biharsharif news : निर्दलीय की विरासत आज भी जिंदा, मगर अब बदल चुकी तस्वीर
biharsharif news : कभी जनता के भरोसे की पहचान थे निर्दलीय, अब इतिहास के पन्नों में सिमटी उनकी जीत की कहानी1970 से 2000 तक जनता ने व्यक्ति को चुना, पार्टी को नहींनिर्दलीय नेताओं का जनता से होता था सीधा संपर्क, स्थानीय मुद्दों पर करते थे काम
बिहारशरीफ. बिहार का बौद्धिक और राजनीतिक केंद्र माना जाने वाला नालंदा जिला कभी उन नेताओं का गढ़ था, जो बिना किसी पार्टी के सहारे, जनता के विश्वास और अपने जनसंपर्क के दम पर विधानसभा तक पहुंचते थे.
निर्दलीय का यह स्वर्णकाल 1970 से 2000 तक चला, जब पार्टी नहीं बल्कि व्यक्ति की साख और जनसंपर्क जीत की कुंजी होती थी. उस दौर में जिले की राजनीति में निर्दलीय उम्मीदवारों की तूती बोलती थी. अस्थावां विधानसभा से रघुनाथ प्रसाद शर्मा और सतीश कुमार, हरनौत से भोला प्रसाद सिंह, अरुण कुमार सिंह और ब्रजनंदन यादव, नालंदा से राम नरेश सिंह, जबकि इस्लामपुर से रामसरन प्रसाद सिंह जैसे नेताओं ने बिना किसी पार्टी के टिकट के चुनाव जीतकर इतिहास रचा. कुल मिलाकर नालंदा जिले की सात विधानसभा सीटों में नौ बार निर्दलीय ने जनता का भरोसा जीता. इनमें अस्थावां विधानसभा सीट सबसे आगे रही, जहां पांच बार निर्दलीय ने जीत दर्ज की. निर्दलीय नेताओं का जनता से सीधा संपर्क होता था. वे दलगत दबाव से मुक्त होकर स्थानीय मुद्दों पर काम करते थे. उनकी सादगी और जनता के बीच उपस्थिति ही उनकी पहचान थी. कई पुराने लोगों के मुताबिक, उस समय के निर्दलीय विधायक अधिकारी-कर्मचारियों की मनमानी पर भी नकेल कसते थे. हालांकि, इसका एक नकारात्मक पहलू भी था. निर्दलीय विधायक को सरकारी योजनाओं के अनुमोदन और फंड लाने में अक्सर कठिनाई झेलनी पड़ती थी, क्योंकि उनके पीछे कोई सशक्त दल या संगठन नहीं होता था.2000 के बाद से दलों का बढ़ा दबदबा
साल 2000 के बाद नालंदा की राजनीति पूरी तरह जदयू, भाजपा और राजद जैसे दलों के नियंत्रण में आ गयी. बूथ स्तर तक मजबूत संगठन, प्रचार मशीनरी और संसाधनों की ताकत ने निर्दलीय की जमीन खिसका दी. अब चुनाव में लोग पार्टी नहीं, अपना आदमी देखते हैं. पार्टी सिंबल ही पहचान का युग आ गया. विश्लेषकों के मुताबिक, नीतीश कुमार की राजनीतिक पकड़ मजबूत होने के बाद से नालंदा में व्यक्तिगत छवि की जगह दल का चेहरा निर्णायक बन गया. लोग अब स्थानीय विधायक नहीं, बल्कि नीतीश कुमार के नाम पर वोट देते हैं. इससे जहां स्थिरता आयी, वहीं स्थानीय जनप्रतिनिधियों के जनसंपर्क और जवाबदेही में भारी गिरावट दिखी.जनता की बदलती सोच और सोशल मीडिया का असर
अब जनता दलों के वादों, प्रचार और सोशल मीडिया अभियानों से प्रभावित होती है. स्थानीय नेता की पहचान या भरोसा पहले जैसी बात नहीं रही. 2000 के बाद से नालंदा में कोई निर्दलीय प्रत्याशी जीत नहीं सका. इन छह चुनाव में लगभग अधिकांश निर्दलीय उम्मीदवारों का जमानत तक जब्त होते रहे हैं. यह इस बदलाव का सबसे बड़ा सबूत है.निर्दलीय की विरासत अब भी जिंदा, मगर अब बदल चुकी तस्वीर
कभी जनता के भरोसे की पहचान रहे निर्दलीय उम्मीदवार भले ही अब जीत की दौड़ में पीछे छूट गये हों, लेकिन उनकी विरासत अब भी जिंदा है. हर बार जब चुनावी मौसम शुरू होता है, तो जिले के लगभग हर विधानसभा क्षेत्र में आधा दर्जन से अधिक निर्दलीय उम्मीदवार मैदान में उतरते देखे जाते हैं. वर्ष 2000 के बाद से निर्दलीय उम्मीदवार खुद जीतने के लिए नहीं, बल्कि किसी को हराने या किसी तीसरे प्रत्याशी को जिताने की रणनीति के तहत मैदान में उतरते हैं. ये उम्मीदवार अब चुनावी गणित के किंगमेकर तो हैं, लेकिन खुद किंग नहीं बन पाते.
राजनीति के जानकार बताते हैं कि जिले में एक-दो ऐसे प्रभावशाली जनप्रतिनिधि हैं जो अपने क्षेत्र में वोटों का समीकरण साधने के लिए खुद निर्दलीय को मैदान में उतारते हैं. कहा जाता है कि वे अपने विश्वस्त लोगों को विपक्षी दल से टिकट दिलवाते हैं या अपने खर्च से निर्दलीय प्रत्याशी खड़ा करवाते हैं, ताकि विरोधी दल के वोट बंट जाये और उनकी जीत तय हो जाये. इस रणनीति का फायदा भी उन्हें लगातार मिला है. वे लगातार चुनाव जीतने का रिकॉर्ड कायम कर चुके हैं. हालांकि यह भी सच है कि उनकी जीत में केवल रणनीति नहीं, बल्कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नाम और उनके मिलनसार स्वभाव का भी बड़ा असर है. नीतीश कुमार के प्रति लोगों का विश्वास उनके लिए एक मजबूत वोट बैंक का काम करता है, जो हर चुनाव में उनकी जीत की गारंटी बन जाता है. फिर भी, जनता आज भी उन पुराने निर्दलीय को याद करती है जिनकी जनसेवा, ईमानदारी और सादगी ही उनकी सबसे बड़ी पूंजी थी. उन्होंने यह साबित किया था कि जनता का भरोसा किसी भी पार्टी के प्रतीक से बड़ा होता है और यही भरोसा आज भी उनकी विरासत को जिंदा रखे हुए है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है
