सामाजिक इच्छाशक्ति जरूरी

कोरोना से बचाव के लिए एकांतवास में रखे गये कम-से-कम बीस लोग आत्महत्या कर चुके हैं. इनमें उत्तर प्रदेश के शामली के निर्माणाधीन अस्पताल में कोरेंटिन के लिए लाया गया युवक भी शामिल है और सिडनी से लौटकर सफदरजंग अस्पताल के सातवें तल से कूदकर आत्महत्या करनेवाला भी. लाइलाज कोरोना वायरस संक्रमण का अभी तक खोजा गया माकूल उपाय बस सामाजिक दूरी बनाये रखना और संदिग्ध मरीज को समाज से दूर रखना ही है. मामूली खांसी या बुखार वाला भी कोरोना से संक्रमित हो सकता है और इस बीमारी के लक्षण उभरने या खुद-ब-खुद ठीक होने में कोई चौदह दिन का समय लगता है. यह समय व्यक्ति व उसके परिवार, उसके संपर्क में आये लोगों के जीवन-मरण का प्रश्न होता है. तभी संभावित मरीज को समाज से दूर रखना ही सबसे माकूल इलाज माना गया है.

By पंकज चतुर्वेदी | May 20, 2020 12:01 PM

पंकज चतुर्वेदी

वरिष्ठ पत्रकार

delhi@prabhatkhabar.in

कोरोना से बचाव के लिए एकांतवास में रखे गये कम-से-कम बीस लोग आत्महत्या कर चुके हैं. इनमें उत्तर प्रदेश के शामली के निर्माणाधीन अस्पताल में कोरेंटिन के लिए लाया गया युवक भी शामिल है और सिडनी से लौटकर सफदरजंग अस्पताल के सातवें तल से कूदकर आत्महत्या करनेवाला भी. लाइलाज कोरोना वायरस संक्रमण का अभी तक खोजा गया माकूल उपाय बस सामाजिक दूरी बनाये रखना और संदिग्ध मरीज को समाज से दूर रखना ही है. मामूली खांसी या बुखार वाला भी कोरोना से संक्रमित हो सकता है और इस बीमारी के लक्षण उभरने या खुद-ब-खुद ठीक होने में कोई चौदह दिन का समय लगता है. यह समय व्यक्ति व उसके परिवार, उसके संपर्क में आये लोगों के जीवन-मरण का प्रश्न होता है. तभी संभावित मरीज को समाज से दूर रखना ही सबसे माकूल इलाज माना गया है.

जिस बीमारी के कारण दुनिया थम गयी हो, उसकी भयावहता से बचने के लिए कुछ दिन अलग रहने से समाज के एक वर्ग का बचना या लापरवाही बरतना व्यापक स्तर पर हानि पहुंचा सकता है. दुर्भाग्य है कि भारत में इस बीमारी के सवा सौ दिन हो रहे हैं, लेकिन अभी तक इससे जूझने के सबसे सशक्त पक्ष ‘कोरेंटिन सेंटर’ कैसा हो, उसमें कितने लोग हों, कितने दिन के लिए हों, उनका खानपान कैसा हो, इस पर कोई ध्यान नहीं दे रहा है. गाजियाबाद में 32 दिनों से कोरेंटिन सेंटर में बंद लोगों की जब कोई सुध लेने नहीं आया, तो उन्होंने अनशन शुरू कर दिया. चूंकि वहां निरुद्ध लोगों का अभी तक पुलिस सत्यापन नहीं हुआ है, इसलिए उन्हें छोड़ा नहीं जा रहा. अमरोहा में भी लोगों को एकांतवास में तीस से ज्यादा दिन हो गये हैं, लेकिन उन्हें मुक्त नहीं किया गया है. दिल्ली में भी यही हाल है.

तबलीगी जमात के लोग एक महीने से अधिक समय से क्वारंटीन में ही हैं. वृंदावन के एकांतवास केंद्र में तो तीन दिन धरना चला. वहां लोगों को बिना भोजन, सफाई व चिकित्सीय सुविधा के बंद कर दिया गया. यहां एक साथ रखे गये लोगों में वे परिवार भी हैं, जो कोरोना पॉजीटिव पाये गये. पंद्रह दिन में न तो ऐसे परिवारजनों का और न ही अन्य लोगों का परीक्षण हुआ. यदि इनमें से कोई एक भी संक्रमित होगा, तो सेंटर ही ‘हॉट स्पाॅट’ बन जायेगा. यह सेंटर एक चिकित्सा केंद्र है, लेकिन यहां स्वास्थ्यकर्मियों के स्थान पर पुलिसवाले होते हैं, जो हर बीमारी का इलाज डंडा, गाली या धमकी समझते हैं. मध्यप्रदेश के ‘वुहान’ बन गये इंदौर से 10 किलोमीटर दूर मांगलिया के छात्रावास में रखे गये करीब दौ सौ मजदूर जब भूख से बेहाल हो गये, तो पैदल ही अपने घरों को चल पड़े.

रास्ते में पकड़े जाने पर उन्हें एक जेलनुमा परिसर में बंद कर दिया गया, जहां भयंकर गंदगी और गर्मी है. खाना न के बराबर मिलता है, नहाने व हाथ धोने को साबुन-पानी नदारद है. इनमें कई गर्भवती महिलाएं और बुजुर्ग भी हैं. ये पंद्रह दिनों से यहां बंद हैं. मध्य प्रदेश के गुना जिले के एक सेंटर को देख यह साफ समझ आता है कि प्रशासन इन मजदूरों को इंसान ही नहीं समझता है. यहां स्कूल के शौचालय में एक परिवार को रहने, भोजन करने पर मजबूर किया गया है. देशभर के सेंटरों का कमोबेश यही हाल है. जो सक्षम हैं, वे अपने पैसों से होटल में एकांतवास कर रहे हैं. लेकिन उनकी भी चिकित्सीय जांच या सावधानी को लेकर कोई स्पष्ट दिशा-निर्देश नहीं हैं. ऐसी कई खबरें भी लगातार आ रही हैं कि जब पुलिस या प्रशासन बाहर से आये लोगों को एकांतवास के लिए ले जाने के लिए गयी, तो वहां बड़े स्तर पर हिंसा हुई और कर्मियों की जान पर बन आयी.

एकांतवास जैसे बेहद संवेदनशील और महत्वपूर्ण निषेध उपाय के प्रति कोताही का आलम यह है कि हर राज्य और जिले के अपने कायदे-कानून, बजट और अलग-अलग नीति व क्रियान्वयन हैं. जबकि कोरोना से जूझने के लिए इंसान के शरीर की प्रतिरोधक क्षमता का सशक्त होना तथा नियमित पौष्टिक आहार, व्यक्तिगत स्वच्छता और साफ हवा-पानी का होना अनिवार्य है. अधिकतर सेंटर इसके उलट बेहद गंदे हैं, भोजन घटिया है और स्वास्थ्य व चिकित्सा के मामले में बेहद लापरवाह हैं. कई जगह तपेदिक, त्वचा रोग जैसे संक्रामक रोगों के मरीजों को अन्य लोगों के साथ रखा गया है.

भीड़ भरे इन केंद्रों में रहकर व्यक्ति अन्य बीमारियों का शिकार भी हो सकता है. जान लें, कोरोना संक्रमण और उसके कुप्रभावों को देश-दुनिया को लंबे समय तक झेलना है. ऐसे में समाज की इच्छाशक्ति के साथ ही उसे इससे उबारा जा सकता है. जरूरी है कि केंद्र सरकार कोरेंटिन सेंटर के हर पहलू पर निर्देश जारी करे तथा बजट, नियुक्त कर्मचारी, भोजन, शौचालय, जांच व रिपोर्ट आने की समय सीमा, लोगों को वापस भेजने का समय जैसे मसलों पर एकीकृत नीति बनाये. सेंटर में रखे गये लोगों के लिए मनोवैज्ञानिक सलाह, मनोरंजन, शारीरिक श्रम, उनके रचनात्मक योगदान आदि पर ठोस निर्देश समय की अनिवार्य मांग है.

(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

Next Article

Exit mobile version