लुप्त हो रही कव्वाली की परंपरा को कव्वालों ने किया जीवंत
बरौली. शहर में आस्था और गंगा-यमुनी तहजीब के लिए प्रसिद्ध काली पूजा अपने परवान पर है. दीपावली की रात में ही माता काली की पूजा होती है और यह पूजा संपन्न होने के साथ ही शहर का माहौल पूरी तरह भक्तिमय हो गया है.
बरौली. शहर में आस्था और गंगा-यमुनी तहजीब के लिए प्रसिद्ध काली पूजा अपने परवान पर है. दीपावली की रात में ही माता काली की पूजा होती है और यह पूजा संपन्न होने के साथ ही शहर का माहौल पूरी तरह भक्तिमय हो गया है और काली पूजा के अवसर पर लगने वाला मेला भी अपने परवान पर है. यह मेला अभी दो दिन और चलेगा. मेले के अवसर पर आयोजित होने वाले कार्यक्रम भी अपने शबाब पर है. कार्यक्रम में पहले दिन आजमगढ़ से पहुंचे लोकनर्तक फरी कलाकार अपनी कला का बेहतरीन प्रदर्शन कर दर्शकों को दांतों तले अंगुली दबाने पर मजबूर करते रहे. वहीं रात में कव्वाली का रंगारंग कार्यक्रम शुरू हुआ, जो सुबह आठ बजे तक चलता रहा. बनारस से पहुंची कव्वाला नाज साबरी तथा कोलकाता से पहुंचे कव्वाल दिलावर साबरी ने अपनी गायन कला से सुबह तक दर्शकों को टस से मस नहीं होने दिया. अंत में जब सुबह के आठ बज गये तो आयोजक मंडल ने कव्वालों को कार्यक्रम समाप्त करने की बात कही तो दर्शक अपने अपने घर गये. कार्यक्रम की सबसे अच्छी बात ये रही कि लुप्त हो रही कव्वाली की परंपरा को जीवित किया गया तथा लोगों ने भरपूर आनंद लिया. अभी यह मेला दो दिन चलेगा. आज पूरे दिन एक बार फिर से फरी लोकनर्तक अपनी कला का प्रदर्शन एक बार और करेंगे तथा रात में भव्य सांस्कृतिक कार्यक्रम तथा अगली रात देवी जागरण का कार्यक्रम होगा, जिसमें दर्शकों की भारी भीड़ उमड़ेगी. पूजा समिति के अध्यक्ष नारद चौधरी ने बताया कि करीब 37 वर्षों से काली पूजा की परंपरा चली आ रही है. यह मेला अभी दो दिन और चलेगा.
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