शरतचंद्र जिन्होंने अपनी रचनाओं में नारी को इंसान के रूप में जगह दी और माना सतीत्व ही मर्म नहीं जीवन का

साहित्य जगत में महिला अधिकारों की बात करने वाले साहित्यकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय की आज पुण्यतिथि है. उन्होंने इस बात को स्थापित किया कि सतीत्व ही एक नारी के जीवन का मर्म नहीं है. अपने लेखन से शरतचंद्र ने बांग्ला साहित्य को नयी दिशा दी. शरत की नायिकाएं मुखर हैं. शरत चंद्र ने नारी मन को […]

By Prabhat Khabar Print Desk | January 16, 2019 11:57 AM

साहित्य जगत में महिला अधिकारों की बात करने वाले साहित्यकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय की आज पुण्यतिथि है. उन्होंने इस बात को स्थापित किया कि सतीत्व ही एक नारी के जीवन का मर्म नहीं है. अपने लेखन से शरतचंद्र ने बांग्ला साहित्य को नयी दिशा दी. शरत की नायिकाएं मुखर हैं.

शरत चंद्र ने नारी मन को बखूबी समझा और उसे अपने लेखन में उकेरा. उन्होंने स्त्री शिक्षा और उसके अधिकारों की बात कही. शरत चंद्र यह कहा करते थे कि औरतों को हमने इंसान बनने ही नहीं दिया, केवल औरत बनाकर रख दिया है. यही कारण है कि उनके लेखन में स्त्री प्रगतिशील सोच रखती है. वह सतीत्व को पकड़कर नहीं बैठी रहती.

शरतचंद्र का जन्म हुगली जिले के देवानंदपुर में हुआ. वे अपने माता-पिता की नौ संतानों में से एक थे. अठारह साल की अवस्था में उन्होंने इंट्रेंस पास किया. इन्हीं दिनों उन्होंने "बासा" (घर) नाम से एक उपन्यास लिख डाला, पर यह रचना प्रकाशित नहीं हुई. उनपर रवींद्रनाथ ठाकुर और बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय का सर्वाधिक प्रभाव था. रोजगार के लिए वे म्यांमार गये और वहां काम किया, वहां से लौटने के बाद उन्होंने प्रसिद्ध उपन्यास श्रीकांत लिखना शुरू किया.

उनका उपन्यास ‘देवदास’ काफी चर्चित हुआ, हालांकि इसे शरतचंद्र की सबसे कमजोर रचनाओं में से एक माना जाता है. उनकी जीवनी विष्णु प्रभाकर ने आवारा मसीहा के नाम से लिखी है, जो काफी चर्चित है. प्रसिद्ध रचनाएं : परिणीता, देवदास,चरित्रहीन,श्रीकांत,गृहदाह, शेष प्रश्न इत्यादि हैं.

Next Article

Exit mobile version