सेटेलाइट से निगरानी व आइडी ब्लॉक करने के बाद भी किसान जला रहे पुआल

खेतों में फसल का अवशेष जलाने से बढ़ रहा वायु प्रदूषण, बंजर हो जायेगी धरती

By VIKASH KUMAR | December 12, 2025 3:40 PM

खेतों में फसल का अवशेष जलाने से बढ़ रहा वायु प्रदूषण, बंजर हो जायेगी धरती # किसान मित्र कीट हो रहे है विलुप्त, बढ़ती जा रही है खाद व कीटनाशक की मांग # मोतियों के भाव बिक रहा भूसा-कुट्टी, पशुपालन से दूरी बना रहे हैं लोग मोहनिया सदर. खेतों में पुआल जलाने से किसानों को रोकने के लिए विभाग सेटेलाइट के अक्षांशर व देशांतर के माध्यम से निगरानी रख रहा है. पुआल जलने वाले खेतों के किसानों को चिह्नित कर उनके आइडी ब्लॉक करने, उन किसानों को कृषि विभाग से मिलने वाले सभी तरह के अनुदान से वंचित किया जा रहा है. यहां तक कि वैसे किसानों पर एफआइआर भी दर्ज करायी जा रही है, इसके बावजूद किसान हार्वेस्टर से धान कटनी के बाद खेतों में धान के पुआल को जलाने से बाज नहीं आ रहे है. जिन किसानों के अंदर कानून का भय व समाज के प्रति लोकलाज है वो रात के अंधेरे में और जिनको प्रशासन का डर व समाज से कोई सरोकार नहीं है, वे दिन के उजाले में ही बेहिचक खेतों में फसल अवशेष जला रहे हैं. प्रशासन की रोक के बावजूद जिस तरह खेतों में कुछ किसान पराली जलाने से परहेज नहीं कर रहे है, जिससे तेजी से वायु प्रदूषण बढ़ रहा है. इससे सांस संबंधित रोगियों की संख्या में तेजी से इजाफा हो रहा है. खेतों में फसल का अवशेष जलाने से 100 प्रतिशत नेत्रजन, 25 प्रतिशत फास्फोरस, 20 प्रतिशत पोटाश और 60 प्रतिशत सल्फर का नुकसान होता है. इतना ही नहीं खेतों में पराली जलाने से धीरे-धीरे खेतों की उपजाऊ भूमि कंकरीली होने लगती है. मिट्टी का ऊपरी सतह ही उपजाऊ होती है, जिसकी उर्वरा शक्ति के नष्ट होने से पानी सोखने की क्षमता कम होती जाती है. इससे दिनों दिन उपज की मात्रा घटने लगती है और किसान को पैदावार का प्रतिशत बढ़ाने के लिए अधिक खाद व कीटनाशक दवाओं का उपयोग करना पड़ता है. पुआल जलाने से धरती की उर्वरा शक्ति हो रही कम खेतों की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने वाले केंचुआ सहित अन्य कीट जो किसानों के मित्र कहे जाते हैं, वह भी पुआल जलाने से तेजी से नष्ट हो रहे हैं. इसका नतीजा है कि दिनों दिन धरती की उर्वरा शक्ति क्षीण होती जा रही है. एक समय था जब लोग खेतों में खाद और कीटनाशक दवाओं का प्रयोग नहीं के बराबर करते थे और खेतों में फसल अवशेष नहीं जलाया जाता था, उस समय खेतों में बड़ी संख्या में केंचुआ पाया जाता था. आज स्थिति यह है कि खेतों में अधिक कीटनाशक का प्रयोग होने और पुआल जलाये जाने से किसान मित्र कीट विलुप्त होते जा रहे हैं. इसे किसानों के लिए एक बड़ी चिंता का विषय माना जा रहा है. बहुत से किसान अपने भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ाने के लिए केंचुआ पालन भी कर रहे हैं. जितना तेजी से धरती की उर्वरा शक्ति कम होती जा रही है, किसान अधिक उपज प्राप्त करने के लिए उतना ही अधिक डीएपी, यूरिया सहित कई तरह की खाद और कीटनाशक दावों का उपयोग कर रहे हैं. जबकि, प्रशासन जैविक खाद के प्रयोग पर बल दे रहा है. # निम्न और मध्यम वर्गीय लोग पशुपालन से हो रहे दूर धान व गेहूं की फसल की कटाई हार्वेस्टर से करने के बाद जिस तरह तेजी से किसान अपने खेतों में फसल अवशेष को जला रहे हैं वह काफी चिंता का विषय है. फसलों के अवशेष जलाये जाने से गेहूं का भूसा और धान के पुआल की कुट्टी की काफी कमी हो रही है. इसका नतीजा है कि ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले अधिकांश निम्न और मध्यम वर्गीय लोग पशुपालन से दूर होते जा रहे हैं. अक्तूबर माह में तो भूसा और कुट्टी की कीमत सातवें आसमान पर पहुंच जाती है. यहां तक की भूसा 1100 रुपये प्रति क्विंटल की दर से भी बिकने लगता है. खेतों में धान और गेहूं के अवशेष जलाये जाने से भूसा और पुआल की कुट्टी काफी महंगी होती जा रही है. सरकार पशुपालन को बढ़ावा देकर बेरोजगारी को कम करना चाह रही है. लेकिन पशुओं का चारा के अभाव में लोग पशुपालन से दूर होते जा रहे हैं. भूसा व कुट्टी मोतियों के भाव बिक रहा है. # क्या कहते हैं बीएओ इस संबंध में पूछे जाने पर प्रखंड कृषि पदाधिकारी भृगुनाथ सिंह ने कहा कि सैटेलाइट सिग्नल के माध्यम से खेतों में पुआल जलाने वालों की निगरानी की जा रही है. पुआल जलाने वाले किसानों का आइडी भी ब्लॉक किया जा रहा है. साथ ही उनको कृषि विभाग से मिलने वाली सभी सुविधाओं से वंचित किया जा रहा है. पुआल जलाने वाला कोई भी किसान कार्रवाई से नहीं बच सकता है.

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