धीमी है जलवायु परिवर्तन के समाधान की गति

वैज्ञानिकों एवं तकनीकी विशेषज्ञों को पृथ्वी के प्राकृतिक तंत्रों की समझ को बेहतर करना चाहिए. सीमेंट और इस्पात के इंफ्रास्ट्रक्चर से प्रकृति के जलीय इंफ्रास्ट्रक्चर को नष्ट कर दिया गया है. पहाड़ियों को समतल बना दिया गया है तथा सड़क बनाने एवं शहर बसाने के लिए जलाशयों को पाट दिया
गया है.

By Prabhat Khabar Print Desk | May 23, 2024 10:16 PM

अरुण मैरा (पूर्व सदस्य, योजना आयोग)

जलवायु परिवर्तन का वैश्विक संकट गंभीर होता जा रहा है. वैज्ञानिक तापमान वृद्धि रोकने के लिए कार्बन उत्सर्जन घटाने पर अड़े हुए हैं. समस्या बढ़ने की तुलना में समाधान की गति धीमी है क्योंकि आधुनिक जलवायु विज्ञान एक अपूर्ण विज्ञान है. भौतिक एवं रासायनिक प्रणाली पर वैज्ञानिकों का अत्यधिक ध्यान है, जिसमें वे ऊर्जा एवं तत्वों के संचरण को बेहतर करना चाहते हैं. इसके साथ-साथ आर्थिक एवं राजनीतिक तंत्र में भी बदलाव आवश्यक है ताकि धन एवं शक्ति का संचरण बेहतर हो सके.

पिछली सदी में उत्पादकता, विकास और जीवन स्तर में बेहतरी ऊर्जा के कार्बन एवं हाइड्रोकार्बन स्रोतों पर लगातार निर्भर होती गयी. इसलिए अन्य ऊर्जा स्रोतों को खोजना और हाइड्रोकार्बन का इस्तेमाल कम करने के उपाय करना बहुत जरूरी है. उत्सर्जन घटाने के लिए जीवनशैली और उत्पादन तंत्रों में बदलाव की दरकार है. साथ ही, सौर ऊर्जा जैसे नवीनीकृत स्रोतों को अपनाया जाना चाहिए. जलीय एवं पवन ऊर्जा से भी धरती के संसाधनों का क्षरण नहीं होता. परमाणु ऊर्जा के साथ घातक कचरे के निपटान से जुड़े जोखिम हैं. हाइड्रोकार्बन ऊर्जा वातावरण में जहर घोलती है, तो परमाणु ऊर्जा सदियों तक भूमि को प्रदूषित बनाये रख सकती है.

ऊर्जा के स्वरूप में बदलाव के लिए आर्थिक संरचनाओं में बदलाव भी आवश्यक हैं. वर्तमान परिप्रेक्ष्य में जो सबसे बड़े और सर्वाधिक लाभ कमाने वाले उद्योग हैं, वे राजनीतिक रूप से भी सबसे शक्तिशाली हैं. अमेरिका जैसे देश, जिनकी जीवनशैली और उत्पादन प्रक्रिया हाइड्रोकार्बन पर आधारित हैं, बदलाव का प्रतिरोध करने में आगे हैं. विलासितापूर्ण जीवन जी रहे धनी लोगों को प्रकृति के साथ साहचर्य में रहने की तात्कालिक आवश्यकता का आभास नहीं है. वे प्रदूषण कम करने व अपने घर को ठंडा रखने के लिए और सामान खरीद सकते हैं.

उन सामानों को बनाने और चलाने के लिए भी ऊर्जा की जरूरत है. इस प्रकार, धरती और उसके वातावरण पर गरीबों की तुलना में धनी लोग कहीं अधिक दबाव बनाते हैं, जबकि सबके लिए उपलब्ध संसाधनों में सबकी न्यायपूर्ण साझेदारी होनी चाहिए. बैंकों एवं वित्तीय सेवाओं समेत सभी उद्योगों के उत्तरोत्तर निजीकरण के कारण अधिक पैसे वाले लोग सार्वजनिक नीतियों को बहुत ज्यादा प्रभावित करते हैं.

जलवायु परिवर्तन के मामले में तकनीक के चयन की शक्ति धनी निवेशकों के हाथ में है, जो इस समस्या से सबसे कम प्रभावित हैं तथा उनकी मुख्य चिंता निवेश की कमाई से जुड़ी होती है. इस तरह संपत्ति का प्रवाह शीर्ष की ओर बना रहता है. धनी और धनी हो रहे हैं, आर्थिक विषमता बढ़ती जा रही है. इससे जलवायु परिवर्तन का समुचित समाधान खोजने में और भी देरी हो रही है.

कार्बन कटौती पर केंद्रित वैज्ञानिक समझ संकीर्ण है, इसका विस्तार किया जाना चाहिए. पहला विस्तार तत्वों एवं ऊर्जा के संबंध में होना चाहिए. इस जलवायु मॉडल में पृथ्वी पर विभिन्न रूपों में प्रवाहित हो रहे जल का महत्व बहुत अधिक होना चाहिए. इस सदी में जलवायु विज्ञान एवं नीति में कार्बन के केंद्रीय चिंता बनने से बहुत पहले से अरबों लोग पानी की कमी और जल प्रदूषण से जूझ रहे हैं. दूसरी बात यह है कि समाधान सुझाने से पहले वैज्ञानिकों एवं तकनीकी विशेषज्ञों को पृथ्वी के प्राकृतिक तंत्रों की समझ को बेहतर करना चाहिए. सीमेंट और इस्पात के इंफ्रास्ट्रक्चर से प्रकृति के जलीय इंफ्रास्ट्रक्चर को नष्ट कर दिया गया है.

पहाड़ियों को समतल बना दिया गया है तथा सड़क बनाने एवं शहर बसाने के लिए जलाशयों को पाट दिया गया है. कथित वैज्ञानिक तरीके से पानी के भंडारण और बहाव के प्रबंधन के लिए बड़े-बड़े बांध बना दिये गये हैं. पर्यावरण पर इनका गंभीर असर पड़ा है. जब प्राकृतिक इंफ्रास्ट्रक्चर की जगह मानव-निर्मित इंफ्रास्ट्रक्चर स्थापित किया जाता है, तब जीडीपी बढ़ जाती है. लेकिन जीवन के बने रहने की स्थिति कमतर हो जाती है. तीसरी बात यह है कि वैश्विक जलवायु समस्या के समाधान के लिए स्थानीय समुदायों द्वारा विकसित और लागू होने वाले समाधान की आवश्यकता है. हर जगह पर्यावरण की समस्याएं जीवनयापन और आर्थिक समस्याओं से जुड़ी हुई हैं, पर इनके रूप अलग-अलग हैं. इसलिए कोई एक समाधान हर जगह लागू नहीं हो सकता है.

चौथी अहम बात यह है कि जो अपनी मेहनत से धन पैदा करते हैं, उनके पास ही उसका संग्रहण होना चाहिए, न कि उसे बाहरी निवेशकों के हाथ में दे देना चाहिए. निवेशक अधिकांश धन वित्तीय कारोबारों में निवेश करते हैं. जलवायु परिवर्तन जैसी मानवीय अस्तित्व से जुड़ी समस्या के समुचित समाधान के लिए आवश्यक है कि राजनीतिक शक्ति के स्वरूप में उल्लेखनीय बदलाव हो.

तकनीकी रूप से आकर्षक और निवेशकों को लाभ पहुंचाने वाले जलवायु समाधान सत्ता के स्वरूप में बदलाव नहीं ला सकते हैं. समाज के निचले तल के लोगों के पास अधिक धन और शक्ति होना आवश्यक है. आर्थिक उद्यम के सहकारी रूपों, जिनमें स्थानीय उत्पादक मालिक भी होता है, को अपनाया जाना चाहिए ताकि स्थानीय स्तर पर धन का संचरण और समुदाय के लाभ के लिए उसका पुनर्निवेश सुनिश्चित किया जा सके.

(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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