खजरैठा की सिद्ध शक्तिपीठ मां काली की महिमा अगम अपार , मां करती हैं मन्नतें पूर्ण
गंगा के कटाव में विलीन होने के बाद 1957 में नयाटोला खजरैठा में हुआ है मंदिर का स्थापना
गंगा के कटाव में विलीन होने के बाद 1957 में नयाटोला खजरैठा में हुआ है मंदिर का स्थापना परबत्ता. प्रखंड के खजरैठा पंचायत के नयाटोला खजरैठा गांव में अवस्थित सिद्ध शक्तिपीठ मां काली की महिमा अपार है. भक्तों की मान्यता है कि मां काली सभी की मुरादें पूर्ण करती हैं. मां काली की अराधना में भक्त जनों का सैलाब उमड़ पड़ती है. काफी बड़ी संख्या में मां के भक्तगण दूर दराज से मां काली का दर्शन करने हेतु पहुंचते हैं. काली पूजा की तैयारी जोरों पर है. मूर्ति कलाकार द्वारा मां काली की प्रतिमा का निर्माण कार्य युद्ध स्तर से कर रहा है. काली पूजन के साथ-साथ खजरेठा में मेला देखने के लिए दूर दराज से लोग पहुंचते हैं. तीन दिनों तक मंदिर परिसर सहित आसपास खचाखच भीड़ लगी रहती है. मंदिर का इतिहास मां काली पूजा समिति के नया टोला खजरैठा के व्यवस्थापक बालकृष्ण चौधरी बताते हैं कई सौ वर्ष पूर्व मां काली की पूजा सर्वप्रथम गांव के ही हंसु ठठेरी ने प्रारंभ किया था. जो अब तक बरकरार है. यह मंदिर पहले लक्ष्मीपुर में था. एक बार गंगा के कटाव में विलीन हो गया. पुनः 1957 में नया टोला खजरैठा गांव में मंदिर का स्थापना किया गया. काली पूजा में चार दिनों तक दर्जन भर विद्वान पंडितों द्वारा वैदिक मंत्रोउच्चारण से वातावरण भक्ति मय हो जाता है. खजरैठा गांव में अवस्थित विशाल काली मंदिर के निर्माण में ग्रामीणों का सहयोग रहा है. ग्रामीण बताते हैं कि मंदिर निर्माण में ग्रामीणों ने खुलकर सहयोग किया है. जो समाज में एकता, अखंडता एवं संकल्प का प्रतीक है. मंदिर का भव्यता लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती हैं. पूजन पद्धति का विशेष महत्व खजरैठा काली मंदिर में पूजन पद्धति का विशेष महत्व है. मंदिर के मुख्य पंडित डॉ प्राण मोहन कुंवर, मनोज कुंवर, मालीक झा, आचार्य शंभु नाथ ठाकुर एवं ग्रामीणों से मिली जानकारी के मुताबिक 20 अक्टूबर की देर रात्रि अमावस्या को मां काली की प्रतिमा को पिंडी पर विराजमान किया जाएगा. एवं दर्शन के लिए मंदिर का पट आमलोगों के दर्शन को लेकर खोल दिया जाएगा. प्राण प्रतिष्ठा के बाद निशा पूजन के साथ छागड की बलि दी जाएगी. शास्त्रों के मुताबिक अमावस्या की कालरात्रि मां काली की पूजन के लिए उत्तम समय हैं। वही 21 एवं 22 अक्टूबर को विशेष पूजन का कार्य किया जाएगा. एवं 23 अक्टूबर की शाम में मां काली की प्रतिमा को गंगा नदी में विसर्जित किया जाएगा. इन चार दिनों तक छागड की बलि दी जाएगी. इस दौरान दूर दराज से भक्त अपनी मनोकामनाएं के लिए मां की दरबार में आते हैं. मंदिर प्रागंण में दर्जनों की संख्या में कुंवारी एवं ब्रह्माण भोजन करवाने की परंपरा है.
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