देवशयनी एकादशी आज, अगले चार माह तक मांगलिक कार्यों के लिए नहीं है मुहूर्त

आज आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी है. आज के इस दिन को देवशयनी एकादशी कहते हैं. इसे ‘योगनिद्रा’ या पद्मनाभा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन से देवउठनी एकादशी तक भगवान विष्णु चार महीने तक क्षीर सागर में में शयन करते हैं. देवशयनी एकादशी एक ऐसा पावन दिन है […]

By Prabhat Khabar Print Desk | July 12, 2019 9:45 AM

आज आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी है. आज के इस दिन को देवशयनी एकादशी कहते हैं. इसे ‘योगनिद्रा’ या पद्मनाभा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन से देवउठनी एकादशी तक भगवान विष्णु चार महीने तक क्षीर सागर में में शयन करते हैं. देवशयनी एकादशी एक ऐसा पावन दिन है जब श्री हरि की महाकृपा मिल सकती है. लेकिन साथ ही देवशयनी एकादशी से शुभ काम भी बंद हो जाएंगे क्योंकि इसी दिन से देव शयन को चले जाएंगे. आज हम आपको बताएंगे, देवशयनी एकादशी की महिमा और जानेंगे देवशयनी एकादशी का पौराणिक महत्वः

शास्त्रों में ‘तप’ के अंतर्गत व्रतों की महिमा वर्णित है. जैसे नदियों में गंगा, प्रकाश तत्वों में सूर्य और देवताओं में भगवान विष्णु की प्रधानता है, वैसे ही व्रतों में ‘एकादशी’ व्रत प्रधान है. यह भगवान विष्णु का पर्व माना जाता है. पद्मपुराण के अनुसार, वर्ष भर में पड़ने वाली 24 (मलमास वर्ष में 26) एकादशियों में आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी का विशेष महत्व है. इसे ‘देवशयनी एकादशी’, ‘हरिशयनी एकादशी’ और ‘पद्मा एकादशी’ के नाम से जाना जाता है.
इस दिन से भगवान विष्णु चार मास की अवधि तक पाताल लोक में निवास करते हैं और क्षीर सागर की अनंत शय्या पर शयन करते हैं, इसलिए इस तिथि को ‘हरिशयनी’ एकादशी भी कहा जाता है. चूंकि यह चारमास की अवधि भगवान विष्णु की निद्राकाल की अवधि मानी जाती है, इसलिए कृषि को छोड़कर धार्मिक दृष्टि से किए जाने वाले सभी शुभ कार्यों, जैसे- विवाह, उपनयन, गृह-प्रवेश मांगलिक कार्यों पर विराम लग जाता है और साधु-संत एक स्थान पर रह कर विशेष साधना करते हैं.
भागवत महापुराण के अनुसार, श्रीविष्णु ने एकादशी के दिन विकट आततायी शंखासुर का वध किया, अत: युद्ध में परिश्रम से थक कर वे क्षीर सागर में सो गए। उनके सोने पर सभी देवता भी सो गए, इसलिए यह तिथि देवशयनी एकादशी कहलाई.
इन चार मासों में कोई भी मंगल कार्य- जैसे विवाह, नवीन गृहप्रवेश आदि नहीं किया जाता है. ऐसा क्यों? तो इसके पीछे सिर्फ यही कारण है कि आप पूरी तरह से ईश्वर की भक्ति में डूबे रहें, सिर्फ ईश्वर की पूजा-अर्चना करें. देखा जाए तो बदलते मौसम में जब शरीर में रोगों का मुकाबला करने की क्षमता यानी प्रतिरोधक शक्ति बेहद कम होती है, तब आध्यात्मिक शक्ति प्राप्ति के लिए व्रत करना, उपवास रखना और ईश्वर की आराधना करना बेहद लाभदायक माना जाता है.

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