन सकता है.आज हुए एनसीडी फिक्स्ड डे सर्विस की यह पहल जिले में एनसीडी नियंत्रण की दिशा में एक बड़ा कदम साबित हुई है, जिसने स्पष्ट संकेत दिया है कि स्वास्थ्य विभाग अब एनसीडी के खिलाफ और सख़्ती व तेज़ी से काम कर रहा है. यह प्रयास तब तक प्रभावी रहेगा, जब तक आम लोग स्वयं अपनी सेहत को प्राथमिकता नहीं देंगे.

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