पशुशाला को ठंड से बचाने की पुख्ता व्यवस्था करें, चिकित्सक
पशुशाला को ठंड से बचाने की पुख्ता व्यवस्था करें, चिकित्सक
कटिहार जिले में इन दिनों तापमान तेजी से गिर रहा है. सुबह, शाम ठंड का प्रभाव साफ महसूस किया जा रहा है. मानव शरीर के साथ-साथ पशु भी इस मौसम से गंभीर रूप से प्रभावित होते हैं. पशुपालकों के लिए यह मौसम चुनौती भरा होता है. ठंड में पशुओं की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है. वे जल्दी बीमार पड़ते हैं. असर दूध उत्पादन पर भी पड़ता है. ऐसे मौसम में पशुपालन विभाग ने एडवाइजरी जारी की है. यदि समय पर पशुपालक अपने पशुओं के लिए उचित प्रबंधन नहीं किया गया तो दूध उत्पादन में 20 से 30 प्रतिशत तक गिरावट आ सकती है. ठंड का सबसे अधिक प्रभाव दुगधारू पशुओं पर भी पड़ता है. जिला पशुपालन पदाधिकारी डॉ प्रमोद कुमार मेहता बताते हैं कि गाय व भैंस जैसी दुधारू प्रजातियों को सर्दी का सबसे अधिक असर होता है. शरीर के तापमान को सामान्य रखने में ही ऊर्जा खर्च हो जाती है. जिस कारण दूध बनने की प्रक्रिया कमजोर पड़ती है. ठंड में खुरपका मुंहपका, निमोनिया, जुकाम, बुखार, थनैला और फ्रॉस्ट बाइट जैसी समस्याएं अधिक देखने को मिलती हैं. नवजात बछड़ों के लिए यह मौसम और खतरनाक साबित होती है. ठंड और शीतलहर के दौरान पशुओं की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है. वे संक्रमण का शिकार जल्दी होते हैं. कई बार रात की ठंडक या नमी से ही पशु बीमार पड़ जाते हैं. ऐसे मौसम में पशुपालकों को सावधानी दोगुनी रखनी चाहिए. विभाग ने जारी की एडवाइजरी क्या करें जिला पशुपालन विभाग ने पशुपालकों को सावधान करते हुए 17 बिंदु वाली विस्तृत एडवाइजरी जारी की है. जिसमें पशुओं की सुरक्षा, आहार और देखभाल को लेकर महत्वपूर्ण सुझाव दिए गए हैं. मौसम पूर्वानुमान पर नजर रखें, सर्द हवाओं और तापमान में अचानक गिरावट पर तुरंत पशुशाला की सुरक्षा व्यवस्था मजबूत करें. पशुशाला को ठंड से बचाने की पुख्ता व्यवस्था करें. दरवाजों व खिड़कियों को बोरा, प्लास्टिक या तिरपाल से ढकें, पशुशाला में ठंडी हवा या नमी प्रवेश न करें. फर्श पर मोटी परत में पुआल या सूखा घास बिछाएं, पशुओं को फ्रॉस्ट बाइट से बचायें. अत्यधिक ठंड में पशु के कान, थन और पैरों में सुन्नपन या सूजन आने का खतरा अधिक होता है. ऐसे में बिछावन हमेशा सूखा रखें. रात में हल्की गर्माहट का इंतजाम करें. ऊर्जा युक्त आहार दें, खलली, गुड़, पीठा, दाना, नमक खनिज मिश्रण देना बहुत उपयोगी है. ठंड में पशुओं का चयापचय बढ़ जाता है. इसलिए अतिरिक्त आहार जरूरी होता है. गुनगुना पानी पिलाएं, ठंडा पानी न दें. गुनगुना पानी पाचन को बेहतर करता है. पशुओं को गर्म रखता है. नवजात बछड़ों को विशेष सुरक्षा, बछड़ों को बोरी, कपड़े या मोटे पुआल से ढककर रखें. उन्हें ठंडी जमीन पर न बैठने दें, बछड़ों में निमोनिया का खतरा सबसे अधिक रहता है. पशुशाला में नियमित सफाई और कीटाणु रहित वातावरण की व्यवस्था करें. बीमार पशु को तुरंत अलग कर दें और चिकित्सक से जांच करायें. गर्मी देना लाभकारी है, लेकिन आग को बहुत पास न रखें ताकि दुर्घटना न हो. पशुओं को खुले मैदान में न छोड़ें, शीतलहर और ठंडे हवाओं में पशुओं को बाहर छोड़ना गंभीर स्वास्थ्य जोखिम बढ़ाता है.
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