Buxar News: विचार, वैराग्य, ज्ञान व हरि से मिलने का मार्ग है भागवत कथा : भारती दीदी

श्रीमद् भागवत केवल पुस्तक नहीं साक्षात श्रीकृष्ण स्वरुप है. इसके एक एक अक्षर में श्रीकृष्ण समाये हुये है

By Prabhat Khabar News Desk | February 26, 2025 10:15 PM

चौसा.

श्रीमद् भागवत केवल पुस्तक नहीं साक्षात श्रीकृष्ण स्वरुप है. इसके एक एक अक्षर में श्रीकृष्ण समाये हुये है. कथा सुनना समस्त दान, व्रत, तीर्थ, पुण्यादि कर्मों से बढ़कर है. उक्त बातें यमुना रक्षक दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष, राधा मोहन जी गौशाला एवं यमुना सेवा एक धाम ट्रस्ट वृन्दावन के संचालक संत जयकृष्ण दास जी महाराज के द्वारा जनकल्याण हेतु, धर्मप्रचार प्रसार, पूरे भारत के पावन सानिध्य जन-जन तक पर घर तक प्रत्येक भक्तों के हृदय भक्ती रूपी गंगा की अविरल धारा बहाने हेतु चौसा के कठतर गांव में चल रही संगीतमय श्रीमद् भागवत कथा के दूसरे दिन बुधवार को वृन्दावन से पधारी कथा व्यास साध्वी भारती दीदी ने श्रद्धालुओं से कही. उन्होंने शुकदेव जन्म, परीक्षित श्रप और अमर कथा का वर्णन करते हुए बताया कि नारद जी के कहने पर पार्वती जी ने भगवान शिव से पूछा कि उनके गले में जो मुंडमाला है वह किसकी है तो भोलेनाथ ने बताया वह मुंड किसी और के नहीं बल्कि स्वयं पार्वती जी के हैं. हर जन्म में पार्वती जी विभिन्ना रूपों में शिव की पत्नी के रूप में जब भी देह त्याग करती शंकर जी उनके मुंड को अपने गले में धारण कर लेते पार्वती ने हंसते हुए कहा हर जन्म में क्या मैं ही मरती रही, आप क्यों नहीं. शंकर जी ने कहा हमने अमर कथा सुन रखी है पार्वती जी ने कहा मुझे भी वह अमर कथा सुनाइए शंकर जी पार्वती जी को अमर कथा सुनाने लगे. शिव-पार्वती के अलावा सिर्फ एक तोते का अंडा था जो कथा के प्रभाव से फूट गया उसमें से श्री सुखदेव जी का प्राकट्य हुआ कथा सुनते सुनते पार्वती जी सो गई वह पूरी कथा श्री सुखदेव जी ने सुनी और अमर हो गए शंकर जी सुखदेव जी के पीछे उन्हें मृत्युदंड देने के लिए दौड़े. सुखदेव जी भागते भागते व्यास जी के आश्रम में पहुंचे और उनकी पत्नी के मुंह से गर्भ में प्रविष्ट हो गए, 12 वर्ष बाद श्री सुखदेव जी गर्व से बाहर आए इस तरह श्री सुखदेव जी का जन्म हुआ. कथा व्यास ने बताया कि भगवान की कथा विचार, वैराग्य, ज्ञान और हरि से मिलने का मार्ग बता देती है. राजा परीक्षित के कारण भागवत कथा पृथ्वी के लोगों को सुनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ. समाज द्वारा बनाए गए नियम गलत हो सकते हैं किंतु भगवान के नियम ना तो गलत हो सकते हैं और नहीं बदले जा सकते हैं. भागवत के चार अक्षर इसका तात्पर्य यह है. कि भा से भक्ति, ग से ज्ञान, व से वैराग्य और त त्याग जो हमारे जीवन में प्रदान करे उसे हम भागवत कहते है. इसमाज द्वारा बनाए गए नियम गलत हो सकते हैं किंतु भगवान के नियम ना तो गलत हो सकते हैं और नहीं बदले जा सकते हैं. भागवत के चार अक्षर इसका तात्पर्य यह है कि भा से भक्ति, ग से ज्ञान, व से वैराग्य और त त्याग जो हमारे जीवन में प्रदान करे उसे हम भागवत कहते है. सके साथ साथ भागवत के छह प्रश्न, निष्काम भक्ति, 24 अवतार श्री नारद जी का पूर्व जन्म, परीक्षित जन्म, कुन्ती देवी के सुख के अवसर में भी विपत्ति की याचना करती है. साथ साथ परीक्षित को श्राप कैसे लगा तथा भगवान श्री शुकदेव उन्हें मुक्ति प्रदान करने के लिए कैसे प्रगट हुये इत्यादि कथाओं का भावपूर्ण वर्णन किया.

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