वायु प्रदूषण के लिए हम सब जिम्मेदार

Air Pollution : यह विडंबना ही है कि जब हम एक भी पल बिना सांस और बिना प्राणवायु के नहीं रह सकते, तब भी हम इसके प्रति गंभीर नहीं हैं. इसी तरह 'बिन पानी सब सून' जैसे मुहावरे से तो परिचित हैं, लेकिन वास्तविक जीवन में सच्चाई की हम कल्पना नहीं करना चाहते.

By डॉ अनिल प्रकाश जोशी | December 5, 2025 7:51 AM

Air Pollution : हमारी पारिस्थितिकी का भविष्य क्या होने वाला है, इसकी चिंता अब सबको हो जानी चाहिए. विडंबना यह है कि प्रकृति और पर्यावरण से हमने ऐसा कोई संबंध नहीं रखा, ताकि हम यह सोच सकें कि इसके बिना सब शून्य है. अगर हम अपनी कोई भी गतिविधि देखें, तो पायेंगे कि किसी न किसी रूप में ये सब प्रकृति से जुड़ी ही होती हैं. गतिविधियां चाहे शारीरिक हों, मानसिक हों या भौतिक- इन सबका सीधा संबंध वस्तुत: हमारी प्रकृति से ही है. दुर्भाग्य यह है कि हम अब आवश्यकताओं और आरामतलबी में इस तरह से घिर गये हैं कि कोई भी प्रयास या सही सोच प्रकृति और पर्यावरण के प्रति विकसित ही नहीं कर पा रहे.

यह विडंबना ही है कि जब हम एक भी पल बिना सांस और बिना प्राणवायु के नहीं रह सकते, तब भी हम इसके प्रति गंभीर नहीं हैं. इसी तरह ‘बिन पानी सब सून’ जैसे मुहावरे से तो परिचित हैं, लेकिन वास्तविक जीवन में सच्चाई की हम कल्पना नहीं करना चाहते. भोजन का ही उदाहरण लीजिए- यदि किसी तरह तीन-चार दिन भोजन न मिले, तो शरीर का सारा तंत्र बिखर जायेगा, यह हम सब जानते हैं. लेकिन इन तीनों के प्रति हम कितनी चिंता करते हैं, यह भी जान रहे हैं. इसका उत्तर किसी सरकार को नहीं देना, बल्कि हम सबको देना है, क्योंकि सरकार तो हम ही बनाते हैं. यदि हम ही चिंता नहीं करेंगे, तो यह सरकार की चिंता का हिस्सा भी नहीं बन सकता.


अब वायु प्रदूषण से संबंधित जो ताजा वैश्विक रिपोर्ट आयी है, उसमें एक बार फिर हमारी स्थिति ही सबसे बदतर पायी गयी है. दुनिया के 40 शीर्ष प्रदूषित शहरों में भारत ही आता है. यह वही ढर्रा है, जो लगातार पिछले कई वर्षों से जारी है. पिछले दशक को भी देखें, तो भारत की राजधानी और बड़े शहर अधिकांशतः सबसे प्रदूषित श्रेणी में ही दर्ज थे. हम सबकी जानकारी में यह सब कुछ है, लेकिन विडंबना यह है कि जानते हुए भी हम इस पर कभी गंभीरता से सोचते नहीं हैं. यही इसका सबसे गंभीर पहलू है. प्रदूषित हवा में मौजूद अवयव और तत्व धीमे जहर की तरह हैं, जो हर क्षण हमारे शरीर में प्रवेश करते रहते हैं, लेकिन चूंकि यह मनुष्य को सेकंडों में नहीं मारता, इसलिए हम इसकी गंभीरता को समझना ही नहीं चाहते.

मौजूदा स्थिति में सबसे बड़ा सवाल यही है कि हम आने वाले समय को कैसे देखें? या तो जो कुछ चल रहा है, उसे इसी तरह चलने दें. वैसे में, धीरे-धीरे यह दुनिया गैस चैंबर में बदल जायेगी, और फिर एक दिन हम सब के अस्तित्व पर संकट के बादल घिर जायेंगे. या फिर, यदि ऐसा लगता हो कि इस तरह की दमघोंटू स्थिति से मुक्त होना है, तो गंभीरता से सोचना होगा कि हमारे लिए बड़े कदम क्या होने चाहिए.
सबसे बड़े आश्चर्य की बात यह है कि जिन तीन महत्वपूर्ण प्राकृतिक प्रसादों से हमारा जीवन संभव था, उन्हें हमने विषाक्त कर दिया. मिट्टी विषैली हो गयी, पानी प्रदूषित हो चुका है, और हवा हमारी पकड़ से बाहर जा चुकी है. इन तीनों में भी प्राणवायु हमारे लिए विशेष महत्व रखती है, क्योंकि इसका नाम ही प्राण से शुरू होता है और इसका अर्थ भी स्पष्ट है कि बिना प्राणवायु के हम नहीं जी सकते. और उसी की हालत ऐसी हो जाये और हम तब भी भयभीत न हों, तो पूरी मानव जाति के लिए इससे बड़ा अपराध और विडंबना क्या हो सकती है?

वायु प्रदूषण के जो आंकड़े सामने आये हैं, वे चयनित शहरों और देशों के आधार पर हैं. लेकिन यदि हम पूरे देश की परिस्थिति देखें, तो इस देश का कोई भी शहर ऐसा नहीं है, जो प्रदूषण से मुक्त हो, और इनमें पीएम 2.5 की बहुत बड़ी हिस्सेदारी है. अकेले दिल्ली की ही यदि बात करें, तो इसके कई इलाकों में पीएम 2.5 का स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन की सुरक्षित सीमा से 20 गुना ज्यादा पाया गया है, जिसके कारण स्कूलों को बंद करना पड़ा है और ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान के तहत प्रतिबंध फिर से लागू करने पड़े हैं.
पीएम 2.5 कण वे हैं, जो छोटे-छोटे विषैले तत्वों से मिलकर बनते हैं, और इनमें जलकण भी होते हैं, जो इन्हें बांध कर रखते हैं. लेकिन जब ये शरीर में प्रवेश करते हैं, और लंबे समय तक ऐसी ही परिस्थितियों में व्यक्ति रहता है, तो वह कई तरह की बीमारियों का शिकार जाता है. और अगर कोई व्यक्ति पहले से ही किसी बीमारी की चपेट में है, तो यह बीमारियों को और भी बढ़ा देता है और जीवन तेजी से क्षीण होने लगता है, क्योंकि नाइट्रस ऑक्साइड, कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड- ये सभी अत्यंत घातक गैसें हैं, जो वायु को विषाक्त बनाती हैं.

इनके स्रोत भी अब अनगिनत हो चुके हैं, जैसे-बढ़ती गाड़ियों की संख्या, जगह-जगह सड़क निर्माण (क्योंकि विकास तो बढ़ना ही है), और हमारी विलासिता से जुड़े तमाम गैजेट्स और अन्य गतिविधियां. इस तरह हमारी लगभग हर गतिविधि किसी न किसी रूप में वायु प्रदूषण या अन्य प्रदूषणों का स्रोत बनती जा रही है. सरकारें अपनी तरफ से प्रयत्न करती हैं, लेकिन सबसे बड़ी बात यह है कि प्रदूषण पर अंकुश लगाना केवल सरकार के बस की बात नहीं है. प्रकृति सबकी है, इसलिए जब तक सबका व्यवहार इसकी बेहतरी की दिशा में नहीं होगा, तब सरकारें भी निरुत्तर और असहाय हो जायेंगी. यदि हम अपने व्यवहार पर नजर डालें, तो पता चलेगा कि हमने अपनी जीवनशैली ऐसी बना ली है कि यह जानते हुए भी, कि ऐसा जीवन न खुद के लिए अच्छा है, न समाज के लिए, और न ही आने वाले समय के लिए, फिर भी मौजूदा जीवनशैली से हम मुक्त नहीं हो पा रहे हैं. और लगातार हम हर तरह के प्रदूषण को बढ़ाते ही जा रहे हैं.
उधर प्रकृति की प्रतिक्रिया, जिसे हम क्लाइमेट चेंज और वैश्विक ऊष्मीकरण के रूप में जानते हैं, अपनी गति से चल रही है.

जब मनुष्य नहीं रुकेगा, तो प्रकृति भी अपने स्तर पर उत्तर देगी- और ऐसा हो भी रहा है. यदि हम पिछले पचास साल के प्रकृति संबंधी आंकड़ों का विश्लेषण करें, तो यह मानना पड़ेगा कि हम धीरे-धीरे सब कुछ खराब कर चुके हैं. मतलब स्पष्ट है. हमारे बचने की संभावना अब यही है कि जो भी हमारे हाथ में बचा है, उसे संभाल कर रख लें. अगर हमने इसी तरह जीवन जीना जारी रखा, तो हम प्रकृति के प्रकोप और उसके काल की मार से नहीं बच पायेंगे. अब भी समय है कि हम प्रकृति के प्रति गंभीर हों और तत्काल रूप से प्राणवायु तथा पानी व पेट को संबल देने वाले संसाधनों के संरक्षण को अपनी प्राथमिक चिंता में शामिल करें, तभी हमारा अस्तित्व बच पायेगा.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)