बिहार के चंपारण में केले के तने से बनेगा फाइबर धागा

सच्चिदानंद सत्यार्थीमोतिहारी : केला के पुराने व कचरा समझ फेंक दिये जाने वाले पौधों से भी अब किसानों को आमदनी होगी. केला के तना (छिलका) से फाइबर धागा बनाने की तैयारी हो रही है. सदर प्रखंड के गोढ़वा में बनाना (केला) फाइबर मशीन लगायी जा रही है. अगले माह से इसका उत्पादन शुरू होगा. सहकार […]

By Prabhat Khabar Print Desk | January 17, 2019 9:06 AM

सच्चिदानंद सत्यार्थी
मोतिहारी :
केला के पुराने व कचरा समझ फेंक दिये जाने वाले पौधों से भी अब किसानों को आमदनी होगी. केला के तना (छिलका) से फाइबर धागा बनाने की तैयारी हो रही है. सदर प्रखंड के गोढ़वा में बनाना (केला) फाइबर मशीन लगायी जा रही है. अगले माह से इसका उत्पादन शुरू होगा. सहकार भारती के सदस्य पवन श्रीवास्तव ने बताया कि गोढ़वा, बसवरिया, रूलही और पतौरा मठिया गांव में केले की खेती ज्यादा होती है.

इन गांवों के किसानों से केले के बेकार पौधे लिये जायेंगे. फल काटने के बाद किसान केले के पौधे को बेकार समझ फेंक देते हैं. किसानों को प्रति पौधा 10 रुपये दिये जायेंगे. 200 पेड़ से करीब 60 किलो फाइबर धागा बनेगा. गोढ़वा में चार कट्ठा जमीन में बनाना (केला) फाइवर मशीन की स्थापना कल्पवृक्ष बनाना प्रोसेसिंग एंड प्रोडक्ट सहकारिता द्वारा की जायेगी. पूरी परियोजना की लागत करीब 50 लाख रुपये है. यह बिहार की पहली फाइबर धागा उत्पादन इकाई होगी. केला के उत्पादन वाले अन्य इलाकों में भी फाइबर धागा मशीन लगा किसानों की आय बढ़ाने की योजना सहकार भारती द्वारा बनायी गयी है.

कचरा से बनेगा जैविक रसायन व कंपोस्ट : केले का छिलके से प्रोसेसिंग के दौरान निकलनेवाले पानी से जैविक रसायन बनेगा. इसके लिए 40 दिन की प्रक्रिया पूरी करनी होगी. बाजार में इसका मूल्य करीब 700 रुपये प्रति लीटर होगा और कचरा को सड़ाकर केमिकल के माध्यम से कंपोस्ट बनाया जायेगा. कंपोस्ट चार रुपये किलो बिकेगा.

बैग व शर्ट के बनेंगे कपड़े : केले के छिलका को फाइबर मशीन द्वारा प्रोसेसिंग कर फाइबर धागा बनेगा. धागे से शर्ट के कपड़े, बैग, छोटा आकर्षक टोकरी आदि का निर्माण होता है. जोलगांव महाराष्ट्र में इन वस्तुओं का निर्माण हो रहा है.

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