पशु तस्करों के लिए सीमांचल का किशनगंज जिला बना सेफ जोन, बड़े पैमाने पर बंग्लादेश तस्करी कर भेजे जा रहे पशु

सीमांचल का यह इलाका इन दिनों पशु तस्करों के लिए स्वर्ग बना हुआ है. नेपाल और बिहार से पशुओं को खरीदकर तस्कर बांग्लादेश भेज रहे है.

By Prabhat Khabar News Desk | February 19, 2025 8:15 PM

ठाकुरगंज.सीमांचल का यह इलाका इन दिनों पशु तस्करों के लिए स्वर्ग बना हुआ है. नेपाल और बिहार से पशुओं को खरीदकर तस्कर बांग्लादेश भेज रहे है. सूत्रों के अनुसार तस्कर प्रति पशु 10 से 18 हजार रुपये का भारी मुनाफा कमा रहे हैं. इस मामले में सुरक्षा एजेंसियों की सुस्ती से यह अवैध कारोबार रूकने की जगह बढ़ता ही जा रहा है. बताते चले पशु तस्करों के लिए सीमांचल का यह क्षेत्र सबसे सुरक्षित ठिकाना माना जाता है. मवेशी तस्करी के लिए सड़क मार्ग के साथ तस्कर नदियों का सहारा भी लेते है . इसके पीछे अंतरराज्यीय व अंतरराष्ट्रीय तस्करों का एक बड़ा गिरोह काम करता है. इसको रोकने के लिए संघ परिवार के कई संघठनों ने कई बार मांग रखी परंतु ये अनसुनी कर दी गई.

तस्करी का बदलता ट्रेंड

बताते चले इन दिनों मवेशी तस्करों ने अपना ट्रेंड बदल लिया है और वे हरियाणा पंजाब जेसे राज्यों से ट्रकों में भर कर मवेशी सीधे असाम ले जाते है. इस दौरान असाम की किसी डेयरी फार्म में सप्लाई का दावा किया जाता है ,इन वाहनों के पास कागजात भी ऐसे होते है की मवेशी का आवागमन एक बार बैध ही लगता है. जानकार बताते है हरियाणा और यूपी से असम, मिजोरम, मेघायल से होते हुए समुद्र के रास्ते बांग्लादेश तक गो-तस्करी हो रही है.

असम बना गाय तस्करी का हॉट स्पॉट

बताते चले आसाम से बांग्लादेश की करीब 263 किलोमीटर लंबी सीमा लगती है. यही बॉर्डर असम से गायों को बांग्लादेश पहुंचाने का रूट बनता है. असम की लंका और शिवसागर कैटल मार्केट से रोज़ाना गाएं नावों में ठूसकर ले जाई जाती हैं. इन गायों को इंटरनेशनल बॉर्डर पार करवाकरबांग्लादेश के गाय तस्करों को बेच दिया जाता है. इन गाय तस्करों के लिए कुछ भी गलत नहीं है. कुछ भी गैरकानूनी नहीं है. इनके लिए तो बस पैसा ही सबकुछ है. यहां पशु मंडियों में एक गाय की औसत कीमत 55 हजार रुपये तक होती है. असम बॉर्डर पार करवाते ही बांग्लादेश में गाय की कीमत 1 लाख रुपये तक हो जाती है. ऐसा इसलिए है क्योंकि बांग्लादेश में गोमांस की काफी डिमांड है. इसी बात का मुनाफा गौ तस्कर उठाते हैं.

आखिर कैसे होती है तस्करी?

– बिना बाड़ वाले क्षेत्रों के जरिए घुसने की कोशिश.

– पुलों के नीचे बिना बाड़ वाले क्षेत्रों से जानवरों को भेजना.

– लीवर के इस्तेमाल से जानवरों को भेजना, जिसे झूला तकनीक भी कहते हैं.

– फट्टा या बांस तकनीक.

– बाड़ काटने के लिए विशेष तौर पर डिजाइन किए गए वायर कटर का इस्तेमाल.

– कूरियर के तौर पर बच्चों और महिलाओं का इस्तेमाल.

बांग्लादेश की भूमिका

– बांग्लादेश पशु तस्करी को एक तरह से अपराध नहीं मानता.

– पशु व्यापार बांग्लादेश की सरकार के लिए एक तरह से राजस्व का स्रोत है.

– एक पशु तस्कर बांग्लादेश में प्रवेश के बाद, प्रति पशु 500 टका कस्टम ड्यूटी देता है और तस्कर से व्यापारी बन जाता है.

– बांग्लादेश से पशुओं के मांस का निर्यात होता है और ये भी देश की आय का जरिया है.

– पशुओं पर आधारित चमड़ा जैसी कई और उद्योग भी बांग्लादेश में चलते हैं.

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