पुस्तक समीक्षा : इनसाइक्लोपीडिया की तरह है फिल्मी गीतों का सफर

परदे के पीछे रहकर काम करने वाले नामचीन गीतकारों के हिस्से गायकों और संगीतकारों की बनिस्पत कम ही प्रसिद्धि आयी

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 11, 2022 5:46 PM

1931 में रिलीज हुई पहली बोलती फिल्म आलम आरा के पहले गीत “दे दे खुदा के नाम पर” से आज 2021 के अंत तक इन 90 वर्षों में हिंदी फिल्मों के गीतों ने लंबा सफर तय किया है. इस दौरान हिंदी फिल्म इंडस्ट्री पर, गायकों पर संगीतकारों पर अभिनेत्रियों पर काफी आलेख लिखे गए, इंटरव्यू लिए गए, किताबें लिखी गयीं. जो ख्याति की तेज चकाचौंध में कहीं पीछे छूट गए, वे थे फिल्मों के गीतकार.

गीतकारों पर लिखी गयी है किताब

परदे के पीछे रहकर काम करने वाले नामचीन गीतकारों के हिस्से गायकों और संगीतकारों की बनिस्पत कम ही प्रसिद्धि आयी. रांची के रहने वाले वरिष्ठ मीडिया कर्मी नवीन शर्मा की किताब फिल्मी गीतों का सफर हिंदी फिल्म के गीतकारों पर एक बहुत बड़ी कमी को पूरा करने का प्रयास करती है.

सुकून देने वाली है किताब

सच कहा जाए तो भारतीय सिनेमा की विशिष्ट पहचान इसके गीत संगीत को लेकर ही है. फिल्मों से इतर हिंदी फिल्मों के गीत संगीत ने अपनी स्वतंत्र पहचान बनाई है. फिल्में जेहन से उतर गयी हैं, गीत याद रह गए हैं , ऐसे कितने ही उदाहरण हैं. देशभक्ति, प्रेम, विरह, स्नेह, क्रोध कितने ही रंगों को हमारे इन गीतों ने समेटा है. इंद्रधनुषी रंगों में रंगे हमारे जीवन के अभिन्न अंग इन गीतों के गीतकारों पर लिखी ये किताब हिंदी फिल्म प्रेमियों को सुकून देगी.

किताब में हैं कई जानकारी

90 वर्षों के फ़िल्मी गीतों के सफर को समेटे किताब दो सौ से अधिक गीतकारों के बारे में विस्तार से बहुमूल्य जानकारी देती है. लेखक ने ऐसे भी गीतों का जिक्र किया है, जिन्हें दो गीतकारों ने मिलकर लिखा है. मसलन 1951 की फिल्म फुटपाथ की ग़ज़ल ‘शाम ए गम की कसम’ मज़रूह और सरदार जाफरी की जुगलबंदी का कमाल थी.

बस कंडक्टर से सबसे फेमस टाइटल सांग राइटर बने हसरत जयपुरी

किताब में गीतकारों के कई पहलुओं को श्रमसाध्य शोध के पश्चात पाठकों के सामने लाया गया है. मसलन, हसरत जयपुरी ने बस कंडक्टर से बॉलीवुड के सबसे फेमस टाइटल सांग राइटर तक की यात्रा की.

साहिर ने गीतकारों को दिलाया मुकाम

साहिर अपने गीत के लिए लता मंगेशकर को मिलने वाले पारिश्रमिक से एक रुपया अधिक लेते थे. साहिर वे पहले गीतकार थे जिन्हें अपने गाने के लिए रॉयल्टी मिलती थी. वे पहले शायर थे जिन्होंने संगीतकारों को अपने पहले से लिखे शेरों और नज़्मों को संगीतबद्ध करने को मज़बूर किया. इनकी मांग पर ही आल इंडिया रेडियो पर गीतकारों का नाम आने लगा.

पंडित नरेंद्र शर्मा ने विविध भारती सेवा शुरू कराई

गीतकार पंडित नरेंद्र शर्मा ने विविध भारती के कई कार्यक्रमों के नाम जैसे छाया गीत, हवा महल और चित्रहार आदि नाम सुझाये थे. देविका रानी की अंतिम फिल्म हमारी बात (1943) नरेंद्र शर्मा की बतौर गीतकार पहली फिल्म थी. भाभी की चूड़ियां फिल्म में इनके लिखे गीत ज्योति कलश छलके को लता मंगेशकर ने अपने सबसे प्रिय गानों में एक बताया था. बी आर चोपड़ा के महाभारत सीरियल का टाइटल सांग अथ श्री महाभारत कथा नरेंद्र शर्मा ने ही लिखा था.

मज़रूह सुलतान गीतकार बनने से पहले हक़ीम थे

मज़रूह सुलतान गीतकार बनने से पहले यूनानी दवाओं के हक़ीम थे. शाहजहां फिल्म में इनका लिखा गीत ‘जब दिल ही टूट गया” केएल सहगल का सबसे प्रिय था. शकील बदायूंनी ने सबसे पहले फिल्म फेयर की हैटट्रिक बनाई शकील बदायूंनी वे अनोखे गीतकार और शायर रहे जिन्होंने सबसे पहले फिल्म फेयर की हैटट्रिक लगाई.

फ़िल्मी गीतकारों पर एक इनसाइक्लोपीडिया

पांच सौ पन्नों में फैली किताब फ़िल्मी गीतकारों पर एक इनसाइक्लोपीडिया की तरह है. विभिन्न प्लेटफार्म पर फैली हुई सामग्री को जुटाकर उनका विश्लेषण पढ़ते हुए लेखक की मेहनत साफ़ परिलक्षित होती है. आने वाले समय में फ़िल्मी गीतकारों पर लिखी जाने वाली किताबों के लिए ये किताब सन्दर्भ ग्रन्थ का काम करेगी. हिंदी में ऐसी एक किताब की लम्बे समय से जरूरत महसूस की जा रही थी जिसे नवीन शर्मा ने पूरा किया.

-बालेंदुशेखर मंगलमूर्ति-

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