दिन में 1:23 बजे तक रक्षाबंधन का मुहुर्त
सनातन संस्कृति में सावन पूर्णिमा रक्षाबंधन भाई बहन के रिश्ते का प्रतीक है
औरंगाबाद/कुटुंबा. सनातन संस्कृति में सावन पूर्णिमा रक्षाबंधन भाई बहन के रिश्ते का प्रतीक है. इस बार शनिवार को रक्षाबंधन सर्वत्र हर्षोल्लास से मनाया जा रहा है. आज ही वैदिक परंपरा के अनुसार मनाया जानेवाला श्रावणी उपाकर्म भी होगा. संस्कृत दिवस भी आज ही मनाया जायेगा. सनातन धर्म में इस त्योहार का बड़ा ही महत्व है ज्योतिर्विद डॉ हेरम्ब कुमार मिश्र व आचार्य रजनीश कुमार पांडेय ने बताया कि पंचांग के अनुसार कल शुक्रवार को दिन में एक बजकर 40 मिनट से ही पूर्णिमा तिथि शुरू हो यी है, जो शनिवार को एक बजकर 23 मिनट तक रहेगी. रक्षाबंधन में भद्रा का विशेष ध्यान रखा जाता है. भद्रा रहने पर राखी बांधना वर्जित माना गया है. इस वर्ष भद्रा भी रात में एक बजकर 31 मिनट पर ही समाप्त हो चुका है. ऐसे में शनिवार को प्रातः काल से ही राखी बांधने का मुहूर्त है. डॉ मिश्र ने बताया कि उदयातिथि के अनुसार पूरे दिन ही यह त्योहार मनाया जा सकता है, पर दोपहर एक बजकर 23 मिनट तक पूर्णिमा के अंदर ही राखी बांधना सर्वोत्तम रहेगा.
पुराणों में भी है रक्षाबंधन का महत्व
रक्षाबंधन के त्योहार की परंपरा प्राचीन काल से ही चली आ रही है. भविष्यपुराण के अनुसार देवासुर संग्राम में जब असुरों के बल से देवता पराजित होने लगे तो देवगुरु बृहस्पति के मार्गदर्शन पर देवराज इंद्र की पत्नी शची ने रेशम का धागा मंत्रों से अभिसिक्त कर अपने पति के हाथ पर बांधी थी. रक्षा सूत्र बांधने से देवताओं की जीत हुई थी. संयोग से वह दिन श्रावण पूर्णिमा का ही था. स्कंद पुराण, पद्म पुराण और श्रीमद् भागवत पुराण के अनुसार अपनी वचनबद्धता के कारण भगवान विष्णु पाताल लोक में दैत्य राज बली की सेवा में लगे थे. महर्षि नारद द्वारा बताये जाने पर माता लक्ष्मी ने इसी श्रावण पूर्णिमा के दिन दैत्यराज बली के हाथ में राखी बांधी थीं और उपहार में अपने पति को बंधन मुक्त कराकर वैकुंठ लोक में वापस ले लायी थीं. आज भी राखी या रक्षासूत्र बांधते समय उसी प्रकरण से संबंधित मंत्र बोला जाता है- येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः तेन त्वां प्रतिबध्नामि रक्षे माचल माचलकृष्ण के कटी ऊंगली पर साड़ी का किनारा फाड़ का बांधी थीं द्रौपदी
ज्योतिर्विद डॉ मिश्र व आचार्य ने बताया कि द्वापर युग में द्रौपदी ने भगवान श्रीकृष्ण की कटी उंगली पर साड़ी का किनारा फाड़ कर बांधी थी. इसके बदले में उन्होंने सदैव उनकी सुरक्षा का वचन दिया था. महाभारत में उल्लेख है कि जब धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्री कृष्ण से पूछा कि संकटों को कैसे पार किया जा सकता है, तो भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें अपनी सेना में राखी का त्योहार मनाने की सलाह दी थी. ऐतिहासिक परंपरा के अनुसार प्राचीन काल में जब राजा युद्ध के लिए प्रस्थान करने लगते थे तो उनकी पत्नी उनके मस्तक पर चंदन लगाकर और हाथ में रक्षासूत्र बांधकर विदा करती थीं. ऐसे तो यह त्योहार भाई बहनों के अगाढ़ प्रेम व रक्षा का प्रतीक है. लोक परंपराओं में भाई बहन के अतिरिक्त गुरु पुरोहित भी इस दिन अपने यजमान की कलाई पर रक्षासूत्र बांधकर आशीर्वाद देते हैं.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है
