Vaishakh Purnima 2025 Vrat की यह कथा है बेहद महत्वपूर्ण, बिना इसके अधूरा है व्रत
Vaishakh Purnima 2025 Vrat Katha: वैशाख पूर्णिमा को बुद्ध पूर्णिमा के रूप में भी जाना जाता है. यह पूर्णिमा इस वर्ष 12 मई को मनाई जाएगी. इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है. कई लोग इस पूर्णिमा पर उपवास रखते हैं. उपवास करने वालों के लिए वैशाख पूर्णिमा की कथा का पाठ करना आवश्यक माना जाता है. आइए जानते हैं इस पौराणिक कथा के बारे में.
Vaishakh Purnima 2025 Vrat Katha: वैदिक पंचांग के अनुसार, वैशाख पूर्णिमा का उत्सव हर वर्ष वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है. इस वर्ष, वैशाख पूर्णिमा का पर्व आज, 12 मई को मनाया जा रहा है. इस दिन भगवान विष्णु की आराधना की जाती है. अनेक लोग इस पूर्णिमा पर उपवास रखते हैं. उपवास करने वालों के लिए वैशाख पूर्णिमा की कथा का पाठ करना आवश्यक माना जाता है. आइए जानते हैं यह पौराणिक कथा क्या है.
वैशाख पूर्णिमा व्रत कथा
वैशाख पूर्णिमा की पौराणिक कथा के अनुसार, एक नगर में धनेश्वर नामक ब्राह्मण अपनी पत्नी सुशीला के साथ निवास करता था. उसके पास धन-धान्य की कोई कमी नहीं थी, फिर भी वह दुखी रहता था. उसके दुख का मुख्य कारण संतान का अभाव था. एक बार उस नगर में एक साधु महात्मा आए, जो आस-पास के सभी घरों से भिक्षा मांगकर अपना जीवन यापन करते थे. लेकिन, वह साधु कभी भी धनेश्वर ब्राह्मण के घर से भिक्षा मांगने नहीं जाते थे. साधु के इस व्यवहार को देखकर सुशीला और धनेश्वर बहुत दुखी हुए.
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एक दिन उन्होंने साधु से पूछा कि आप सभी घरों से भिक्षा लेते हैं लेकिन हमारे घर नहीं आते, ऐसा क्यों साधु महाराज? क्या हमसे कोई अपराध हुआ है. तब साधु ने उत्तर दिया कि तुम निःसंतान हो. ऐसे में तुम्हारे घर से भिक्षा लेना पतितों के अन्न के समान होगा और मैं कभी भी पाप का भागीदार नहीं बनना चाहता. बस इसी कारण मैं तुम्हारे घर से भिक्षा नहीं लेता हूं. यह सुनकर धनेश्वर बहुत दुखी हुआ लेकिन उसने साधु महाराज से इस दुख से मुक्ति पाने का उपाय पूछा. तब साधु ने ब्राह्मण दंपत्ति को सोलह दिन तक मां चंडी की पूजा करने की सलाह दी. इसके बाद धनेश्वर और उसकी पत्नी ने विधि विधान से इस व्रत का पालन किया.
इस दंपत्ति की भक्ति से प्रसन्न होकर मां काली प्रकट हुईं और उन्होंने सुशीला को गर्भवती होने का आशीर्वाद दिया. इसके साथ ही, उस ब्राह्मण दंपत्ति को पूर्णिमा के दिन पूजा करने की विधि भी बताई. माता ने पूर्णिमा की विधि समझाते हुए कहा कि हर पूर्णिमा को दीपक जलाना है, और हर पूर्णिमा पर दीपकों की संख्या बढ़ाते जाना है, जब तक कि 32 दीपक न हो जाएं. इस उपाय को करने से माता की कृपा से सुशीला गर्भवती हुईं. परिणामस्वरूप, दंपति के घर एक पुत्र का जन्म हुआ, जिसका नाम देवदास रखा गया.
देवदास ने बड़े होने पर विद्या प्राप्ति के लिए काशी की यात्रा की, जहां उसे धोखे से विवाह करना पड़ा. जब देवदास ने अपनी अल्पायु का उल्लेख किया, तब भी उसकी शादी जबरदस्ती कर दी गई. लेकिन जब काल देवदास की जान लेने आया, तो वह उसे मारने में असमर्थ रहा. इसके बाद काल ने यमराज से जाकर कहा कि वह देवदास की जान नहीं ले सका. तब यमराज ने इस कारण को जानने के लिए भगवान शिव और माता पार्वती के पास गए. पार्वती माता ने यमराज को काली मां से मिले वरदान के बारे में बताया और कहा कि ब्राह्मण दंपत्ति ने पूर्णिमा का व्रत रखा था, इसलिए देवदास को कोई हानि नहीं पहुँचा सकता. इस प्रकार पूर्णिमा व्रत का महत्व और भी बढ़ गया.
