Navratri 2025: कांची शंकराचार्य ने दी शुभकामनाएं और किया भक्तों को आमंत्रित

Navratri 2025: कांची शंकराचार्य ने देशवासियों को नवरात्रि की शुभकामनाएं दीं और शक्तिपीठ कामाक्षी देवी के दर्शन के लिए भक्तों को आमंत्रित किया. उन्होंने कहा कि इस अवसर पर माता की भक्ति और आध्यात्मिक साधना से मन और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है.

By Shaurya Punj | September 22, 2025 2:39 PM

Navratri 2025: कांची कामकोटि पीठ के शंकराचार्य जगदगुरू स्वामी शंकर विजयेंद्र सरस्वती ने नवरात्रि के पावन पर्व के अवसर पर दक्षिण भारत में देवी दुर्गा की स्वरूप कांची स्थित देवी कामाक्षी के मंदिर में नवरात्र पूजा अर्चना शुरू होने पर देशवासियों को शुभकमानाएं दी हैं. इस अवसर पर राष्ट्र कल्याण की मंगलकामना करते हुए कामाक्षी मंदिर में आदि शंकराचार्य द्वारा करीब 2500 वर्ष पहले शुरू की गई देवी अराधना की परंपरा के अनुरूप पूजा-अर्चना को सनातन के लिए विशेष बताते हुए कहा कि स्वामी विजयेंद्र सरस्वती ने कहा कि नवरात्र का पर्व वास्तव में देश की सांस्कृतिक एकता का प्रतिबंब है. इस एकता को प्रगाढ़ बनाने के लिए कांची पीठाधिपति ने उत्तर भारत के धर्मावलंबियों को नवरात्रि के मौके पर देवी कामाक्षी के दर्शन के लिए कांची आने का आहृवान किया है.

नवरात्रि पर विशेष संदेश

कांची के वर्तमान 70वें शंकराचार्य जगदगुरू स्वामी शंकर विजयेंद्र सरस्वती ने नवरात्रि के अवसर पर जारी एक विशेष वीडियो संदेश में कहा कि अंबाजी, कामाख्या, विंध्यवासनी जैसी शक्ति पीठों की तरह कांची की देवी कामाक्षी भी भारत की प्रमुख देवी शक्ति पीठ हैं.

देवी कामाक्षी का महत्व

स्वामी विजयेंद्र सरस्वती के अनुसार देवी कामाक्षी के नाम का उच्चारण मात्र से ही समस्त मंगल की प्राप्ति होती है. उन्होंने ललिता सहस्रनाम जैसे धार्मिक आख्यान का उद्धरण देते हुए कहा कि इसमें देवी कामाक्षी की महिमा का विशेष उल्लेख है.

अयोध्या और कांची का ऐतिहासिक संबंध

स्वामी विजयेंद्र सरस्वती ने कामाक्षी मंदिर में नवरात्र पूजा-अर्चना की प्राचीन परंपरा का उल्लेख करते हुए बताया कि धार्मिक आख्यानों में वर्णित है कि अयोध्या के राजा दशरथ ने संतान प्राप्ति के लिए अयोध्या से कांची आकर देवी कामाक्षी की पूजा-अर्चना की. देवी के आशीर्वाद से दशरथ को भगवान राम सहित चार पुत्रों की प्राप्ति हुई.

मंदिर की प्राचीनता और आदि शंकराचार्य

कामाक्षी शक्ति पीठ की प्राचीनता का उदाहरण देते हुए स्वामी विजयेंद्र सरस्वती ने बताया कि जगदगुरू आदि शंकराचार्य देवी की पूजा-अर्चना के साथ कन्या पूजन को भी महत्वपूर्ण मानते थे. 2500 वर्ष पहले आदि शंकराचार्य ने कामाक्षी मंदिर के सामने स्वयं श्रीचक्रम यंत्र की प्रतिष्ठा कर उनकी पूजा की.