Jivitputrika Vrat 2025: इस दिन रखा जाएगा जिउतिया व्रत, संतान की लंबी उम्र के लिए मां रखेंगी निर्जला व्रत

Jivitputrika Vrat 2025: जीवित्पुत्रिका व्रत 2025 (जिउतिया) संतान की लंबी उम्र, सुख-समृद्धि और वंश वृद्धि के लिए रखा जाने वाला पावन उपवास है. इस वर्ष यह व्रत 14 सितंबर, रविवार को मनाया जाएगा. परंपरा के अनुसार माताएं निर्जला उपवास रखकर संतान की कुशलता और सौभाग्य की मंगल कामना करती हैं.

By Shaurya Punj | September 10, 2025 8:04 AM

Jivitputrika Vrat 2025: हिंदू धर्म में संतान की कुशलता और वंश की निरंतरता के लिए अनेक व्रत-त्योहार मनाए जाते हैं. इन्हीं में से एक है जीउतिया व्रत जिसे जितिया या जीवित्पुत्रिका व्रत भी कहा जाता है. यह महिलाओं का महत्वपूर्ण पर्व है, जिसमें माताएं अपने संतान की लंबी आयु, सुख-समृद्धि और सौभाग्य की मंगल कामना करती हैं. वर्ष 2025 में यह व्रत 14 सितंबर, रविवार को मनाया जाएगा. इस बार यह व्रत आश्विन कृष्ण अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र और जयद् योग जैसे विशेष संयोग में पड़ रहा है, जिससे इसका महत्व और बढ़ गया है. ज्योतिषाचार्य पंडित राकेश झा के अनुसार, इसका पारण 15 सितंबर, सोमवार की सुबह अष्टमी तिथि समाप्ति के बाद किया जाएगा.

सरगही और ओठगन की परंपरा

जीउतिया व्रत से एक दिन पहले, यानी 13 सितंबर की भोर में महिलाएं सरगही और ओठगन करती हैं. इस समय व्रती महिलाएं चाय, शरबत, मिष्ठान्न, ठेकुआ, गुझिया, दही-चूड़ा आदि का सेवन करती हैं और व्रत का संकल्प लेती हैं. परंपरा है कि नहाय-खाय के दिन महिलाएं मड़आ की रोटी और नोनी का साग खाती हैं. मान्यता है कि जैसे नोनी का पौधा हर परिस्थिति में पनपता है, वैसे ही संतान की रक्षा और वंश वृद्धि सुनिश्चित होती है.

व्रत विधान और पूजा-पाठ

व्रत के दिन यानी 14 सितंबर को महिलाएं निर्जला उपवास रखती हैं. इस दिन कुश से बने जीमूतवाहन की प्रतिमा स्थापित कर माता लक्ष्मी और देवी दुर्गा की पूजा की जाती है. इसके बाद जीमूतवाहन की कथा सुनी जाती है, जिसे सर्वप्रथम भगवान शिव ने माता पार्वती को सुनाया था. मान्यता है कि इस कथा के श्रवण और व्रत पालन से संतान पर आने वाले सभी संकट टल जाते हैं.

पारण की परंपरा

व्रत पूर्ण होने के बाद 15 सितंबर को प्रातः 6:36 बजे के बाद पारण किया जाएगा. पारण से पूर्व व्रती महिलाएं अन्न का दान करती हैं और फिर व्रत का समापन केराव से करती हैं.

जीउतिया व्रत मातृत्व की शक्ति, त्याग और संकल्प का प्रतीक है. इस व्रत से संतान की दीर्घायु, सुख-समृद्धि और वंश की निरंतरता सुनिश्चित होती है. पवित्र संकल्प, कठोर उपवास और विधिवत पूजा से माताएं अपने बच्चों के जीवन में खुशहाली और सुरक्षा की कामना करती हैं.