Aurangabad News : निम्न मध्यवर्गीय परिवार की सामाजिक हकीकत की कहानी है दोपहर का भोजन : कुमार वीरेंद्र
अमरकांत की जन्मशती पर दोपहर का भोजन कहानी पर बतकही आयोजित
औरंगाबाद कार्यालय. जिला मुख्यालय औरंगाबाद के ब्लॉक मोड़ के समीप पृथ्वीराज चौहान स्मृति स्थल के सभागार में बतकही की 28वीं कड़ी आयोजित की गयी. प्रसिद्ध कहानीकार अमरकांत की जन्मशती के अवसर पर उनकी कहानी दोपहर का भोजन का पाठ किया गया और उस पर चर्चा हुई. कहानी का पाठ शिक्षिका प्रियंका पांडेय द्वारा किया गया. कार्यक्रम की अध्यक्षता जिला हिंदी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष डॉ सिद्धेश्वर प्रसाद सिंह ने की. संयोजन पुरुषोत्तम पाठक, चंदन कुमार और सिंहेश सिंह ने संयुक्त रूप से किया. बतकही की शुरुआत करते हुए डॉ शिवपूजन सिंह ने कहा कि इस कहानी में मध्यमवर्गीय परिवार के आर्थिक तंगी को प्रस्तुत किया गया है. ज्योतिर्विद शिवनारायण सिंह ने कहा कि कहानी में समाज के निम्नवर्गीय परिवार के हृदय को झकझोरने वाली पहलुओं का वर्णन किया गया है. उन्होंने कहानी के कठिन एवं लोक प्रचलित शब्दों की व्याख्या की. डॉ रामाधार सिंह ने इस कहानी को सामाजिक पर्यावरण से जोड़कर बताया. दोपहर का भोजन आज भी प्रासंगिक है. शिक्षिका शशिबाला सिंह ने कहा कि यह कहानी आज भी प्रासंगिक है. कहानी की नायिका सिद्धेश्वरी आर्थिक तंगी के बावजूद तनाव में कभी नहीं जाती. शिक्षक राम सुरेश सिंह ने कहा कि शीर्षक से ही कहानी की यथार्थता का पता चलता है. दोपहर का भोजन कहानी समीचीन है.शिक्षक रामभजन सिंह ने कहा कि तंगहाली से गुजरती मां की अंतर्व्यथा का मार्मिक चित्रण प्रस्तुत किया गया है. रमेश मेमोरियल ट्रस्ट के सचिव प्रमोद कुमार सिंह ने कहा कि इसमें नारी पात्र के उदार चरित्र का वर्णन किया गया है. शिक्षक डॉ हेरम्ब मिश्र ने कहा आज के दौर में इस कहानी की प्रासंगिकता बढ़ गयी है. शिक्षक जयप्रकाश सिंह ने कहा कि इस कहानी की प्रासंगिकता हर युग में रहेगी. पुरुषोत्तम पाठक ने कहा कि निर्धनता आने पर कभी विचलित नहीं होना चाहिए. प्रधानाध्यापक चंद्रशेखर साहू ने कहा कि कहानी के संवाद अत्यंत ही मार्मिक है. इसमें सामाजिक मुद्दों की भी बात की गयी है. कहानी के केंद्र में आर्थिक विषमता को रखा गया है. यह कहानी आज भी प्रासंगिक है. शिक्षिका अनुपमा कुमारी ने कहा कि इसमें मध्यम वर्ग की त्रासदी का वर्णन किया गया है. शिक्षक डॉ संजय कुमार सिंह ने कहा कि ग्रामीण परिवेश में रहकर भी सिद्धेश्वरी अपना संस्कार नहीं छोड़ती है. मनरेगा अधिकारी पाण्डेय मनोज कुमार ने कहा कि इस कहानी में अभावग्रस्त परिवार का मार्मिक चित्रण प्रस्तुत किया गया है. युवा कवि हिमांशु चक्रपाणि ने कहा कि इस कहानी में संवेदना का भाव भरा है. शिक्षिका प्रियंका पांडेय ने कहा कि आज भी सिद्धेश्वरी समाज में जिंदा है. नारायण सिंह ने कहा कि इसमें नारी का जीवंत चित्रण प्रस्तुत किया गया है. धनंजय जयपुरी ने कहा कि इसमें आंचलिक का बोध है. निरंतर परिवर्तित हो रहे समाज में समस्या के प्रति गंभीर रहने की आवश्यकता है. शिक्षक धर्मेंद्र सिंह ने कहा कि इसमें नारी की आंतरिक पीड़ा को दर्शाया गया है. समकालीन जवाबदेही के संपादक डॉ सुरेंद्र प्रसाद मिश्र ने कहा कि बेरोजगारी में ही लोग सामूहिक भोजन करतें हैं. सिद्धेश्वरी धन्यवाद की पात्र है जिसने आधा पेट खाकर भी पूरे परिवार को समेट कर रखा. इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्रोफेसर कुमार वीरेंद्र ने कहा कि अमरकांत की यह कहानी जन्मशती के अवसर पर पढ़ी जा रही है. जिस समय यह कहानी लिखी जा रही थी, उस समय डिजिटलाइजेशन की शुरुआत हो रही थी. यह कहानी कई सवाल छोड़ती है. यह कहानी निम्न मध्यवर्गीय परिवार की सामाजिक हकीकत की कहानी है. अमरकांत के कहानी के पात्र बहुत ही कम बोलते हैं. कम बोलकर भी सिद्धेश्वरी ने गरीबी केअभावों को महसूस तो किया पर प्रकट नहीं किया. सिद्धेश्वरी अभाव के बीच पूरे परिवार को भाव के धरातल पर एकजुट करती है.यह मूलतः सामाजिक अंतर्विरोध की कहानी है. अध्यक्षीय उद्बोधन में डॉ सिद्धेश्वर प्रसाद सिंह ने कहा कि बतकही ने साहित्यिक अभिरुचि पैदा की है. इसमें सहभागिता निभानेवाले लोग साहित्य के क्षेत्र में लगातार बढ़ रहे हैं. इस कहानी में बेरोजगारी की समस्या कल भी थी और आज भी है. सिद्धेश्वरी आधी रोटी खाकर जीवन से संघर्ष कर रही है. धन्यवाद ज्ञापन जिला हिंदी साहित्य सम्मेलन के उपाध्यक्ष सुरेश विद्यार्थी ने किया. मौके पर चंदन पाठक ,नारायण मिश्र, अशोक कुमार सिंह, ओमप्रकाश पाठक,लवकुश प्रसाद सिंह सहित अन्य शामिल थे.
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