जिले में पुरूष नसबंदी की डगर है कठिन, जागरूकता के बावजूद लोग नहीं आ रहे आगे

= अप्रैल से अक्तूबर तक 1735 महिलाओं का बंध्याकरण, मात्र 30 पुरुषों ने कराया नसबंदी

By VIKASH KUMAR | November 24, 2025 4:41 PM

फोटो 4 परिवार नियोजन पखवाड़ा के तहत सदर अस्पताल में आयोजित प्रशिक्षण में शामिल स्वास्थ्य कर्मी = अप्रैल से अक्तूबर तक 1735 महिलाओं का बंध्याकरण, मात्र 30 पुरुषों ने कराया नसबंदी वर्ष अप्रैल से अक्तूबर तक टारगेट में 40 प्रतिशत बंध्याकरण व केवल 21 प्रतिशत नसबंदी = 21 नवंबर से 12 दिसंबर तक शुरू हुआ जिले में पुरुष नसबंदी पखवारा परिवार नियोजन में पुरुषों की भागीदारी महिलाओं की अपेक्षा बहुत ही कम भभुआ सदर. परिवार नियोजन में साझेदारी, अब होगी पुरुषों की सक्रिय भागीदारी … यह स्लोगन अस्पताल सहित अधिकतर चौक चौराहों पर परिवार नियोजन के प्रति लोगो खासकर पुरुषों को जागरूक करने की ओर साफ-साफ इशारा कर रहा हैं. लेकिन नसबंदी को लेकर आज भी जिले के अधिकतर पुरुष उदासीन बने हैं या यूं कहा जाये कि परिवार नियोजन के मामले में पुरुषों की भागीदारी महिलाओं की अपेक्षा बहुत ही कम हैं, जो देश की बढ़ती जनसंख्या की गति पर विराम लगाने में रोड़ा साबित हो रहा है. जबकि, हर साल स्वास्थ्य विभाग कैमूर की ओर से पुरुष नसबंदी और परिवार नियोजन पखवारा मनाया जाता है. लेकिन, तमाम स्लोगन और जागरूकता के बाद भी देश की जनसंख्या स्थिरीकरण में जिले के पुरुष आगे नहीं बढ़ रहे हैं. जिले के स्वास्थ्य विभाग के जारी आंकड़े भी इसकी गवाही करते है कि जिले के स्वास्थ्य संस्थानों में इस वर्ष अप्रैल से अक्तूबर तक 4389 महिला बंध्याकरण का टारगेट था, तो पुरुषों के नसबंदी का टारगेट मात्र 98 था. लेकिन, इसके बावजूद अक्तूबर तक जहां 1735 महिलाओं यानी कुल 40 प्रतिशत ने अपना बंध्याकरण करवाया, तो वहीं केवल 30 पुरुषों यानी 21 प्रतिशत का ही नसबंदी हो सका है. गौरतलब है कि महिला बंध्याकरण में फिलहाल कैमूर जिले की रैंकिंग पूरे बिहार में 17वें नंबर पर है. अब यह विडंबना ही है कि 21 वीं सदी में दुनिया कहां से कहां जा रही है. लेकिन, आज भी जिले के पुरुष रूढ़ीवादी सोच के चलते नसबंदी से दूर भाग रहे हैं. पुरुष नसबंदी का कड़वा सच यह है कि तीन साल में इस जिले में नसबंदी करवाने वाले पुरुषों की संख्या दो सौ भी नहीं पहुंच सकी है, जबकि इसके विपरीत बंध्याकरण करवाने वाली महिलाओं की संख्या 20 हजार से अधिक है. जिला मुख्यालय में कार्य कर रही आशा शांति देवी बताती हैं कि नसबंदी के लिए गांव के पुरुष बात करना भी पसंद नहीं करते हैं. यहां तक कि महिलाएं भी अगर स्वेच्छा से बंध्याकरण करवाना चाहती हैं, तो उनको भी अपने पति और सास से सहमति लेनी पड़ती है. इसलिए अभी भी बहुत सारी समस्याएं सामने आती है. इसके चलते नसबंदी या बंध्याकरण के लिए महिलाओं के साथ-साथ उनके परिवार की भी काउंसलिंग करनी पड़ती है. जबकि, गांव की महिलाएं भी दो बच्चे होने के बाद भी परिवार नियोजन अपनाने से कतराती हैं. = सरकार की प्रोत्साहन राशि भी नहीं आ रहा काम डीएचएस के एमएनइ मधुसूदन कुमार ने बताया कि नसबंदी के प्रति पुरुष सजग हों, इसके लिए सरकार की ओर से प्रोत्साहन राशि की भी व्यवस्था की गयी है, लेकिन इसके बावजूद जिले के पुरुषों में सजगता नहीं बढ़ पा रही है. दरअसल, सरकार की ओर से प्रति नसबंदी कराने वाले व्यक्ति को 3000 रुपये देने की व्यवस्था की गयी है, तो वहीं मोटीवेटर को भी 400 रुपये दिये जाते हैं. लेकिन इस सब के बाद भी नसबंदी के हर साल के सालाना आंकड़ों में कोई खास इजाफा होता दिखायी नहीं पड़ रहा है. = पूर्व की भ्रांतियों से उबर नहीं पा रहे पुरुष नसबंदी के प्रति पुरुषों की उदासीनता के पीछे का कारण गलत भ्रांतियां हैं, जिससे पुरुष मानसिकता अभी भी उबर नहीं पायी है. सदर अस्पताल उपाधीक्षक डॉ विनोद कुमार ने बताया कि अधिकतर पुरुषों के बीच यह बात फैली हुई है कि नसबंदी कराने के पश्चात व्यक्ति नपुंसक हो जाता है, लेकिन इस बात में कहीं से भी कोई सच्चाई नहीं है, जबकि अब तो नसबंदी का तरीका भी इतना सहज हो गया है कि इसमें कोई चीर-फाड़ की भी जरूरत नहीं पड़ती है. = स्वास्थ्य विभाग नहीं है संवेदनशील और सक्रिय जिले में नसबंदी के प्रति पुरुषों में भी चेतना आये, इसके लिए स्वास्थ्य विभागों के अधिकारी व कर्मचारी सक्रिय नहीं हैं. हरेक साल स्वास्थ्य विभाग बिहार सरकार की ओर से पुरुष नसबंदी के टारगेट दिये जाते हैं, लेकिन सरकार के दिये टारगेट कभी भी शत प्रतिशत पूरे नहीं हो पाते. इस मामले में सिविल सर्जन डॉ चंदेश्वरी रजक ने बताया कि जागरूकता सहित कई कार्यक्रम चलाये जाते हैं, लेकिन महिलाओं के अपेक्षा पुरुष आज भी इसके प्रति जागरूक नहीं हो सके हैं. सीएस ने कहा कि पखवारे के दौरान लोगों को पुरुष नसबंदी के आसान तरीकों को समझाते हुए इसमें तेजी लाने का प्रयास किया जा रहा है.

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