भारत–चीन संबंध में नयी गरमाहट

india-china-relations : इस दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि सीमा पर शांति और स्थिरता भारत-चीन संबंधों के लिए 'बीमा पॉलिसी' हैं. यह उपमा गहरी थी- बीमा किसी आपदा को रोकता नहीं, बल्कि जोखिम को संभालने का साधन है. इसका तात्पर्य था कि मतभेद बने रह सकते हैं, पर स्थिरता का तंत्र दोनों देशों के लिए अपरिहार्य है.

By आनंद कुमार | September 3, 2025 1:04 PM

india-china-relations : शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) का तियानजिन शिखर सम्मेलन भारत की विदेश नीति और चीन के साथ उसके जटिल संबंधों के लिए एक अहम पड़ाव साबित हुआ. शिखर सम्मेलन से इतर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मुलाकात ने यह प्रतीकात्मक संदेश दिया कि वर्षों के अविश्वास के बाद भी दोनों एशियाई महाशक्तियां संबंधों में नयी गरमाहट तलाश सकती हैं. सीधी उड़ानों की बहाली, कैलाश मानसरोवर यात्रा का दोबारा शुरू होना और वीजा प्रक्रियाओं को सरल बनाना सिर्फ तकनीकी कदम नहीं थे, बल्कि भरोसा बहाल करने के लिए सावधानी से चुने गये संकेत थे.

इस दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि सीमा पर शांति और स्थिरता भारत-चीन संबंधों के लिए ‘बीमा पॉलिसी’ हैं. यह उपमा गहरी थी- बीमा किसी आपदा को रोकता नहीं, बल्कि जोखिम को संभालने का साधन है. इसका तात्पर्य था कि मतभेद बने रह सकते हैं, पर स्थिरता का तंत्र दोनों देशों के लिए अपरिहार्य है. दोनों नेताओं ने अक्तूबर, 2024 में लद्दाख में सैनिकों की वापसी में प्रगति को सकारात्मक माना और विशेष प्रतिनिधियों के बीच सीमा प्रबंधन पर बनी सहमति को स्वीकार किया. उन्होंने दोहराया कि सीमा विवाद का न्यायपूर्ण और उचित समाधान आवश्यक है.

जिनपिंग ने कहा कि भारत और चीन को अपने रिश्ते रणनीतिक और दीर्घकालिक दृष्टिकोण से देखने चाहिए. आर्थिक सहयोग भी प्रमुख विषय रहा. भारत लंबे समय से चीन के साथ बड़े व्यापार असंतुलन को लेकर चिंतित है. तियानजिन में इस मुद्दे पर सीधी बातचीत हुई. जिनपिंग ने कहा कि भारत और चीन प्रतिद्वंद्वी नहीं, बल्कि विकास में साझेदार हैं. यदि इसे व्यवहार में बदला गया, तो यह द्विपक्षीय रिश्तों के सबसे कठिन पहलुओं में बदलाव ला सकता है. सुरक्षा के मसले भी पीछे नहीं रहे.

दोनों देशों ने सीमापार आतंकवाद पर चर्चा की. सबसे अहम बात यह रही कि संयुक्त बयान में अप्रैल, 2025 के पहलगाम आतंकी हमले की निंदा की गयी. भारत के लिए यह कूटनीतिक सफलता थी. इस मुद्दे का शामिल होना दर्शाता है कि आतंकवाद विरोधी सहयोग धीरे-धीरे भारत-चीन विमर्श का हिस्सा बन रहा है. एससीओ के व्यापक परिप्रेक्ष्य में भी भारत की स्थिति मजबूत दिखी. मोदी के कड़े आतंकवाद विरोधी रुख को तियानजिन घोषणापत्र में जगह मिली. भारत के लिए यह लंबे समय से चली आ रही दोहरे मापदंड की राजनीति के खिलाफ उपलब्धि थी.

मोदी ने इस मंच पर भारत की रणनीतिक दृष्टि भी साझा की. उन्होंने कहा कि कोई भी संपर्क परियोजना संप्रभुता का सम्मान करे- यह बेल्ट एंड रोड पहल और विशेष रूप से चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे पर अप्रत्यक्ष टिप्पणी थी, जो पीओके से होकर गुजरता है. इसके स्थान पर उन्होंने चाबहार बंदरगाह और इंटरनेशनल नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर जैसे विकल्पों की वकालत की, यह दिखाने के लिए कि भारत ऐसा संपर्क चाहता है जो समावेशी हो और संप्रभुता का सम्मान करे.

यह सम्मेलन समानांतर कूटनीति का भी मंच बना. प्रधानमंत्री मोदी की मुलाकात रूसी राष्ट्रपति पुतिन के अलावा मध्य एशिया और अन्य देशों के नेताओं से हुई. पुतिन और मोदी ने अमेरिका के एकतरफा प्रतिबंधों का विरोध किया. जिनपिंग और पुतिन, दोनों ने पश्चिमी धौंसपट्टी और हस्तक्षेपवाद के खिलाफ आवाज उठायी. भारत के लिए यह संतुलन कठिन रहेगा, क्योंकि उसे अमेरिका और यूरोप से भी घनिष्ठ संबंध रखने हैं, लेकिन तियानजिन ने यह दिखाया कि वह बिना किसी गुटबंदी में फंसे रणनीतिक स्वायत्तता बनाये रख सकता है.


इस सम्मेलन ने भारत-चीन रिश्तों के पुनर्संतुलन में निर्णायक भूमिका निभायी. इसने न तो सीमा विवाद सुलझाया और न ही विश्वास की कमी मिटायी, पर इसने दिखाया कि दोनों देश व्यापक रणनीतिक और आर्थिक लाभ के लिए मतभेदों को प्रबंधित करने को तैयार हैं. मोदी, जिनपिंग और पुतिन की गर्मजोशी भरी बातचीत ने बताया कि एशियाई शक्तियां बदलते वैश्विक परिदृश्य में राह खोज रही हैं. तियानजिन घोषणापत्र में भारत और पाकिस्तान, दोनों जगह हुए आतंकी हमलों की निंदा की गयी, ईरान पर हमलों का विरोध किया गया, बहुध्रुवीय विश्व की वकालत की गयी और एकतरफा प्रतिबंधों की आलोचना की गयी.

शिखर सम्मेलन ने दिखाया कि भारत-चीन संबंधों की दिशा केवल टकराव से तय नहीं होती. भू-राजनीतिक दबाव और संरचनात्मक वास्तविकताएं कभी-कभी प्रतिद्वंद्वियों को सहयोग की ओर भी ले जाती हैं. भारत के लिए चुनौती होगी कि वह इस स्थिति का लाभ उठाते हुए अपने मूल हितों, विशेषकर संप्रभुता से समझौता न करे. चीन के लिए यह आवश्यक है कि उसकी साझेदारी और दीर्घकालिक दृष्टिकोण की बातें व्यवहार में भी दिखे. तियानजिन शिखर सम्मेलन ने भारत-चीन रिश्तों की पहेली हल नहीं की, लेकिन उसने आशावाद की एक खिड़की खोली है. जब पश्चिमी संरक्षणवाद, यूक्रेन, गाजा युद्ध तथा आतंकवाद का साया दुनिया पर छाया है, तब एशिया की इन दो महाशक्तियों का साझा आधार खोजना केवल द्विपक्षीय नहीं, वैश्विक आवश्यकता है.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)