Bhagalpur News.चंपा के टीले पर मिले पहली व दूसरी शताब्दी तक बौद्ध धर्म के प्रभावी होने के प्रमाण

चंपा टीले पर सर्वे में कई पुरातात्विक सामग्री मिली.

By KALI KINKER MISHRA | December 5, 2025 7:55 PM

—प्राचीन भारतीय इतिहास विभाग का सर्वेक्षण दल को मिला शुंग व कुषाण काल का मनौती स्तूपतिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय के प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति व पुरातत्व विभाग के सेमेस्टर एक व तीन के छात्रों व शोधार्थियों का दल शुक्रवार को चंपा टीले का सर्वेक्षण किया. सर्वेक्षण में उन्हें पहली व दूसरी शताब्दी तक यहां बौद्ध धर्म के प्रभावी होने के प्रमाण मिले हैं. यहां से शुंग व कुषाण काल के साथ-साथ इसके बाद के कई पुरावशेष मिले हैं. यह टीला वर्तमान में कर्णगढ़ के नाम से जाना जाता है और इतिहास में यह अंग प्रदेश की राजधानी चंपा के नाम से जानी जाती है. इस टीले पर पिछले कई वर्षों से आरक्षी प्रशिक्षण महाविद्यालय संचालित है.सर्वेक्षण दल का निर्देशन विभागाध्यक्ष प्रो अमर कांत सिंह और डॉ उमेश तिवारी, डॉ दिनेश कुमार गुप्ता व डॉ आशा कुमारी ने किया. सर्वेक्षण दल ने 1960-70 के दशक में पटना विश्वविद्यालय द्वारा प्रो बीपी सिन्हा के निर्देशन में किये गये उत्खनन के ट्रेंच (खातों) का सर्वेक्षण किया.

सर्वेक्षण दल को ये पुरावशेष मिले

शिक्षकों ने बताया कि सर्वेक्षण दल को छठी शताब्दी ईशा पूर्व से लेकर शुंग-कुषाण व इसके बाद के कालों के कई पुरावशेष प्राप्त हुए. इनमें सबसे विशिष्ट टेराकोटा (मिट्टी) से निर्मित मनौती स्तूप मिला है, जो शुंग-कुषाण काल का प्रतीत होता है. इसके अलावा एनबीपीडब्ल्यू, रेड वेयर, मृदभांड, हैंडलयुक्त कढ़ाई, टोंटीदार पात्र, प्यालानुमा पात्र, गोफन गुल्ला, धातुमल, ढक्कन, हांडी जैसे पात्र का गर्दन भाग, अन्य टेराकोटा, बीड आदि प्राप्त हुए. सर्वेक्षण दल में शोध छात्र फैसल, आइसा, सुमन, रितेश, आनंद, विनित, घनश्याम आदि शामिल थे.

इस टीले के संरक्षण की अत्यंत आवश्यकता : विभागाध्यक्ष

विभागाध्यक्ष प्रो सिंह ने बताया कि चंपा टीला (कर्णगढ़) अंग महाजनपद के गौरव का जीवंत उदाहरण है. पटना विवि द्वारा किये गये उत्खनन में यहां छठी शताब्दी ईशा पूर्व की काली मिट्टी के प्राचीर प्राप्त हुए थे. दूसरे फेज के उत्खनन में शुंग-कुषाण कालीन ईंटों के मोटे प्राचीर मिले, जिसे उत्खनन ट्रेंच में वर्तमान में भी देखा जा सकता है. यह इस बात का प्रमाण है कि छठी शताब्दी ईशा पूर्व से प्रथम शताब्दी तक निश्चित रूप से यह टीला चंपा का प्रशासनिक केंद्र रहा है है. अंग महाजनपद और इसकी राजधानी चंपा अपने वाणिज्य, व्यापार, शिल्प आदि के कारण प्राचीन भारत में काफी प्रसिद्ध रहा. पुरातात्विक दृष्टि से इस टीले के संरक्षण की नितांत आवश्यकता है.

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