Navratri 2025 Vrat Katha: नवरात्री के पहले दिन करें मां शैलपुत्री की इस कथा का पाठ, वरना अधूरी मानी जाएगी पूजा
Navratri 2025 Shailputri Katha:नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री को समर्पित किया जाता है. इस दिन मां शैलपुत्री की पूजा-अर्चना के बाद उनकी कथा सुनने की परंपरा है. माना जाता है कि मां शैलपुत्री की पूजा से शारीरिक रोग और कष्ट दूर होते हैं.
Navratri 2025 Shailputri Katha: इस वर्ष नवरात्रि 22 सितंबर से शुरू हो रही है. नवरात्रि के पहले दिन घरों, मंदिरों और पंडालों में कलश स्थापना कर मां दुर्गा का आह्वान किया जाता है. इस दिन मां दुर्गा के शैलपुत्री स्वरूप की आराधना की जाती है. मान्यता है कि मां शैलपुत्री की विधिवत पूजा से शारीरिक रोग और कष्ट दूर होते हैं और अच्छे स्वास्थ्य का आशीर्वाद मिलता है. नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की कथा सुनना बेहद शुभ माना जाता है. माना जाता है कि मां शैलपुत्री की कथा सुने बिना पूजा का संपूर्ण फल नहीं मिलता.
मां शैलपुत्री कथा
देवी भागवत पुराण के अनुसार, एक बार माता सती के पिता प्रजापति दक्ष ने अपने घर पर एक महायज्ञ का आयोजन किया था. उन्होंने इस यज्ञ में सभी देवी-देवताओं को आमंत्रित किया था, लेकिन अपने दामाद यानी भगवान शिव और माता सती को नहीं बुलाया. जब यज्ञ की सूचना माता सती को मिली, तो वह भी अपने मायके यज्ञ में शामिल होने जाना चाहती थीं.
उन्होंने अपनी यह इच्छा भगवान शिव को बताई. लेकिन भगवान शिव ने कहा कि उन्हें निमंत्रण नहीं दिया गया है, इसलिए वहां जाना उचित नहीं होगा. ऐसा कहकर उन्होंने सती को यज्ञ में जाने से मना किया, लेकिन देवी सती ने उनकी बात नहीं मानी और वहां चली गईं. वहां पहुँचने पर माता सती के पिता ने उन्हें खरी-खोटी सुनाई और भगवान शिव का अपमान किया. अपने पति का अपमान वह सह नहीं सकीं और स्वयं योगाग्नि में कूद कर अपनी आहुति दे दी और यज्ञ को विध्वंस कर दिया.
इसके बाद देवी सती ने पुनः हिमालय पर्वत की पुत्री देवी पार्वती के रूप में जन्म लिया. माता के इस स्वरूप को शैलपुत्री यानी “हिमालय की पुत्री” कहा जाता है. माता शैलपुत्री ने इस जन्म में कठोर तपस्या करके महादेव को पति के रूप में पाया.
नवरात्रि के पहले दिन करें इन मंत्रो का जाप
ऊँ देवी शैलपुत्र्यै नमः॥
वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारुढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥
या देवी सर्वभूतेषु माँ शैलपुत्री रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
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