अधौरा पहाड़ी क्षेत्रों के विद्यालयों में नहीं है बिजली व शौचालय की सुविधा

KAIMUR NEWS.जिले में दनवासियों के गढ़ के रूप में पहचान रखने वाला अधौरा प्रखंड क्षेत्र का जंगली व पहाड़ी इलाका अब भी मूलभूत सुविधाओं से वंचित है.

By VIKASH KUMAR | December 3, 2025 4:58 PM

बुनियादी सुविधाओं के अभाव में जूझ रहा पूरा इलाका, पीने के पानी की भी नहीं है व्यवस्था

बारिश के दिनों में कई स्कूलों की भवनों से टपकता है पानी

छोटी नदियाें व पहाड़ी दुर्गम रास्ते को पार कर शिक्षक किसी तरह पहुंचते हैं विद्यालय

प्रतिनिधि,भभुआ नगर.

जिले में दनवासियों के गढ़ के रूप में पहचान रखने वाला अधौरा प्रखंड क्षेत्र का जंगली व पहाड़ी इलाका अब भी मूलभूत सुविधाओं से वंचित है. पहाड़ी और दुर्गम इलाकों में बसे विद्यालयों तक पहुंचने में शिक्षकों को जिन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, वे स्थिति की गंभीरता को उजागर करता है. दरअसल जिला का गठन हुए 34 वर्ष पूरे हो चुके हैं और बिहार में विकास की रफ्तार भी तेजी से बढ़ी है. लेकिन, अधौरा के पहाड़ी गांव अब भी बुनियादी सुविधाओं की समस्या से जूझ रहे हैं. इन क्षेत्रों में सबसे बड़ी परेशानी बुनियादी ढांचे की कमी है. कई स्कूलों में बिजली, स्वच्छ पेयजल और शौचालय जैसी अनिवार्य सुविधाएं कर नहीं हैं. कई स्कूलों के भवनों की स्थिति जर्जर है, जहांं बारिश के मौसम में स्थिति और अधिक भयावह हो जाती है. बारिश की दिनों में छत से पानी टपकने से पढ़ाई प्रभावित होती है और बच्चों को किसी सुरक्षित स्थान पर बैठाकर शिक्षण कार्य कराना पड़ता है.

इस क्षेत्र से तबादला कराने की मजबूरी भी महसूस करते हैं शिक्षक

दुर्गम रास्ते भी शिक्षकों की परेशानी को कई गुना बढ़ा देते हैं. पहाड़ चढ़ना, संकीर्ण पगडंडियों से गुजरना और कई जगहों पर छोटी नदियाें को पार कर स्कूल पहुंचना. यहां के शिक्षकों के दिनचर्या का हिस्सा है. बंधवानी में कार्यरत शिक्षक राधेश्याम सिंह सहित कई शिक्षकों ने बताया कि सुबह समय पर स्कूल पहुंचने के लिए उन्हें घर से बहुत जल्दी निकलना पड़ता है, जबकि शाम को घर लौटते रात हो जाती है. इन जोखिम भरे रास्तों के कारण कई शिक्षक इस क्षेत्र से तबादला कराने की मजबूरी भी महसूस करते हैं. खासकर महिला शिक्षकों के लिए यह स्थिति और भी अधिक असहज हो जाति है. जबकि, मोबाइल नेटवर्क की समस्या भी वर्षों से यहां बड़ी चुनौती बनी हुई है. हालांकि, विगत छह महीनों में कुछ स्थानों पर नेटवर्क की समस्या में सुधार हुआ है. जिससे शिक्षक और छात्रों को ऑनलाइन कार्यों में कुछ राहत मिली है. इसके बावजूद कई गांव अबतक नेटवर्क विहीन हैं, जिसके कारण शिक्षा विभाग के डिजिटल कार्य, ऑनलाइन उपस्थितियां, एवं अन्य जरूरी प्रक्रिया समय पर पूरी कर पाना कठिन हो जाता है. शिक्षकों की कमी भी एक गंभीर मुद्दा है. पहाड़ी और कठिन परिस्थितियों वाले विद्यालयों में पदस्थापित होने से कई शिक्षक कतराते हैं, जिसके परिणामस्वरूप एक ही शिक्षक को कई कक्षाओं की जिम्मेदारी उठानी पड़ती है. कुछ स्थानों पर स्कूल के बंद होने पर भी शिक्षक स्थानीय स्तर पर बच्चों को पढ़ाने के लिए वैकल्पिक व्यवस्था करते हैं, ताकि उनकी पढ़ाई बाधित न हो.

शिक्षको का तबादला अधिक और पोस्टिंग कम होने से कई विद्यालय हुए प्रभावित

अधौरा प्रखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में शिक्षकों की कमी लगातार होती जा रही है. हाल के महीनों में यहां से लगभग ढाई सौ से 300 शिक्षकों का तबादला कर दिया गया, जबकि सिर्फ 40 से 50 नये शिक्षकों की पोस्टिंग बिहार के अन्य जिलों से हुई है. ऐसे असंतुलन के कारण कई विद्यालयों में शिक्षकों की संख्या बेहद कम हो गयी है. कुछ स्कूलों की स्थिति यह है कि एकल शिक्षक के भरोसे ही चल रहे हैं, मूलभूत सुविधाओं की कमी जैसे सड़क, संचार, पानी और बिजली अभाव के कारण अधिकांश शिक्षक यहां लंबे समय तक रहकर सेवा देने से बचते हैं और तबादले की फिराक में रहते हैं.

बीपीएससी प्रथम एवं द्वितीय चरण में शिक्षकों की हुई नियुक्ति से कुछ हद तक समस्या हुई थी दूर

गौरतलब है कि बीपीएससी प्रथम और द्वितीय चरण में नियुक्त शिक्षकों की अधौरा प्रखंड में हुई पोस्टिंग से कुछ समय के लिए शिक्षकों की कमी दूर हुई थी, लेकिन अब बड़े पैमाने पर हुए तबादलों से स्थिति फिर से गंभीर हाे गयी है. हाल के तबादलों के बाद कई विद्यालयों में शिक्षकों की संख्या घट गयी है जबकि कुछ स्कूल एकल शिक्षक पर निर्भर हैं. कठिन भौगोलिक परिस्थितियां और बुनियादी सुविधाओं की कमी के कारण शिक्षक अधौरा में टिक नहीं पा रहे, जिससे शिक्षा व्यवस्था पर सीधा असर पड़ रहा है.

कहते हैं जनप्रतिनिधी

इस संबंध में अधौरा प्रखंड पूर्व जिला परिषद और वर्तमान दिघार पंचायत के मुखिया भोलानाथ सिंह सहित कई लोगों ने कहा कि चैनपुर विधानसभा क्षेत्र से लगातार जीतने वाले विधायक- मंत्री के पद पर रहे हैं. लेकिन वनवासियों के विषय में कोई भी विचार नहीं किया गया, जिसका नतीजा है कि आज भी विकास की रोशनी इन पहाड़ी क्षेत्रों तक पूरी तरह नहीं पहुंच पायी है. सड़क, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी मूलभूत सुविधाओं में सुधार की अब भी असीमित संभावनाएं यहां बाकी हैं. वहीं स्थानीय निवासियों व शिक्षकों का भी मानना है कि यदि सरकार इन क्षेत्रों को विकास की मुख्यधारा से जोड़ने के लिये विशेष पहल करे, तो यहां के बच्चों का भी भविष्य उज्ज्वल हो सकता है.

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