प्रेमी मन के कोमलतम भावों को छूतीं कविताएं

पुस्तक समीक्षा : मन हुआ पलाश समीक्षक : कलावंती संपर्क :kalawanti2@gmail.com रश्मि शर्मा का दूसरा काव्य संग्रह है- ‘मन हुआ पलाश’. रश्मि सुकुमार भावों की कवियित्री हैं. मन के कोमलतम भावों को उन्होंने बहुत सहजता से शब्द दिये हैं. कहीं वह समर्पित प्रेमिका हैं, जो अपने प्रिय से अलग अपना कोई अस्तित्व नहीं मानतीं, तो […]

By Prabhat Khabar Print Desk | September 5, 2017 1:37 PM

पुस्तक समीक्षा : मन हुआ पलाश

समीक्षक : कलावंती
संपर्क :kalawanti2@gmail.com

रश्मि शर्मा का दूसरा काव्य संग्रह है- ‘मन हुआ पलाश’. रश्मि सुकुमार भावों की कवियित्री हैं. मन के कोमलतम भावों को उन्होंने बहुत सहजता से शब्द दिये हैं. कहीं वह समर्पित प्रेमिका हैं, जो अपने प्रिय से अलग अपना कोई अस्तित्व नहीं मानतीं, तो कहीं माननीय प्रेयसी. इस प्रेम ने सिर्फ उन्हें खुशी ही नहीं दी, बल्कि पीड़ा भी दी है . “मन पेंसिल सा है/ इन दिनों छिलता जाता है कोई / बेरहमी से उतरती हैं आत्मा की परतें/ मैं तीखी, गहरी लकीर खींचना चाहती हूं / उसके वजूद में/इस कोशिश में / टूटती जाती हूं लगातार…’’
वे अपने प्रियतम को उलाहना भी देती हैं कि उन दोनों के जीवन के लिए प्रेम की अलग-अलग कसौटियां क्यों हैं?- “उसने खींच दी है लक्ष्मण रेखा/ इस हिदायत के साथ/ कि मेरा प्रेम एक परिधि में पनपता है/जीता है और डरे ही इसके / खाद पानी हैं / जो कभी लांघी लकीर तो समझ लेना / एक अग्निपरीक्षा और होगी’’.
प्रेम का एक दूसरा नाम है पीड़ा. इससे गुजरते हुए कवयित्री को अपने स्वाभिमान के आहत होने का भी दुख सालता है. वह प्रेम तो चाहती है ,पर स्वाभिमान रक्षा के साथ- “सारी उम्मीदों को मन की निर्जीव भीत पर तंग / अपनी छाती पर / अपना ही पद प्रहार झेलती हूं, फिर मर के जिंदा होने को’’.
एक अन्य कविता की पंक्तियां हैं – “सात पहाड़, सात जन्म , सात फेरों का बंधन, एक भरोसे के टूटने पर समाप्त हो सकता है’’.
कवयित्री प्रकृति से भी गहरा जुड़ाव रखती हैं और यह बात उनकी कविताओं में भी सहज ही समझ आती है. “तो आओ न, मिलकर, हम एक ऐसी परिधि बनायें/ जिसकी शर्त हो कि इसे दोनों लांघ न पाएं / अब शर्त हो बराबर कि / सजाएं भी हों एक / या फिर / तुम उड़ो मुक्त गगन में / तो मेरे लिए भी हो सारा आकाश’’.
अधिकांश ‘मैं’ शैली में लिखी उनके ये कवितायें प्रेम के सूक्ष्मतम भावों को व्यक्त करती हैं- “ न सींचो शब्द जल से/ कि एक दिन पल्लवित-पुष्पवित हो घना तरुवर बनूंगी /है चाहत तो भर लो मुट्ठियों में /बन कपूर की पहचानी सुगंध /कहीं आस-पास ही रहूंगी’’.
पहले काव्य संग्रह के मुक़ाबले इस संग्रह की कवितायें अधिक घनीभूत भावों की रागिनियां हैं और इस नाते कवयित्री बधाई की पात्र हैं.

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