चीन से दूरी

अरुणाचल प्रदेश से लेकर लद्दाख तक चीन ने जो हरकत की है, उसने देश के भीतर उसकी साख और देश की नजर में उसके भरोसे को कमोबेश खत्म कर दिया है.

By संपादकीय | September 7, 2020 3:11 AM

वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीनी आक्रामकता ने द्विपक्षीय संबंधों के बारे में पुनर्विचार के लिए भारत को विवश कर दिया है. भले ही वर्तमान तनाव सीमा विवाद और अतिक्रमण से संबंधित है, किंतु चीन आर्थिक मोर्चे पर भी भारत को घाटा पहुंचाने पर आमादा है. सस्ते और निम्न गुणवत्ता की वस्तुओं से हमारे बाजार को पाट कर उसने न केवल घरेलू उद्योग-धंधों को कमजोर किया है, बल्कि वह भारत से लगातार भारी कमाई भी करता रहा है.

इसके अलावा उसका एक दांव डिजिटल एप के रूप में हमारे सामने है, जिनके जरिये वह उपभोक्ताओं के डेटा और अन्य सूचनाओं को हासिल कर रहा है. इसी वजह से भारत सरकार ने कई एप पर पाबंदी लगायी है ताकि अपने साइबरस्पेस की सुरक्षा सुनिश्चित हो सके. इस कार्रवाई को लेकर अनेक लोग यह अंदेशा जता रहे हैं कि इससे चीन को न तो सबक सिखाया जा सकता है और न ही कोई और फायदा उठाया जा सकता है. हमें यह समझना होगा कि यह कार्रवाई चीन के विरोध में शुरुआती पहलकदमी है.

दोनों देशों के बीच जो व्यापारिक और तकनीकी आदान-प्रदान कायम है, उसे झटके में बंद नहीं किया जा सकता है. चीन पर आर्थिक निर्भरता को सिलसिलेवार ढंग से ही कम करना व्यावहारिक तरीका है. इस सिलसिले में शुरुआत तकनीक के क्षेत्र से ही करनी होगी क्योंकि चीन के पास अत्याधुनिक तकनीक है और करोड़ों भारतीय उपयोगकर्ताओं के मोबाइल फोन और कंप्यूटर तक उसकी सीधी पहुंच हमें कभी भी मुश्किल में डाल सकती है.

अभी तक वह डेटा और मुनाफा तो कमा ही रहा था. हैकिंग और डेटा सेंधमारी नयी दुनिया में युद्ध के ही एक रूप हैं. भारत साइबर धोखाधड़ी और डेटा चोरी का अक्सर निशाना भी बनता रहा है. जांच में साफ संकेत मिले हैं कि अधिकतर साइबर हमले सीमा पार या अन्य देशों से संचालित होते हैं. एप पर पाबंदी से चीन जाती नगदी पर भी कुछ रोक लगेगी और देश के भीतर डिजिटल कारोबार को बढ़ने के मौके मिलेंगे.

पहले चरण की रोक के बाद से भारत में बने कई एप बाजार में आ गये हैं और लोग उन्हें उत्साह से अपना रहे हैं. अरुणाचल प्रदेश से लेकर लद्दाख तक चीन ने जो हरकत की है, उसने देश के भीतर उसकी साख और देश की नजर में उसके भरोसे को कमोबेश खत्म कर दिया है. चीनी सरकार और सेना के अधिकारियों के बयान और तेवर यही संकेत कर रहे हैं कि उसके रवैये में तात्कालिक सुधार नहीं होगा.

ऐसी स्थिति में भारत को उसके साथ व्यापारिक लेन-देन को लेकर ठोस फैसला करने के अलावा कोई विकल्प भी नहीं है. एप के बाद कम जरूरी या देश में उपलब्ध वस्तुओं के आयात को हतोत्साहित करने की प्रक्रिया भी शुरू हो चुकी है. इस प्रकार बहुत जल्दी चीन पर हमारी निर्भरता बहुत कम हो जायेगी, जो देश के विकास और सुरक्षा के लिए बहुत जरूरी है.

posted by : sameer oraon

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