एक साल में ही फीका पड़ा 22 करोड़ का फिटनेस पार्क
स्मार्ट सिटी परियोजना के तहत करीब 22 करोड़ रुपये की लागत से निर्मित आधुनिक 2 किलोमीटर लंबा फिटनेस पार्क, जिसे शहरवासियों के लिए स्वास्थ्य और मनोरंजन का नया केंद्र बताया गया था, महज एक साल के भीतर ही उपेक्षा और बदहाली की ओर बढ़ता नजर आ रहा है.
बिहारशरीफ. स्मार्ट सिटी परियोजना के तहत करीब 22 करोड़ रुपये की लागत से निर्मित आधुनिक 2 किलोमीटर लंबा फिटनेस पार्क, जिसे शहरवासियों के लिए स्वास्थ्य और मनोरंजन का नया केंद्र बताया गया था, महज एक साल के भीतर ही उपेक्षा और बदहाली की ओर बढ़ता नजर आ रहा है. कभी भीड़ से गुलजार रहने का दावा करने वाला यह पार्क अब चुनिंदा लोगों तक सिमट कर रह गया है. फिटनेस पार्क में आउटडोर जिम, योग ज़ोन, जॉगिंग ट्रैक, बैडमिंटन व बास्केटबॉल कोर्ट, रोप क्लाइंबिंग, बच्चों के झूले और कैंटीन जैसी सुविधाएं विकसित की गई थीं. इसे सुबह 6 बजे से रात 8 बजे तक, सभी आयु वर्ग के लोगों के लिए खोलने की घोषणा की गई थी. उद्देश्य था कि नागरिकों को आधुनिक, सक्रिय और स्वस्थ जीवनशैली से जोड़ना, लेकिन जमीनी हकीकत इससे अलग नजर आ रही है. स्थानीय शिशुकांत कुमार, पंकज कुमार आदि लोगों का कहना है कि अब तक आम जनता को जोड़ने के लिए दैनिक, साप्ताहिक या मासिक पास जैसी कोई व्यवस्था नहीं की गई. इसके अलावा पार्क में जिम और अन्य स्वास्थ्य गतिविधियों के लिए योग्य प्रशिक्षकों की भी कमी है, जिससे लोग खुद को असहज महसूस करते हैं. पार्क में प्रवेश से लेकर अंदर की लगभग हर सुविधा पर अलग-अलग शुल्क लिया जा रहा है. मध्यमवर्गीय शहर बिहारशरीफ के लिए यह शुल्क व्यवस्था लोगों की पहुंच से बाहर बताई जा रही है. वहीं फिटनेस पार्क तक पहुंचने वाले मार्ग पर पर्याप्त लाइट, सुरक्षा और यातायात व्यवस्था का अभाव है. शाम ढलते ही अंधेरा और सन्नाटा छा जाता है, जिससे लोग दोबारा आने से कतराने लगे हैं. फरवरी 2025 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपने प्रगति यात्रा के दौरान बिहारशरीफ फिटनेस पार्क का उद्घाटन किया था. उस समय उन्होंने इसे शहरवासियों के स्वास्थ्य, फिटनेस और मनोरंजन के लिए एक महत्वपूर्ण पहल बताया था. शुरुआती दिनों में स्थानीय लोगों ने भी इस परियोजना का स्वागत किया और इसे परिवार, युवाओं और बुजुर्गों के लिए उपयोगी बताया था. लेकिन समय के साथ हालात बदलते चले गए. स्थानीय नागरिकों और युवाओं का आरोप है कि फिटनेस पार्क का निर्माण जनता की वास्तविक जरूरतों और सर्वे के आधार पर नहीं, बल्कि निर्माण एजेंसी और कुछ अधिकारियों के आर्थिक हितों को ध्यान में रखकर किया गया. उनका कहना है कि स्मार्ट सिटी परियोजना का क्रियान्वयन जनसरोकारों से कटता हुआ नजर आ रहा है. कुल मिलाकर, जिस फिटनेस पार्क को शहर की सेहत और जीवनशैली बदलने की पहल के रूप में प्रस्तुत किया गया था, वही आज लापरवाही, अव्यवस्था और नीतिगत खामियों का उदाहरण बनता जा रहा है.
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