Hartalika Teej 2025: क्या पीरियड्स के दौरान की जा सकती है हरतालिका तीज व्रत
Hartalika Teej 2025: हरतालिका तीज 2025 का व्रत विवाहित और अविवाहित महिलाओं के लिए बेहद खास है. लेकिन जब यह व्रत पीरियड्स के दौरान आए तो महिलाओं के मन में सवाल उठता है कि इसे कैसे निभाया जाए. जानें परंपरा, शास्त्रीय मान्यताएं और आधुनिक दृष्टिकोण से सही उपाय.
Hartalika Teej 2025: हरतालिका तीज का व्रत विवाहित महिलाओं और अविवाहित कन्याओं के लिए बेहद शुभ माना जाता है. सुहागिनें यह व्रत अपने पति की लंबी आयु के लिए करती हैं, जबकि अविवाहित कन्याएं अच्छे वर की प्राप्ति की कामना से इसे निभाती हैं. लेकिन यदि यह व्रत मासिक धर्म (पीरियड्स) के दौरान पड़ जाए, तो महिलाओं के मन में अक्सर सवाल उठता है कि ऐसे समय में व्रत रखना उचित है या नहीं.
पारंपरिक मान्यता
सनातन परंपरा में मासिक धर्म के दिनों को आराम और शारीरिक विश्राम का समय माना गया है. इस अवधि में महिलाओं को पूजा-पाठ, व्रत और अन्य धार्मिक कर्मकांडों से दूर रहने की सलाह दी जाती है, क्योंकि माना जाता है कि शरीर कमजोर होता है और नियमों का पालन करना कठिन हो सकता है. इसी वजह से कई परिवारों में पीरियड्स के दौरान हरतालिका तीज का व्रत करने से मना किया जाता है. परंपरा यह भी कहती है कि महिलाएं इस समय केवल मन से भगवान शिव-पार्वती का ध्यान और स्मरण कर सकती हैं, लेकिन प्रत्यक्ष पूजा, मूर्तियों का स्पर्श, कथा-पाठ या पूजन सामग्री चढ़ाना वर्जित माना गया है.
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अक्सर महिलाओं के मन में यह प्रश्न उठता है कि यदि हरतालिका तीज का व्रत मासिक धर्म (पीरियड्स) के दौरान आ जाए, तो इसे सही तरीके से कैसे निभाया जाए. धर्मग्रंथों में मासिक धर्म को अशुद्ध अवस्था माना गया है, लेकिन वर्तमान समय में इसकी भावनाओं को समझते हुए कुछ व्यावहारिक उपाय अपनाए जा सकते हैं.
पीरियड्स में हरतालिका तीज व्रत के उपाय
संकल्प के साथ व्रत
इस स्थिति में पूजा-पाठ या मंदिर जाने की मनाही होती है, लेकिन व्रत का संकल्प किया जा सकता है. मन ही मन भगवान शिव-पार्वती का ध्यान करते हुए व्रत निभाना पूर्ण माना जाता है.
पारंपरिक पूजा से परहेज
पीरियड्स के दिनों में मूर्तियों को छूना या कथा-पाठ करना वर्जित माना गया है. ऐसे में घर के किसी सदस्य से व्रत कथा पढ़वाई जा सकती है और महिला केवल मन ही मन सुनकर श्रद्धा रख सकती है.
मानसिक पूजा को प्राथमिकता
इस समय मानसिक पूजा सर्वोत्तम मानी जाती है. ध्यान, प्रार्थना, मंत्रजप या भगवान के नाम का स्मरण करके भी व्रत की भावना पूरी की जा सकती है.
स्वास्थ्य का ध्यान रखते हुए उपवास
यदि शरीर की स्थिति ठीक हो तो निर्जला या फलाहार व्रत रखा जा सकता है. लेकिन कमजोरी अधिक हो तो जल ग्रहण करना या हल्का फलाहार लेना भी उचित है. व्रत की सफलता भावनाओं पर निर्भर करती है, कठोर नियमों पर नहीं.
विकल्प स्वरूप पूजा
यदि संभव हो तो पीरियड्स समाप्त होने के बाद शुद्ध अवस्था में किसी दूसरे दिन शिव-पार्वती की विधिवत पूजा करके व्रत का फल समर्पित किया जा सकता है.
