लॉकडाउन के बाद की दुनिया

पूरे देश में लागू लॉकडाउन के नीचे पिसते भारत का वह कामगार वर्ग अभी एक जानलेवा संकट से गुजर रहा है, जो काम, पैसे और भोजन के साथ ही परिवहन के किसी साधन से भी वंचित है, जो उसे उसकी जन्मभूमि तक पहुंचा दे

By गंगा नारायण | April 10, 2020 8:13 AM

गंगा नारायण रथ

पूर्व मुख्य महाप्रबंधक रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया

editor@thebillionpress.org

वुभुक्षित: किम् न करोति पापम्! अर्थात, एक भूखा व्यक्ति कोई भी पाप कर सकता है. पूरे देश में लागू लॉकडाउन के नीचे पिसते भारत का वह कामगार वर्ग अभी एक जानलेवा संकट से गुजर रहा है, जो काम, पैसे और भोजन के साथ ही परिवहन के किसी साधन से भी वंचित है, जो उसे उसकी जन्मभूमि तक पहुंचा दे. इस वर्ग को पूरे देश की सलामती के लिए अभी एक बड़ा त्याग करना पड़ रहा है. यही सही वक्त है, जब हम अपनी अर्थव्यवस्था को कुछ राहत देने की सोचें, जो कुछ मानव रचित और कुछ कोविड-19 महामारी जैसे कुदरत रचित कारकों से लड़ रही है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा देशव्यापी लॉकडाउन का फैसला भारत के इतिहास में प्रमुखता से अंकित हो सकता है, पर यदि अब भी लॉकडाउन में थोड़ी ढील देते हुए कामगार वर्ग को अपनी रोजी-रोटी कमाने के अवसर तुरंत प्रदान नहीं किये गये, तो वही इतिहास इसे एक गैरअहम जगह भी दे सकता है.

यह जरूर समझा जाना चाहिए कि एक किसान, एक छोटा कारोबारी, अखबारों का एक हॉकर, ठेले पर सामान पहुंचानेवाला और रोज दिहाड़ी कमानेवाला मजदूर अपना काम अपने घर से नहीं कर सकता है. मगर, ये सब देश के कुल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) में बड़ा योगदान करते हैं. ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि लॉकडाउन को दो हफ्तों के लिए और बढ़ाया जा सकता है, क्योंकि कई राज्यों की ऐसी ही मांग है. उनका कहना है कि ‘अभी जिंदगी बचाना ज्यादा जरूरी है, अर्थव्यवस्था को बाद में बचाया जा सकता है. ’लॉकडाउन के पूर्व के 45 दिनों में देश में लगभग 15 लाख भारतीय विदेशों से वापस आये हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन की अनुशंसाएं देखें, तो इस बीमारी के फैलाव को नियंत्रित करने में हमारी कामयाबी इस बात पर निर्भर थी कि हम इन आगंतुकों की पहचान और समयबद्ध जांच कर लेते.

साथ ही, उनमें से सभी संक्रमितों का उपचार संपन्न कर लेते. लॉकडाउन के 21 दिनों के दौरान अधिकारियों को यह भरोसा कर लेना चाहिए था कि इनमें से एक भी व्यक्ति अब कोविड-19 का संक्रमण नहीं फैला रहा है. मगर, वर्तमान परिदृश्य से भरोसे के ऐसे संकेत नहीं मिल रहे हैं. वर्तमान में हमारे पास उपलब्ध जांच किटों की सीमित संख्या और विदेशों से उनकी उपलब्धि में कठिनाई की स्थिति में क्या हम यह उम्मीद कर सकते हैं कि लॉकडाउन की अवधि में एक पखवाड़े की बढ़ोतरी कर हम यह काम संपन्न कर लेंगे?दूसरी बात यह कि लॉकडाउन भले ही देशव्यापी है, पर हरेक राज्य संक्रमित व्यक्तियों की पहचान कर उन्हें अलग-थलग करने के काम को अपनी ही रीति से कर रहा है. कुछ राज्य तो इस कार्य का जिलावार आंकड़ा भी सार्वजनिक नहीं कर रहे हैं.

अब अधिकाधिक जांच में लगातार देर होती जा रही है, इस बीमारी का संक्रमण क्रमशः अपने दूसरे चरण से तीसरे चरण में प्रवेश पाता जा रहा है. यदि लॉकडाउन की अवधि में विस्तार करना है, तो अधिकारियों को यह चाहिए कि वे इससे संबद्ध पूरे तथ्य तथा आंकड़े देश के सामने रखकर इस विस्तार का औचित्य सिद्ध करें.देश के वर्तमान और पूर्व नेताओं से विमर्श के बाद प्रधानमंत्री मोदी के फैसले ने उनके नेतृत्व गुण उजागर किये हैं. इसमें कोई शक नहीं है कि लॉकडाउन के सामाजिक और आर्थिक असर मानवीय स्मृति की किसी भी अन्य घटना की तुलना में कहीं ज्यादा होनेवाले हैं. जहां एक दिखायी न देनेवाले दुश्मन से हमारी यह लड़ाई जारी है, जरूरी यह भी है कि हम इस लड़ाई को अपने दिखनेवाले परिजनों के विरुद्ध न हो जाने दें.

देश में कामगार वर्ग के लगभग 13 करोड़ लोगों की आजीविका छीनकर राष्ट्र उनके साथ एक वास्तविक दुर्भिक्ष जैसी स्थिति पैदा होने दे रहा है. इस लड़ाई में अपना इतिहास हमें किसी नजीर, किसी सबक का फायदा नहीं दे पा रहा है. हमारे पास ऐसी कोई मार्गदर्शिका भी मौजूद नहीं है. इस अदृश्य दुश्मन से अपनी लड़ाई में हमें केवल अपनी एकजुटता और संकल्प से ही ताकत मिल सकती है. इस मर्ज की कोई दवा पाने की जुगत में लगे हमारे वैज्ञानिक और शोधकर्ता भारी दबाव में काम कर रहे हैं. पर, जब तक वे वैसा कर नहीं लेते, हम अपने ही देशवासियों को काम के उनके अधिकार से वंचित भी नहीं रख सकते. इस लॉकडाउन के बाद की दुनिया फिर पहले जैसी ही नहीं होने जा रही है.

नयी संरचनाएं, नयी प्रक्रियाएं, नये अनुशासन और उद्योगों के लिए नयी मार्गदर्शिकाएं सामने आयेंगी. हमें अपने दैनिक पेशे में सोशल डिस्टेंसिंग के साथ ही लगना होगा. सभी गैर-जरूरी यात्राएं स्थगित करनी होंगी. ट्रेनें अपनी क्षमता के आधे यात्रियों को लेकर चलानी होंगी. बाबुओं को अपने घरों से काम करना कुछ और वक्त के लिए जारी रखना होगा. ऐसे उपकरण ईजाद करने होंगे, जो नयी कार्यसंस्कृति से तालमेल कायम कर सकें.इन सभी नवाचारी प्रक्रियाओं को समर्थन देने के लिए आयकर चुकानेवाले पेंशनरों से लेकर नियमित वेतनभोगियों तक को तब तक के लिए स्वेच्छा से कुछ त्याग करने आगे आना होगा, जब तक अर्थव्यवस्था कोविड-19 पूर्व की स्थिति में नहीं लौट आती. इस तरह, आगे अभी बेशुमार संभावनाएं हैं. हम मानव को तो लॉकडाउन में रख सकते हैं, मगर मानवीयता को उससे बाहर रखना सुनिश्चितकरना ही होगा. (अनुवाद : िवजय नंदन)

Next Article

Exit mobile version