19 साल बाद भी दो आंगनबाड़ी केंद्रों पर नौनिहालों को आने-जाने के लिए रास्ता नहीं
पसाई के वार्ड एक व दो के केंद्र के पास बंधे रहते हैं गाय-भैंस
पसाई के वार्ड एक व दो के केंद्र के पास बंधे रहते हैं गाय-भैंस रामपुर. रामपुर प्रखंड मुख्यालय से तीन किमी की दूरी पर पसाई गांव के वार्ड नंबर एक और वार्ड नंबर दो में उत्क्रमित मध्य विद्यालय के आवंटित भूमि पर अलग-अलग भवन का निर्माण करा दो आंगनबाड़ी केंद्र का संचालन किया जाता है. आंगनबाड़ी केंद्र वार्ड दो का वर्ष 2007 से और वार्ड एक का वर्ष 2015 से भवन बना केंद्र संचालित किया जा रहा है. लेकिन, लगभग 19 साल बाद भी दोनों आंगनबाड़ी केंद्र का अपना कोई रास्ता नहीं है. वार्ड दो की सेविका धर्मावती देवी व वार्ड एक की सेविका शारदा कुमारी दोनों का कहना है कि प्रतिदिन बच्चे गिर कर मिट्टी से ड्रेस लिटाये केंद्र पर आते हैं. रास्ता नहीं होने से अगल बगल के लोगों द्वारा गाय-भैंस बांधी रहती है, उसी रास्ते से बच्चे केंद्र तक आते है. इतना ही नहीं नौनिहालों के साथ कब पशुओं से हादसा हो जाये, कुछ कहा नहीं जा सकता. आंगनबाड़ी केंद्र के नौनिहालों व सेविका सहायिका के आने-जाने के लिए कोई रास्ता ही नहीं है, जिससे बच्चे बरसात तो बरसात अन्य मौसम में भी जिस रास्ते से केंद्र आते-जाते है कीचड़ से सना रहता है और गिर कर घायल भी हो जाते हैं. केंद्र पर आने वाले बच्चों कि उम्र तीन से छह साल के बीच रहती है. बाल विकास परियोजना या अन्य योजना के माध्यम से सरकार द्वारा केंद्र चलाये जाने का भरपूर प्रयास जारी है, लेकिन रास्ते के अभाव में नौनिहालों का भविष्य अंधकारमय है, जिस रास्ते से बच्चे केंद्र जाते हैं, वह कीचड़ से सना है. इ कारण बहुत से नौनिहाल आंगनबाड़ी केंद्र जाना ही नहीं चाहते या चाह कर भी नहीं जा पाते हैं. आंगनबाड़ी केंद्र के रास्ते के लिए गांव के कुछ लोगों का कहना है कि केंद्र का रास्ता भवन जो बना है, उसके पीछे से है, जबकि कुछ लोगों का कहना है कि भवन का रास्ता आगे से है. इस कशमकश में 19 साल बाद भी केंद्र का अपना रास्ता नहीं बन सका है. पसाई पंचायत में प्रखंड मुख्यालय भी पड़ता है, लेकिन पंचायत के आंगनबाड़ी केंद्र पर ही नौनिहालों को आने-जाने के लिए अब तक कोई रास्ता नहीं बन सका है. दोनों केंद्र कि सेविका सहायिकाओं द्वारा जनप्रतिनिधि, वार्ड, मुखिया सहित संबंधित विभाग व प्रखंड मुख्यालय तक मौखिक व लिखित गुहार लगायी गयी है, लेकिन 19 साल बाद भी इस समस्या का समाधान नहीं हुआ है. इससे छोटे छोटे बच्चों को केंद्र तक आने में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है.
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