buxar news : गैंगरेप के पांच दोषियों को मिली उम्रकैद व 30-30 हजार रुपये अर्थदंड की सजा
buxar news : पीड़िता के बयान में बदलाव के बाद भी कोर्ट ने सुनायी सजाराज्य सरकार को 15 लाख रुपये पीड़िता को अलग से मुआवजा के रूप में देने का आदेश
buxar news : बक्सर कोर्ट. जिला एवं अपर सत्र न्यायाधीश 6 सह विशेष न्यायाधीश पॉक्सो अमित कुमार शर्मा की अदालत ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में गैंगरेप के पांच दोषियों को आजीवन कारावास की सजा सुनायी.
न्यायालय ने सभी पर 30-30 हजार रुपये का अर्थदंड भी लगाया है. कोर्ट ने इतनी कम राशि को पीड़िता के लिए समुचित नहीं पाते हुए अपने अधिकार का उपयोग करते हुए राज्य सरकार को 15 लाख रुपये अलग से मुआवजा के रूप में देने का आदेश भी सुनाया है. दुष्कर्म के मामले को लेकर इसे अब तक का सबसे महत्वपूर्ण फैसला बताया जा रहा है, जहां पीड़िता ने अभियुक्तों के विरुद्ध अपनी गवाही को बाद में बदल दिया था, बावजूद न्यायालय ने सजा सुनायी है.दो वर्ष में आ गया न्यायालय का फैसला
घटना इटाढ़ी थाना कांड संख्या 280 /2023 से संबंधित है, जहां 19 दिसंबर, 2023 को अपनी नाबालिग पुत्री को घर पर छोड़कर उसकी मां छोटे बेटे के लिए दवा लाने के लिए बक्सर गयी हुई थी, जब वह दवा लेकर वापस घर लौटी, तो अपनी बेटी को घर में नहीं पाया था. उक्त मामले को लेकर थाने में प्राथमिकी दर्ज करायी गयी थी. घटना के तीन दिनों के बाद पुलिस ने छापेमारी कर 22 दिसंबर 2023 को पीड़िता को बरामद किया था, जिसमें शिव विलास राम उर्फ टेलर मास्टर, राहुल कुमार, विनय कुमार उर्फ बिलही, गोविंद सिंह एवं रोशन कुमार को दुष्कर्म में संलिप्त पाये गये थे. सभी अभियुक्तों को कठोर आजीवन कारावास की सजा सुनायी गयी है.गवाही बदलने के बावजूद भी सुनायी गयी सजा
मामले की सुनवाई पॉक्सो न्यायालय में किया गया. पहले अभियुक्त की गिरफ्तारी के समय पीड़िता ने न्यायालय के समक्ष सभी अभियुक्तों को दुष्कर्म में दोषी बताया था. वहीं अन्य चारों अभियुक्तों की गिरफ्तारी के बाद उसके बयान में विरोधाभास आ गया. कोर्ट ने जब सुनवाई के क्रम में उससे पूछा कि गवाही में क्यों विरोधाभास है, तो उसने बताया था कि मामले से छुटकारा पाना चाहती है तथा अपनी स्वेच्छा से समझौता कर लिया है. कोर्ट ने अपने 30 पृष्ठों के महत्वपूर्ण निर्णय में कई पहलुओं पर विशेष रूप से चर्चा की है तथा कहा है कि ऐसे मामलों में पीड़ित से यह कई बार घटना के बारे में पूछा जाता है. कानून में सुधार के बावजूद भी बार-बार यह पूछना कि बताओ तुम्हारे साथ क्या हुआ अपने आप में एक उत्पीड़न है. बाद की गवाही को नकारते हुए न्यायालय ने पीड़िता की पहली गवाही, जिसमें घटना का समर्थन किया था, साक्ष्य अधिनियम 1872 की धारा 157 एवं अन्य प्रस्तुत किये गये साक्ष्यों के आधार पर फैसला सुनाया है. कोर्ट ने आदेश में साफ-साफ यह कहा है कि अदालत इस तथ्य से अच्छी तरह वाकिफ है कि गेहूं को भूसे से अलग कर देना अदालत का कर्तव्य है.
पुलिस की कार्रवाई पर कोर्ट ने जताया असंतोष
लंबे आदेश में पुलिस द्वारा अपनायी गयी प्रक्रिया पर कोर्ट ने गहरा असंतोष व्यक्त किया है. अपने आदेश में लिखा है कि यह प्रासंगिक है कि दोषियों का सीडीआर लाने में विलंब के कारण थानाध्यक्ष सोनू कुमार पासवान का वेतन रोकना पड़ा था, वे अदालत की संतुष्टि के लिए यह समझाने में असफल रहे कि ऐसे महत्वपूर्ण दस्तावेजों को अपने पास क्यों दबा कर रखे थे, जो की रिकॉर्ड का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था. पीड़िता की बरामदगी के बाद पुलिस ने उसके माता-पिता से मिलने की अनुमति नहीं दी तथा उनकी अनुपस्थिति में बयान दर्ज किया था. पारा 16, 17 में यह उल्लेख किया गया है कि पुलिस मैडम ने आंतरिक जांच से इंकार करने के लिए कहा था. बाद में माता-पिता से मिलने के बाद वह आंतरिक जांच के लिए तैयार हुई थी. पुलिस की भूमिका पर आदेश में कई सवाल खड़े किये गये हैं.
मुआवजे के लिए अलग से जारी किया आदेश
न्यायालय ने अपने आदेश में कहा है कि पीड़िता के पुनर्वास के लिए दोषियों पर लगायी गयी अर्थदंड की राशि पर्याप्त नहीं है. ऐसे में न्यायालय बिहार पीड़ित मुआवजा योजना 2019 के तहत 15 लाख रुपये अलग से देने का आदेश सुनाता है. कोर्ट ने यह भी लिखा है कि मुआवजे के भुगतान को सुनिश्चित करने के लिए 30 दिनों के अंदर जिला विधिक सेवा प्राधिकार को निर्देश दिया जाता है.
डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है
