Chhath Puja: छठ महापर्व को यूनेस्को की विरासत सूची में शामिल कराने की तैयारी तेज
Chhath Puja: लोक आस्था से विश्व धरोहर तक, अब छठ महापर्व के लिए बनेगा विस्तृत डॉजियर, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर होगा दस्तावेजीकरण, बिहार का छठ महापर्व अब सिर्फ लोक आस्था का पर्व नहीं रहेगा, बल्कि विश्व धरोहर का हिस्सा बनने की राह पर है.
Chhath Puja: बिहार की सांस्कृतिक पहचान और लोक आस्था का सबसे बड़ा पर्व छठ अब अंतरराष्ट्रीय मंच पर अपनी पहचान दर्ज कराने की तैयारी में है. कला, संस्कृति एवं युवा विभाग ने छठ को यूनेस्को की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत सूची में शामिल कराने की दिशा में कदम बढ़ा दिए हैं.
इसके लिए एक विस्तृत दस्तावेज तैयार किया जा रहा है, ताकि इस पर्व की ऐतिहासिक, समाजशास्त्रीय, कलात्मक और धार्मिक विविधता को पूरी दुनिया के सामने रखा जा सके. इस काम में इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज (INTACH) को नॉलेज पार्टनर नामित किया गया है.
दस्तावेजीकरण करने की कवायद
इंटैक (INTACH) के सहयोग से छठ पर एक विस्तृत दस्तावेज तैयार होगा. इस दस्तावेज में छठ पर्व के उद्गम, ऐतिहासिक संदर्भ, समाजशास्त्रीय महत्व और सांस्कृतिक विविधताओं को समाहित किया जाएगा. दिल्ली स्थित इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के दृश्य विभाग की अध्यक्ष डॉ. ऋचा नेगी और उनकी टीम इसमें मुख्य भूमिका निभाएंगी.
इंटैक, बिहार चैप्टर के कन्वेनर भैरव लाल दास ने जानकारी दी कि इस दिशा में 11 अक्टूबर 2025 को पटना चैप्टर एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सेमिनार आयोजित करेगा, जिसमें छठ पर अकादमिक और सांस्कृतिक विमर्श होगा.
अंतरराष्ट्रीय मंच पर छठ की प्रस्तुति
इस सेमिनार में देश-विदेश के विद्वान शामिल होंगे. खासतौर पर अमेरिका के शिकागो स्थित नॉर्थ वेस्टर्न यूनिवर्सिटी के मूर्तिशास्त्री प्रो. डॉ. रॉब लिन रोथ समेत कई अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञ इसमें भाग लेंगे. इसके अलावा, इस साल भी कार्तिक छठ के अवसर पर इंटरनेशनल फोटो सैलॉन का आयोजन किया जाएगा. इसमें भारत सहित कई देशों के फोटोग्राफर छठ की परंपराओं, पूजा-अर्चना और घाटों की तस्वीरों को साझा करेंगे. इससे न केवल दस्तावेज़ीकरण को बल मिलेगा बल्कि छठ की छवि को वैश्विक मंच पर और मजबूती मिलेगी.
इतिहास और समाजशास्त्र का दस्तावेजीकरण
छठ पर्व को यूनेस्को की सूची में शामिल कराने के लिए इसके इतिहास और समाजशास्त्रीय पहलुओं का गहन अध्ययन किया जा रहा है. बिहार के अलग-अलग हिस्सों में यह पर्व किस तरह से मनाया जाता है, इसकी विविध परंपराओं को संकलित किया जा रहा है.
इंटैक बिहार के सदस्य डॉ. शिवकुमार मिश्र ने बताया कि छठ से जुड़े सूर्य की प्रस्तर मूर्तियों का दस्तावेज़ीकरण कर फोटोग्राफ और विवरण के साथ एक कॉफी टेबल बुक प्रकाशित करने की योजना है. इसके अलावा, पद्मभूषण लोकगायिका शारदा सिन्हा के गाए भोजपुरी, मैथिली, मगही, अंगिका और बज्जिका भाषाओं में प्रचलित पारंपरिक गीतों का भी संकलन किया जा रहा है. अब तक 61 छठ गीतों को संग्रहित किया गया है.
वैदिक परंपरा और सामाजिक महत्व
बिहार संग्रहालय के पूर्व निदेशक डॉ. उमेश चंद्र द्विवेदी का मानना है कि छठ पर्व की जड़ें वैदिक और पौराणिक परंपरा में गहराई से जुड़ी हुई हैं. यह न केवल लोक आस्था का प्रतीक है, बल्कि स्वास्थ्य, कृषि और सामाजिक समरसता से भी गहरे तौर पर जुड़ा है.
डॉ. द्विवेदी के अनुसार, यूनेस्को की विरासत सूची में शामिल कराने के लिए डॉजियर में बेहद सटीक और प्रामाणिक जानकारी होना जरूरी है, क्योंकि यूनेस्को के विशेषज्ञ हर बिंदु की बारीकी से जांच करते हैं. उनका मानना है कि यह पर्व केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक नहीं, बल्कि सामूहिकता, प्रकृति और मानव के रिश्ते का भी अनूठा उदाहरण है.
छठ और संस्कृति का संगम
छठ पर्व के दौरान जब घाटों पर लाखों लोग एक साथ डूबते सूरज और उगते सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते हैं, तो यह नज़ारा अद्वितीय होता है. लोकगायन, पारंपरिक गीत, पूजा की थाली, सूप में सजाए गए फल और पूरी व्यवस्था अपने आप में एक जीवंत सांस्कृतिक धरोहर है.
यही वजह है कि यूनेस्को की सूची में छठ को शामिल कराने की कवायद न केवल बिहार, बल्कि पूरे भारत के लिए गौरव का विषय होगी.
वैश्विक धरोहर बनने की दिशा में
डॉजियर तैयार होने और सेमिनारों, दस्तावेज़ीकरण तथा अंतरराष्ट्रीय आयोजनों के बाद यह डॉजियर भारत सरकार के माध्यम से यूनेस्को को सौंपा जाएगा. इसके बाद विशेषज्ञों की जांच और मूल्यांकन प्रक्रिया होगी. अगर सब कुछ योजना के अनुसार हुआ, तो छठ जल्द ही यूनेस्को की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत सूची का हिस्सा बनेगा.
Also Read: Bihar News: पटना को 1056 करोड़ की सौगात,अब पटना में नहीं फंसेंगे जाम में
