जहाज निर्माण को गति
Union Cabinet : देश के 7,500 किलोमीटर से ज्यादा लंबे समुद्र तट को देखते हुए समुद्री क्षेत्र भारत के व्यापार के लिए बहुत महत्वपूर्ण है. आज मात्रा के हिसाब से 95 प्रतिशत और मूल्य के हिसाब से 70 प्रतिशत व्यापार समुद्री मार्गों से होता है.
Union Cabinet : केंद्रीय कैबिनेट ने जहाज निर्माण, जहाज की मरम्मत, सहायक उद्योगों के विस्तार और बंदरगाह से जुड़े बुनियादी ढांचे को बढ़ावा देने के लिए 69,725 करोड़ रुपये की मंजूरी दी है, जो इस क्षेत्र में आगे बढ़ने की सरकार की प्रतिबद्धता के बारे में बताती है. भारत ने रक्षा, अंतरिक्ष और डिजिटल क्षेत्रों में आत्मनिर्भरता की ऊंचाई छुई है. अब भारत समुद्री क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की नयी पहचान बनने वाला है. भारत की समुद्री परंपरा दुनिया की सबसे प्राचीन परंपराओं में से एक रही है.
देश के 7,500 किलोमीटर से ज्यादा लंबे समुद्र तट को देखते हुए समुद्री क्षेत्र भारत के व्यापार के लिए बहुत महत्वपूर्ण है. आज मात्रा के हिसाब से 95 प्रतिशत और मूल्य के हिसाब से 70 प्रतिशत व्यापार समुद्री मार्गों से होता है. पर देश की लगभग 95 प्रतिशत समुद्री जरूरतें विदेशी जहाजों से पूरी होती हैं. इस कारण हमारी परिवहन लागत बढ़ रही है और यह हमारे सामरिक हितों के भी खिलाफ है. ऐसे में, इस निवेश का मतलब है कि भारत अपने जहाज खुद बनाकर अपनी जरूरतें पूरी करेगा. सरकार का लक्ष्य अगले दशक तक भारतीय जहाज निर्माण उद्योग को नयी ऊंचाइयों पर पहुंचाने का है.
चूंकि यह क्षेत्र विशेष कौशल और तकनीकी दक्षता की मांग करता है, ऐसे में, उम्मीद करनी चाहिए कि इस निवेश से अनेक युवाओं के लिए प्रशिक्षण और रोजगार के अवसर पैदा होंगे. भारत का जहाज निर्माण उद्योग 2022 के नौ करोड़ डॉलर से बढ़कर 2024 में 1.12 अरब अमेरिकी डॉलर का हो गया है. हालांकि वैश्विक जहाज निर्माण में भारत की हिस्सेदारी एक फीसदी से भी कम और रैंकिंग 22वीं है. अभी चीन, दक्षिण कोरिया और जापान मिलकर वैश्विक जहाज निर्माण बाजार के करीब 90 फीसदी हिस्से पर कब्जा जमाये हुए हैं.
भारत 2030 तक जहाज निर्माण में शीर्ष 10वीं वैश्विक रैंकिंग तथा 2047 तक शीर्ष पांच स्थान पर पहुंचने का लक्ष्य लेकर चल रहा है. इसके लिए 2047 तक भारत को समुद्री क्षेत्र में 885 से 940 अरब डॉलर के निवेश की जरूरत पड़ेगी. हालांकि जहाज निर्माण क्षेत्र में महाशक्ति होना आसान नहीं है. इस क्षेत्र में भारी पूंजी की जरूरत पड़ती है. फिर लंबे समय तक इस उद्योग में ज्यादा गतिविधि न होने के कारण भारतीय प्रौद्योगिकी तुलनात्मक रूप से पुरानी है और कुशल श्रमशक्ति का भी अभाव है. इसके बावजूद उम्मीद है कि सतत निवेश से भारत आने वाले वर्षों में वैश्विक जहाज निर्माण दिग्गजों की कतार में खड़ा होगा.
