नशे के नये-नये तरीके नाबालिगों व युवाओं को ले जा रहा अंधकार में

बिहार में शराबबंदी हुए लगभग पांच साल से अधिक हो गये और जिले के शहरी या देहाती इलाकों में शराब पीने या बेचने का शोर भी अब मद्धिम पड़ने लगा है. लेकिन, चिंताजनक बात यह है कि शराबबंदी के बाद से जिले में नशे का तरीका बदल गया है.

By Prabhat Khabar | April 15, 2024 10:10 PM

भभुआ सदर. बिहार में शराबबंदी हुए लगभग पांच साल से अधिक हो गये और जिले के शहरी या देहाती इलाकों में शराब पीने या बेचने का शोर भी अब मद्धिम पड़ने लगा है. लेकिन, चिंताजनक बात यह है कि शराबबंदी के बाद से जिले में नशे का तरीका बदल गया है. क्योंकि, शराबबंदी के बाद विकल्प के तौर पर अब नशे के आदि लोग सहित नाबालिग बच्चे हेरोइन, गांजा, व्हाइटनर, सनफिक्स, फोर्टबीन सूई आदि का उपयोग कर रहे हैं. शहर में इन दिनों इसके सबसे अधिक शिकार युवा व किशोर हो रहे हैं. इसके चलते कई युवकों व खासकर किशोरों के परिजन भी काफी परेशान हैं. शराब से कहीं ज्यादा घातक इस नशीले पदार्थ की लत के जद में आ चुके कई किशोर या युवा चलते-फिरते आपको सड़कों पर आराम से मिल जायेंगे और तो और इसी वजह से शहर सहित जिले में आपराधिक मामलों में भी नाबालिगों की संलिप्तता बढ़ती जा रही है. हाल फिलहाल ही मोहनिया में सुई से नशे की पूर्ति करनेवाले आठ लोगों को पुलिस ने पकड़ा था. जहां तक बात करें तो ऐसा कोई जुर्म नहीं है, जिसमें नाबालिग शामिल नहीं है. बाइक व मोबाइल चोरी व छिनतई से लेकर हिंसा और चोरी जैसे संगीन मामलों में भी नाबालिगों की बढ़ती तादाद केवल पुलिस प्रशासन के लिए ही नहीं, बल्कि सभी सभ्य समाज के लिए चिंता का विषय बनने लगा है. पटेल कॉलेज के प्रोफेसर जगजीत सिंह कहते है कि नाबालिगों का आपराधिक घटनाओं में संलिप्त होना बेहद गंभीर मामला हो गया है. पारिवारिक व सामाजिक बदलाव का असर बच्चे के नाजुक दिलों-दिमाग पर भी हो रहा है. परिवार में उचित देखभाल की कमी व नैतिक शिक्षा नहीं मिलने से भी बच्चे नशे व अपराध की ओर कदम बढ़ा रहे हैं, जिसके चलते नाबालिगों में अक्रामकता की प्रवृत्ति तेजी से बढ़ती जा रही है. यही कारण है कि अभिभावकों, मनोवैज्ञानिकों व समाजशास्त्रियों के लिए यह मुद्दा चिंता का विषय बन गया है. वहीं, समाजसेवी अजय सिंह ने कहा कि जिले में बाल अपराधियों की संख्या में जबर्दस्त वृद्धि के आंकड़े किसी भी सभ्य समाज के लिए शुभ संकेत नहीं हैं, जिनके कंधों पर देश और राज्य की बागडोर टिकी है, उनका आपराधिक वारदात में संलिप्त हो जाना एक गंभीर मामला है. ऐसे में अभिभावकों व परिजनों के साथ साथ समाज व प्रशासन की भी जिम्मेदारी बढ़ जाती है. बच्चों के रहन-सहन व उनके मित्रों के संबंध में जानकारी रखना जरूरी है. = किशोरों के भटकने के हैं कई कारण जिले में किशोरों के आपराधिक कांडों में शामिल होने के कई कारण हैं. इसमें फिल्में व टेलीविजन खासकर मोबाइल की भूमिका की अनदेखी नहीं की जा सकती है. कई प्रकार के कार्यक्रमों में जिस तरह से अपराध और हिंसा करनेवालों को नायक के रूप में दिखाया जाता है, उसका बच्चों व किशोरों के दिमाग पर बुरा असर होता है. उपभोक्तावादी संस्कृति भी इसका एक पहलू है. शाॅर्टकट में पैसा कमाने की लालसा और नशे की लत इस समस्या का प्रमुख कारण है. आज चमक-दमक सभी नैतिक मूल्यों पर हावी हो रहा है. इसके कारण बच्चों में हर वस्तु को पाने की लालसा बढ़ गयी है. बच्चों की मांगें जब पूरी नहीं होती हैं, तो मासूम बच्चे गुमराह होकर नशा व अपराध की ओर अग्रसर हो जाते हैं. अक्रामक प्रवृत्ति व अपराध के लिए कुछ हद तक हार्मोन भी उत्तरदायी है. बच्चों का शारीरिक विकास समय से पूर्व से हो रहा है. इस कारण बच्चों में हार्मोन की सक्रियता अतीत के मुकाबले कहीं ज्यादा बढ़ गयी है. नित्य अनुपात से हार्मोन के अधिक सक्रिय होने से भी आक्रामक प्रवृत्ति बच्चों में तेजी से बढ़ रही है.

Next Article

Exit mobile version