पुण्यतिथि पर पढ़ें केदारनाथ अग्रवाल की चुनिंदा कविताएं

hindi literature Read selected poems of Kedarnath Agarwal on his death anniversary : आज प्रगतिशील काव्यधारा के प्रमुख कवि केदारनाथ अग्रवाल की पुण्यतिथि है. हे मेरी तुम, फूल नहीं रंग बोलते हैं, युग की गंगा, पंख और पतवार, गुलमेंहदी, बोलेबोल अबोल, अपूर्वा, जमुन जल तुम, मार प्यार की थापें जैसे कविता संग्रह में केदारनाथ अग्रवाल ने कई यादगार कविताएं पाठकों को दी हैं.

By दिल्ली ब्यूरो | June 22, 2020 5:07 PM

आज प्रगतिशील काव्यधारा के प्रमुख कवि केदारनाथ अग्रवाल की पुण्यतिथि है. हे मेरी तुम, फूल नहीं रंग बोलते हैं, युग की गंगा, पंख और पतवार, गुलमेंहदी, बोलेबोल अबोल, अपूर्वा, जमुन जल तुम, मार प्यार की थापें जैसे कविता संग्रह में केदारनाथ अग्रवाल ने कई यादगार कविताएं पाठकों को दी हैं. पाब्लो नेरूदा समेत दुनिया के कई कवियों की कविताओं का अनुवाद भी किया, जिसे देश-देश की कविताएं संग्रह में संकलित किया गया है. पढ़िए उनकी कुछ चुनिंदा कविताएं…

कनबहरे

कोई नहीं सुनता

झरी पत्तियों की झिरझिरी

न पत्तियों के पिता पेड़

न पेड़ों के मूलाधार पहाड़

न आग का दौड़ता प्रकाश

न समय का उड़ता शाश्वत विहंग

न सिंधु का अतल जल-ज्वार

सब हैं –

सब एक दूसरे से अधिक

कनबहरे,

अपने आप में बंद, ठहरे.

अक्षम हूं मैं

आतंकित करता है मुझे मेरा सम्मान

इसी वक्त तो परास्त करती हैं मुझे

मेरी कमजोरियां.

कांपता हूं मैं, यश की विभूति से विभूषित,

रक्त-चंदन का टीका भाल पर लगाये,

पुष्पमाल के रूप में

सर्पमाल को लटकाये

अक्षम हूं मैं असमर्थताओं का पुतला,

गौरव-गुन-हीन, अबलीन, धुंधला,

काल-पीड़ित कविता में

बहुत-बहुत दुबला

रहने दो बंधु !

मुझे रहने दो अवहेलित,

जीने दो जीवन को तापित औ’ परितापित,

निष्कलंक रह लूंगा

चाहे रहूं अवमानित.

भेड़िये-सा

भेड़िये-सा

भंयकर हो गया है

यथार्थ

न कोई बचाव

न कोई सुझाव

मौत को पढ़ रही है जिंदगी

मौत को पढ़ रही है जिंदगी

जो मर गयी है

अमरीकी अनाज पा कर

कर्ज़ का जाज बजा कर

मशाल का बेटा धुआं

मशाल का बेटा धुआं,

गर्व से गगन में गया,

शून्य में खोया

कोई नहीं रोया.

मशाल की बेटी आग

यहीं धरती पर रही,

चूल्हे में आई

नसों में समाई.

अंधकार में खड़े हैं

अंधकार में खड़े हैं

प्रकाश के प्रौढ़ स्तंभ

एक नहीं, हज़ार

इस पार–उस पार

कुएं के मौन में डूबे स्तब्ध,

भूल में भूली नदी,

हंस की चोंच में दबी

आकाश में चली जा रही है उड़ी

न जाने कहां–न जाने कहां,

रुई ओटती है दुनिया

स्वप्न देखती है झुनिया.

Posted By : Rajneesh Anand

Next Article

Exit mobile version