मखाना विकास बोर्ड की स्थापना के लिए उपयुक्त है कटिहार
मखाना विकास बोर्ड की स्थापना के लिए उपयुक्त है कटिहार
– जोर पकड़ने लगी है मखाना विकास बोर्ड की स्थापना के लिए मांग कटिहार केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की ओर से बजट सत्र के दौरान बिहार में मखाना विकास बोर्ड की स्थापना की घोषणा किये जाने के बाद मखाना के विकास को लेकर लोगों में उम्मीद जगी है. इस बीच बिहार में मखाना विकास बोर्ड की स्थापना को लेकर पिछले कुछ दिनों से सियासत गरमा गयी है. कोई जनप्रतिनिधि मखाना बोर्ड की स्थापना दरभंगा में करना चाहते है तो कोई जनप्रतिनिधि पूर्णिया में मखाना बोर्ड की स्थापना करने की मांग कर रहे है. इस बीच कटिहार के विभिन्न वर्गों के लोगों ने भी कटिहार में मखाना विकास बोर्ड की स्थापना की मांग करने लगे है. यहां के लोगों का कहना है कि बिहार में सर्वाधिक मखाना उत्पादन कटिहार में होता है. स्थानीय लोगों एवं कृषि विशेषज्ञों की मानें तो पहले मखाना उत्पादन बिहार के दरभंगा में अत्यधिक होता था. पिछले कुछ वर्षों से दरभंगा व अन्य जिलों को पछाड़ते हुए कटिहार मखाना उत्पादन में नंबर वन पर है. कटिहार मखाना विकास बोर्ड की स्थापना के लिए की हर दृष्टि से काफी उपयुक्त है. स्थानीय विशेषज्ञों एवं जनप्रतिनिधियों व आम किसानों की माने तो कटिहार जिला में तीन-तीन राष्ट्रीय उच्च पथ है. साथ ही जिले के कई क्षेत्र में राज्य उच्च पथ भी है। बिहार का सबसे बड़ा रेलवे जंक्शन कटिहार है. कटिहार पूर्वोत्तर भारत का मुख्य द्वार माना जाता है. साथ ही पश्चिम बंगाल एवं झारखंड सहित अन्य राज्यों की ओर जाने के लिए कटिहार सुगम सड़क मार्ग उपलब्ध है. इसलिए कटिहार मखाना विकास बोर्ड की स्थापना के लिए न केवल उपयुक्त है. बल्कि हर दृष्टिकोण से उचित है. स्थानीय किसानों, विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि कटिहार जिले के जनप्रतिनिधियों को मखाना विकास बोर्ड की स्थापना को लेकर केंद्र व राज्य सरकार से ठोस पहल करने की मांग करनी चाहिए. कटिहार में हो मखाना बोर्ड की स्थापना: सांसद फोटो 23 कैप्शन- सांसद तारिक अनवर सांसद तारिक अनवर ने प्रभात खबर के साथ बातचीत में कहा कि मखाना का मुख्य रूप से उत्पादन बिहार, पश्चिम बंगाल और असम में किया जाता है. विशेष रूप से बिहार, देश के कुल मखाना उत्पादन में 85 प्रतिशत से अधिक योगदान देता है. मिथिला और सीमांचल क्षेत्र इस उत्पादन में अग्रणी हैं. जिनमें से कटिहार एवं इसके आसपास के सीमांचल क्षेत्र के जिले लगभग 62 प्रतिशत मखाना के उत्पादन करता है. पूर्ववर्ती यूपीए सरकार के कार्यकाल में, आईसीएआर-नेशनल रिसर्च सेंटर फॉर मखाना दरभंगा को आईसीएआर-रिसर्च कॉम्प्लेक्स फॉर ईस्टर्न रीजन (पटना) के प्रशासनिक नियंत्रण में लाया गया था. इसलिए बिहार के सभी क्षेत्रों तथा देश के तमाम अन्य राज्यों के हितों को ध्यान में रखते हुए बिहार में मखाना बोर्ड की स्थापना व इसका मुख्यालय कटिहार में स्थापित किया जाना चाहिए. मखाना विकास बोर्ड के लिए कटिहार हर तरह से उपयुक्त है. कटिहार में मखाना बोर्ड की स्थापना हो इसके लिए वह केंद्रीय कृषि मंत्री को पत्र भी लिखे हैं. मखाना बोर्ड के लिए कटिहार उपयुक्त: भुवन फोटो 24 कैप्शन- भुवन अग्रवाल चैंबर ऑफ कॉमर्स के महासचिव भुवन अग्रवाल ने बातचीत में कहा कि उत्तर-पूर्वी राज्यों और पश्चिम बंगाल के लिए संपर्क कटिहार न केवल बिहार, बल्कि असम, पश्चिम बंगाल और अन्य पूर्वोत्तर राज्यों के किसानों के लिए भी एक महत्वपूर्ण व्यापारिक केंद्र है. यहां मखाना विकास बोर्ड की स्थापना होने से बिहार के अन्य जिलों के साथ पड़ोसी राज्य झारखंड, पश्चिम बंगाल व दुसरे देशों के के लिए फायदेमंद है. कटिहार में मखाना बोर्ड का मुख्यालय होने से इन राज्यों के किसानों को भी उचित मार्गदर्शन और संसाधन उपलब्ध कराये जा सकेंगे. कटिहार में आवागमन के बेहतर सुविधा: निर्मल फोटो 25 कैप्शन- नर्मल विश्वास मखाना की खेती करने वाले प्रगतिशील किसान निर्मल विश्वास ने कहा कि कटिहार एक प्रमुख रेलवे जंक्शन है और यहां से देश के विभिन्न हिस्सों तक आवागमन की सुविधा उपलब्ध है. जिससे मखाना उद्योग के विकास को बल मिलेगा. कटिहार में राष्ट्रीय उच्च पथ 31, राष्ट्रीय उच्च पथ 81 व राष्ट्रीय उच्च पथ 1231 ए (फोरलेन) है. साथ ही जिले के कई हिस्सों में राज्य उच्च पथ भी है. ऐसे में मखाना विकास बोर्ड की स्थापना कटिहार में होनी चाहिए. इसके लिए यहां के जनप्रतिनिधियों को भी आवाज उठाना चाहिए. साथ ही प्रधानमंत्री व अन्य सक्षम प्राधिकार को पत्र लिखना चाहिए. मखाना किसानों को मिलेगा फायदा: राजाराम फोटो 26 कैप्शन- राजाराम महतो जदयू के जिला महासचिव राजाराम महतो ने कहा कि मखाना उत्पादन के प्रति किसानों की रुचि बढ़ने लगी है. यहां के किसान तालाब और खेत में मखाना की खेती करते है. अगर कटिहार में मखाना बोर्ड के मुख्यालय की स्थापना होती है तो इन दोनों श्रेणियों के किसानों को तकनीकी, वैज्ञानिक, और व्यापारिक सहायता उपलब्ध होगी. साथ ही आसपास के जिलों व पड़ोसी राज्यों के किसानों को भी सहूलियत होगी.
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