लीला में नहीं होती कटुता, होती है तन्मयता
शमशेर नगर स्थित सुरेश पांडेय के आवास पर आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के दौरान श्री श्री 1008 स्वामी राम प्रपन्नाचार्य जी महाराज ने भगवान श्री कृष्णा की लीला पर विस्तार पूर्वक वर्णन किया
दाउदनगर. शमशेर नगर स्थित सुरेश पांडेय के आवास पर आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के दौरान श्री श्री 1008 स्वामी राम प्रपन्नाचार्य जी महाराज ने भगवान श्री कृष्णा की लीला पर विस्तार पूर्वक वर्णन किया. उन्होंने कहा कि भगवान श्री कृष्ण के अवतार की भूमिका एवं अवतार लेने के कारणों पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि वे ऐसे समय में आए थे, जब उनके मां-पिता जेलखाने में निवास कर रहे थे. भगवान ने इस जेलखाने में आकर दुखिया दंपति को आश्वस्त करते हुए सुरक्षा के लिए गोकुल चले गए. गोकुल में समस्या का सामना करते हुए अपना संगठन तैयार किया. समाज के सामने चुनौती पेश करने वाले अन्यायी कंस को ललकारा और दुनिया से सदा के लिए कंस नाम मिटा दिया और जेल में पड़े उनके पिता उग्रसेन को छुड़ाया. भोजवंशी, विष्णुवंशी और यदुवंशी का राजा उग्रसेन को ही बना दिया. भगवान श्री कृष्ण को पद की इच्छा नहीं थी. स्वयं सेवक बनकर अपने नाना उग्रसेन की सेवा में लगे रहे. जबकि, वे पूरे विश्व का नियंत्रण करने वाले थे. उन्होंने विश्व का नियंत्रण भी किया. उस समय जो विश्व महायुद्ध हुआ, जिसे महाभारत कहते हैं. महाभारत का नेतृत्व किया. पांडवों का सहयोग करते हुए अन्यायी- अत्याचारी दुर्योधन आदि को खेल-खेल में युद्ध के मैदान में पछाड़ डाला और युधिष्ठिर को राजा बनाकर दिखला दिया कि भगवान श्री कृष्ण की संगठन क्षमता क्या थी. भगवान श्री कृष्ण के बाल लीला से लेकर विशिष्ट लीलाओं की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि लीला में भाग लेने वाले किसी की हानि नहीं होती है. लीला में जितने भी भाग लेते हैं, सबका उद्धार होता है. लीला और खेल में अंतर है. खेल में हार होती है. लीला में भाग लेने वाले लोग विलीन हो जाते हैं. लीला में कटुता नहीं होती है, लीला में तन्मयता होती है.
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