Jivitputrika Vrat 2025 Nahay Khay: 13 या 14 सितंबर, इस दिन है जितिया का नहाय खाए, जानें पारण का शुभ मुहूर्त

Jivitputrika Vrat 2025 Nahay Khay: जितिया का नहाय-खाय 13 सितंबर या 14 सितंबर को मनाया जाएगा. इस दिन व्रती महिलाएं स्नान-ध्यान कर शुद्ध भोजन करती हैं. व्रत का पारण अगले दिन सुबह सूर्योदय के बाद किया जाएगा. नहाय-खाय और पारण का शुभ मुहूर्त जानना व्रती के लिए अत्यंत आवश्यक है.

By Shaurya Punj | September 12, 2025 11:24 AM

Jivitputrika Vrat 2025 Nahay Khay: हिंदू धर्म में जितिया व्रत का अत्यंत धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व है. विशेषकर बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश के पूर्वी क्षेत्र और नेपाल के तराई इलाकों में यह व्रत बड़ी आस्था और श्रद्धा के साथ किया जाता है. यह व्रत माताएं अपने संतान, खासकर पुत्र की लंबी उम्र, स्वास्थ्य और समृद्धि की कामना से करती हैं. मान्यता है कि यह केवल एक उपवास नहीं, बल्कि संतान रक्षा का पर्व है. इसी कारण इसे “जीवित्पुत्रिका व्रत” भी कहा जाता है.

जितिया नहाय-खाय तिथि 2025

जितिया व्रत का शुभारंभ नहाय-खाय से होता है. व्रती महिलाएं इस दिन शुद्ध आचरण रखते हुए स्नान-ध्यान कर सात्विक भोजन करती हैं. पंचांग के अनुसार, साल 2025 में जितिया व्रत का नहाय-खाय 13 सितंबर, शनिवार को मनाया जाएगा. यह दिन व्रत की तैयारी और शुद्धता का प्रतीक होता है.

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जीवित्पुत्रिका व्रत तिथि 2025

पंचांग के अनुसार, 14 सितंबर 2025 को सुबह 08 बजकर 41 मिनट तक सप्तमी तिथि रहेगी, उसके बाद अष्टमी तिथि का प्रारंभ होगा. चूंकि इस दिन सप्तमी युक्त अष्टमी तिथि पड़ रही है, इसलिए 14 सितंबर, रविवार को ही जितिया व्रत रखा जाएगा. इस दिन व्रती महिलाएं निर्जला उपवास कर संतान की मंगलकामना हेतु जीमूतवाहन देव की पूजा करती हैं.

जितिया पारण 2025 तिथि

व्रत का समापन पारण से होता है. पंचांग के अनुसार, अष्टमी तिथि 15 सितंबर, सोमवार को सुबह 6 बजकर 15 मिनट पर समाप्त होगी. इसलिए नवमी तिथि के सूर्योदय के बाद ही व्रती महिलाएं पारण करेंगी. इस प्रकार 15 सितंबर को जितिया पावन किया जाएगा.

जीवित्पुत्रिका व्रत का महत्व

जीवित्पुत्रिका व्रत सनातन धर्म में प्राचीन काल से माताओं द्वारा बड़े श्रद्धा और भक्ति के साथ किया जाता रहा है. इस व्रत को माताएं अपने संतान के सौभाग्य, स्वास्थ्य और दीर्घायु की कामना से विधिपूर्वक निभाती हैं. व्रत के दौरान माताएं डाला भरती हैं, जिसमें कुशी मटर, मिठाई, बांस, बेल, जील और झिंगली के पत्ते शामिल होते हैं. धार्मिक मान्यता के अनुसार, डाले में भरे बांस को वंश, जील को जीव और बेल को सिर के रूप में पूजा जाता है. पूर्वी भारत के विभिन्न हिस्सों में, विशेषकर बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश के अंगप्रदेश में, इस व्रत के प्रति लोगों की गहरी आस्था और माताओं का अटूट विश्वास देखने को मिलता है. माताएं इसे अपने बच्चों की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि के लिए पूरी निष्ठा और संयम के साथ करती हैं.