जयंती चार मार्च पर विशेष : फणीश्वर नाथ रेणु का कथा-संसार कई रहस्यों को खोलता है…

– ध्रुव गुप्त- हिंदी के कालजयी कथाकार स्वर्गीय फणीश्वर नाथ रेणु को पहला आंचलिक कथाकार माना जाता है. हिंदी कहानी में देशज समाज की स्थापना का श्रेय उन्हें प्राप्त है. उनके उपन्यास ‘मैला आंचल’, ‘परती परिकथा’ और उनकी दर्जनों कहानियों के पात्रों की जीवंतता, सरलता, निश्छलता और सहज अनुराग हिंदी कथा साहित्य में संभवतः पहली […]

By Prabhat Khabar Print Desk | March 4, 2019 11:02 AM

– ध्रुव गुप्त-

हिंदी के कालजयी कथाकार स्वर्गीय फणीश्वर नाथ रेणु को पहला आंचलिक कथाकार माना जाता है. हिंदी कहानी में देशज समाज की स्थापना का श्रेय उन्हें प्राप्त है. उनके उपन्यास ‘मैला आंचल’, ‘परती परिकथा’ और उनकी दर्जनों कहानियों के पात्रों की जीवंतता, सरलता, निश्छलता और सहज अनुराग हिंदी कथा साहित्य में संभवतः पहली बार घटित हुआ था. हिंदी कहानी में पहली बार लगा कि शब्दों से सिनेमा की तरह दृश्यों को जीवंत भी किया जा सकता है.

उन्होंने लोकगीत, लय-ताल, ढोल-खंजड़ी, लोकनृत्य, लोकनाटक, मिथक, लोक विश्वास और किंवदंतियों के सहारे बिहार के कोशी अंचल की जो संगीतमय और जीती जागती तस्वीर खींची है, उससे गुज़रना एक बिल्कुल अलग-सा अनुभव है. रेणु प्रेमचंद से आगे के कथाकार हैं. प्रेमचंद में गांव का यथार्थ है, रेणु में गांव का संगीत. प्रेमचंद को पढ़ने के बाद हैरानी होती है कि इतनी विपरीत परिस्थितियों में भी किसान अपने गांव और अपने खेत से बंधा कैसे रह जाता है.

रेणु का कथा-संसार यह रहस्य खोलता है कि जीवन से मरण तक गांव के घर-घर से उठता संगीत और मानवीय संवेदनाओं की वह नाज़ुक डोर ही है जो लोगों में अपनी मिट्टी के प्रति असीम अनुराग पैदा करती है. उनकी कहानी ‘मारे गए गुलफाम’ पर गीतकार शैलेन्द्र द्वारा निर्मित, बासु भट्टाचार्य निर्देशित और राज कपूर-वहीदा रहमान अभिनीत फिल्म ‘तीसरी कसम’ को हिंदी सिनेमा का मीलस्तंभ माना जाता है.

Next Article

Exit mobile version