Lahri Mahasaya Birth Anniversary 2025: लाहिड़ी महाशय, एक योगावतार, जिन्होंने क्रियायोग को जन-जन तक पहुंचाया

Lahri Mahasaya Birth Anniversary 2025: लाहिड़ी महाशय, एक महान योगावतार, जिन्होंने साधारण गृहस्थ जीवन जीते हुए क्रियायोग की गहन शिक्षाओं को जन-जन तक पहुँचाया. उनकी शिक्षाओं ने आध्यात्मिक साधना और आधुनिक जीवन के बीच संतुलन स्थापित किया. उनके शिष्यों में स्वामी श्रीयुक्तेश्वर और परमहंस योगानन्दजी प्रमुख थे.

By Shaurya Punj | September 30, 2025 8:16 AM

Lahri Mahasaya Birth Anniversary 2025: कभी-कभी कोई आध्यात्मिक महापुरुष हमारे बीच मौन रहकर विचरण करता है, जो संसार की दृष्टि से छुपा रहता है, लेकिन आने वाली पीढ़ियों के लिए मार्ग प्रशस्त करता है. ऐसे ही एक गुरु थे लाहिड़ी महाशय, जिनका जन्म 30 सितंबर, 1828 को बंगाल के घुरणी गांव में हुआ. श्री श्री परमहंस योगानन्दजी की पुस्तक योगी कथामृत में उनके जीवन का उल्लेख, आध्यात्मिक साधना के मार्ग पर एक महत्वपूर्ण निर्णायक मोड़ साबित हुआ.

गृहस्थ जीवन और क्रियायोग की दीक्षा

योगावतार के नाम से प्रसिद्ध लाहिड़ी महाशय न तो संन्यासी थे और न ही विरक्त. वे एक गृहस्थ थे—सरकारी अकाउंटेंट, पति और पिता—जो वाराणसी में सामान्य जीवन व्यतीत कर रहे थे. पर 1861 में जब उनका तबादला रानीखेत हुआ, तब उनकी नियति बदल गई. मृत्युंजय योगी महावतार बाबाजी ने उन्हें हिमालय की तलहटी में बुलाया और लुप्त हुई क्रियायोग कला में दीक्षित किया. यह कला एक वर्ष की साधना के बराबर आध्यात्मिक उन्नति प्रदान करती है.

जीवन का मिशन: योग और आधुनिक जीवन का सेतु

लाहिड़ी महाशय ने अपने जीवन को प्राचीन योग और आधुनिक जीवन के बीच एक जीवंत सेतु बनाने में समर्पित कर दिया. उन्होंने वाराणसी लौटकर मौन रहकर सच्चे साधकों को क्रियायोग की शिक्षा देना आरंभ की. ब्राह्मण, व्यापारी, विद्वान और गृहस्थ सभी उनके शिष्य बने. उनका संदेश सरल था: ईश्वर सभी के लिए है. जाति या धार्मिक सीमाएँ मायने नहीं रखतीं.

प्रेरक शिक्षाएं और प्रसिद्ध उक्ति

उनकी प्रसिद्ध उक्ति “बनत, बनत, बन जाए” साधकों को निरंतर प्रयास करने की प्रेरणा देती है. उनके प्रमुख शिष्यों में स्वामी श्रीयुक्तेश्वरजी थे, जिन्होंने बाद में परमहंस योगानन्दजी को मार्गदर्शन दिया. लाहिड़ी महाशय ने स्वयं योगानन्दजी की नियति को भी प्रभावित किया.

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विनम्र जीवन और आज का महत्व

चमत्कारिक शक्तियों के बावजूद लाहिड़ी महाशय अत्यंत विनम्र और साधारण जीवन बिताने वाले गुरु थे. आज, 30 सितंबर को उनके जन्मदिन पर हम उन्हें याद करें—उन्होंने क्रियायोग को संसार के लिए खोला और दिखाया कि आध्यात्मिक ज्ञान और सांसारिक जीवन परस्पर विरोधी नहीं हैं.

लेखिका : रेनू सिंह परमार