होली में वनस्पतियों की पूजा करते हैं आदिवासी समुदाय के लोग

सनातन परंपरा में नव वर्ष का शुभारंभ रंगों के त्योहार होली मनाने के साथ आरंभ होता है. भारत के अलग-अलग क्षेत्रों में होली मनाने की भी अलग-अलग परंपरा है.

By AMIT KUMAR SINH | March 10, 2025 10:11 PM

गुलशन कश्यप, जमुईसनातन परंपरा में नव वर्ष का शुभारंभ रंगों के त्योहार होली मनाने के साथ आरंभ होता है. भारत के अलग-अलग क्षेत्रों में होली मनाने की भी अलग-अलग परंपरा है. कहीं होलिका दहन और उसके बाद रंगों से होली खेलने की सामान्य परंपरा है, तो वहीं आदिवासी समुदाय में फूलों के साथ होली मनाने की परंपरा है. फाल्गुन पूर्णिमा पर आदिवासी समुदाय पेड़ों व फूलों की पूजा करते हैं. उसके बाद गांव के लोग एक जगह एकत्र होकर गीत गाकर झूमते हुए फगुआ का जश्न मनाते हैं. जिले के खैरा थाना क्षेत्र के सकदरी गांव में आदिवासी जनजाति समूह में होली को बाहा पर्व के रूप में मनाया जाता है. हालांकि अलग-अलग आदिवासी क्षेत्रों में इस त्योहार को मनाने का समय भी अलग-अलग होता है. परंतु सगदरी गांव के लोग होली के एक सप्ताह के भीतर ही बाहा पर्व मनाते हैं और इसे अलग तरीके से सेलिब्रेट करते हैं. सगदरी गांव के लोगों ने बताया कि इस त्योहार के दौरान वनस्पति की पूजा करने की परंपरा वर्षों पुरानी हैं. इस दौरान विभिन्न पेड़ पौधे व अलग-अलग प्रजातियों के फूल के पौधों की पूजा की जाती है. गांव के पुरोहित जिन्हें मांझी बाबा जंगल जाकर सखुआ के फूल तोड़ कर लाते हैं, फिर उसी फूल से पौधों की पूजा की जाती है. इसके बाद मांझी बाबा गांव के सभी घरों में जाकर लोगों के बीच सखुआ का फूल वितरित करते हैं. फिर सभी लोग अपने कान पर सखुआ का फूल पहनकर पूरे दिन घूमते हैं.

पारंपरिक वेश-भूषा में करते हैं नृत्य

बाहा पर्व के दौरान युवक युवती पारंपरिक वेशभूषा में नृत्य करते हैं. फिर एक दूसरे के ऊपर पानी डालकर बाहा यानी होली मनाते हैं. ग्रामीणों ने बताया कि जनजाति समुदाय के लोग पानी डालकर ही एक दूसरे को होली मनाते हैं. खासकर देवर भाभी, जीजा साली एक दूसरे को पानी डालकर होली खेलते हैं. उन्होंने बताया कि संथाली, उरांव, मुंडाली, माल पहाड़िया जैसे विभिन्न जनजाति के लोग अलग-अलग तरीके से होली मनाते हैं.

उरांव जनजाति में सेमल की डाल जलाने की परंपरा

उरांव जनजाति में होली मनाने अलग परंपरा है. देशभर में लोग होलिका दहन के दौरान लकड़ियों को इकट्ठा कर उसमें आग लगाकर उसकी पूजा करते हैं, जबकि उरांव जनजाति के लोग सेमल के पौधों में आग लगाकर उसे तलवार से काटते हैं. गांव के पुरोहित सेमल की डालियों में पुआल व घास फूस लपेटकर उसमें आग लगाते हैं. गांव के अन्य लोग तलवार या दूसरे किसी धारदार हथियार से सेमल की उस डाली को काटते हैं. इस दौरान मुर्गे की बलि देने की भी परंपरा वर्षों पुरानी है. गौरतलब है कि जमुई जिले में विभिन्न आदिवासी जनजाति के लोग निवास करते हैं और इस समुदाय में होली मनाने की अपनी-अपनी परंपरा है.

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