Krishna Janmashtami 2025: नीले कृष्ण की लीला, रंग में छुपा है गहरा अर्थ

Krishna Janmashtami 2025: जन्माष्टमी 2025 पर भगवान श्रीकृष्ण की नीली लीला का महत्व अत्यंत खास है. उनके नीले रंग में छुपा आध्यात्मिक, पौराणिक और प्रतीकात्मक अर्थ भक्तों को गहराई से भक्ति और ज्ञान की ओर प्रेरित करता है. यह पर्व भक्ति, प्रेम और उत्साह से परिपूर्ण होता है.

By Shaurya Punj | August 14, 2025 12:06 PM

Krishna Janmashtami 2025:भगवान श्रीकृष्ण का नाम सुनते ही मन में एक मोहक मुस्कान वाले बाल गोपाल की छवि उभरती है, जिनकी त्वचा का रंग नीला या श्याम वर्ण का बताया जाता है. लेकिन यह प्रश्न अक्सर मन में आता है—श्रीकृष्ण को नीले रंग का ही क्यों दर्शाया गया? इसका उत्तर पौराणिक, आध्यात्मिक और ऐतिहासिक–वैज्ञानिक, तीनों दृष्टियों से मिलता है.

पौराणिक कारण

हिंदू पुराणों के अनुसार, श्रीकृष्ण विष्णु के अवतार हैं. भगवान विष्णु का वर्ण ‘नील मेघ’ यानी गहरे नीले बादलों जैसा बताया गया है. नीला रंग आकाश और समुद्र का भी है—दोनों ही असीम, गहरे और व्यापक हैं. इसीलिए श्रीकृष्ण का रंग उनके अनंत, सर्वव्यापी और असीम स्वरूप का प्रतीक माना जाता है.

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आध्यात्मिक कारण

आध्यात्मिक दृष्टिकोण से नीला रंग शांति, स्थिरता और गहरी भक्ति का प्रतीक है. योग और ध्यान में यह ‘विषुद्ध चक्र’ (कंठ चक्र) से जुड़ा माना जाता है, जो सत्य, वाणी और प्रेमपूर्ण संचार का केंद्र है. श्रीकृष्ण के जीवन—गीता के उपदेश से लेकर बांसुरी की मधुर धुन तक—में यही सत्य और प्रेम का संदेश समाया हुआ है.

वैज्ञानिक और ऐतिहासिक दृष्टि

कुछ विद्वानों के अनुसार, नीला रंग वास्तव में श्रीकृष्ण की दिव्य आभा (Aura) का प्रतीक है. प्रकाश के स्पेक्ट्रम में यह रंग मन और मस्तिष्क को शांति देता है. वहीं ऐतिहासिक दृष्टि से ‘श्याम’ शब्द का अर्थ सांवला होता है, लेकिन चित्रकारों और कवियों ने समय के साथ इसे कलात्मक रूप से नीला रूप देकर उनकी दिव्यता और अलग पहचान को और प्रखर बना दिया.

अंतर्निहित संदेश

श्रीकृष्ण का नीला रंग केवल उनके शारीरिक रूप का नहीं, बल्कि उनके अनंत प्रेम, असीम ज्ञान और शांत, स्थिर व्यक्तित्व का भी प्रतीक है. यह हमें याद दिलाता है कि जैसे आकाश और समुद्र की कोई सीमा नहीं, वैसे ही भक्ति और प्रेम भी असीम और अनंत होने चाहिए.