फारबिसगंज में छठ महापर्व को ले बढ़ी सूप की मांग.
क्षेत्र के महादलित समुदाय के परिवार, खासकर महिलाएं
फारबिसगंज में छठ महापर्व को ले बढ़ी सूप की मांग. -बाजार में एक सूप की कीमत 120 रुपये तक पहुंची. -महादलित महिलाएं बोली, यहीं है हमारे परिवार की रोजी रोटी. फारबिसगंज फारबिसगंज प्रखंड क्षेत्र में छठ पर्व जैसे-जैसे नजदीक आ रहा है, बाज़ारों में पूजन सामग्री की मांग तेज़ हो गई है. विशेष रूप से छठ पूजा में इस्तेमाल होने वाले सूप की मांग में जबरदस्त बढ़ोतरी देखी जा रही है. इसी बीच प्रखंड क्षेत्र के महादलित समुदाय के परिवार, खासकर महिलाएं, इस पारंपरिक हस्तशिल्प कार्य में व्यस्त हो गई हैं. यह महिलाएं बांस से सूप बनाकर न केवल छठ पर्व की परंपरा को जीवित रखे हुये हैं, बल्कि अपने परिवार की आजीविका भी चला रही हैं. बढ़ती कीमतों के पीछे बांस की महंगाई इस बार बाजार में एक सूप की कीमत 100–120 रुपये तक पहुंच गई है, जो पिछले वर्षों की तुलना में कहीं अधिक है. इसका कारण बताते हुये स्थानीय विक्रेताओं ने कहा कि इस बार बांस की कीमतों में भारी वृद्धि हुई है. पहले एक गाड़ी बांस की कीमत करीब 1200-1500 रुपये तक होती थी, वहीं अब इसकी कीमत 2200–2500 से भी अधिक हो गई है. यही कारण है कि सूप की कीमतों में भी इजाफा हुआ है. हालांकि बांस के सूप के साथ-साथ कुछ महिलाएं अब पीतल के सूप का भी उपयोग करने लगी हैं, लेकिन पारंपरिक पूजा विधि में बांस से बना सूप हीं अधिक मान्य माना जाता है. यही कारण है कि इसकी मांग अब भी अधिक बनी हुई है. इस कार्य में महादलित महिलाएं अहम भूमिका निभा रही हैं. सूप निर्माण कार्य में मुख्य रूप से महादलित समुदाय की महिलाएं शामिल हैं. इनमें से राधा कुमारी, दौलत देवी, माला देवी, मनीषा बताती हैं, छठ पर्व जैसे त्योहार के समय ही सूप की ज्यादा मांग होती है. यही समय होता है जब हम थोड़ी अच्छी कमाई कर पाते हैं. पूरे साल यही कमाई हमारे बच्चों के पालन-पोषण में मदद करती है. माला देवी व अन्य महिलाएं इस पारंपरिक कार्य को पीढ़ियों से करती आ रही हैं, लेकिन आज भी उन्हें सरकार की तरफ से कोई विशेष सहायता नहीं मिली है. माला देवी कहती हैं अगर सरकार हमें कुटीर उद्योग के तहत कोई अनुदान दें, प्रशिक्षण या बांस की उचित आपूर्ति सुनिश्चित करे, तो हमारा जीवन बहुत हद तक सुधर सकता है.
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