नेपाल का स्थिरता की ओर लौटना भारत के लिए सुखद, पढ़ें प्रो एसडी का आलेख

Nepal : नेपाल की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी नेपाल कांग्रेस ने इसे संविधान का उल्लंघन बताया है और कहा है कि यह फैसला देश की लोकतांत्रिक उपलब्धियों को कमजोर करता है. जबकि वास्तविकता यह है कि नेपाल का मौजूदा राजनीतिक संकट राजनीतिक पार्टियों के भ्रष्टाचार के कारण ही यहां तक पहुंचा है.

By प्रो एसडी | September 19, 2025 6:04 AM

सुशीला कार्की को अंतरिम प्रधानमंत्री बनाये जाने के बाद नेपाल स्थिरता की ओर जाता दिख रहा है. चूंकि वे पूर्व प्रधानमंत्रियों, सेना तथा जेनरशन जी की सहमति से अंतरिम प्रधानमंत्री चुनी गयी हैं, ऐसे में, निकट भविष्य में असहमति या विवाद की आशंका नहीं है. लेकिन दो चुनौतियां जरूर हैं. एक तो राजनीतिक पार्टियों ने संसद को भंग किये जाने का विरोध किया, क्योंकि इससे फौरी तौर पर उनका महत्व खत्म हो जायेगा. वास्तविकता यह है कि नेपाल की प्रमुख राजनीतिक पार्टियों ने संसद को भंग करने के राष्ट्रपति के फैसले की कड़ी आलोचना की है.


नेपाल की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी नेपाल कांग्रेस ने इसे संविधान का उल्लंघन बताया है और कहा है कि यह फैसला देश की लोकतांत्रिक उपलब्धियों को कमजोर करता है. जबकि वास्तविकता यह है कि नेपाल का मौजूदा राजनीतिक संकट राजनीतिक पार्टियों के भ्रष्टाचार के कारण ही यहां तक पहुंचा है. युवा आंदोलनकारियों ने तमाम राजनीतिक दलों के प्रति सार्वजनिक तौर पर अपनी गहरी नाराजगी व्यक्त की. लेकिन इतनी बेइज्जती के बाद भी वे नेपाल की राजनीति में प्रासंगिक बने रहना चाहते हैं. हालांकि संसद को भंग कर देने से उनकी राजनीतिक प्रासंगिकता फिलहाल कम हो गयी है. ऐसे में, खुद को प्रासंगिक बनाये रखने के लिए वे अंतरिम सरकार को अस्थिर करने का काम करते रह सकते हैं. जबकि आंदोनकारियों ने नेपाल की राजनीतिक पार्टियों को पूरी तरह बेनकाब कर दिया है. इसके बावजूद ये नेतागण चुप बैठने वाले नहीं हैं. सुशीला कार्की की अंतरिम सरकार को सबसे बड़ी चुनौती इन राजनीतिक दलों से ही है.


दूसरी चुनौती राजशाही की ओर से है. दरअसल जेन जी के आंदोलन के बाद नेपाल में राजशाही की वापसी के कयास भी लगाये जाने लगे थे. कहा यह भी जा रहा था कि छात्र आंदोलन को राजशाही का समर्थन है. चूंकि इस आंदोलन से पहले नेपाल में राजशाही के पक्ष में जुलूस निकलते देखा गया था. इसलिए भी इस संभावना को बल मिला था. ऐसे में, जब सुशीला कार्की को अंतरिम प्रधानमंत्री बनाया गया है, तब राजशाही से जुड़े लोग स्वाभाविक ही इसे सहजता से नहीं लेंगे. इसलिए अगर आने वाले दिनों में राजशाही की तरफ से अंतरिम सरकार को अस्थिर करने की कोशिश हो, तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए.

इस बीच अंतरिम प्रधानमंत्री सुशीला कार्की ने भी अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति का परिचय दिया है. पहली बात उन्होंने यह कही है कि अंतरिम सरकार छह महीने के लिए ही है. उन्होंने साफ जताया है कि वह सत्ता से चिपकी रहने वाली नहीं हैं. दूसरे, उन्होंने नेपाल में हुई हिंसा की जांच कराने की बात कही है. इससे स्पष्ट है कि वह जेनरेशन जी को खुश करके सत्ता में नहीं रहने वालीं. युवा आंदोलनकारियों ने अंतरिम प्रधानमंत्री द्वारा चुने गये तीन मंत्रियों में से गृह मंत्री की नियुक्ति पर जिस तरह आपत्ति जतायी है, उससे लगता है कि जेनरेशन जी शायद उनके फैसलों से बहुत सहज न हो. लेकिन लगता नहीं कि इससे सरकार की स्थिरता पर कोई फर्क पड़ेगा.


जहां तक भारत की बात है, तो नेपाल में अस्थिरता भारत के लिए चिंताजनक होती है. ऐसे में, वहां की मौजूदा स्थिति भारत के लिए सकारात्मक है. वैसे यह जानने की जरूरत है कि नेपाल में जब हिंसा हो रही थी, तो उसकी जानकारी भारत को दी जा रही थी. यह जानकारी दो स्तर पर दी जा रही थी. एक तो सैन्य स्तर पर, और दूसरे राजशाही के स्तर पर. आपको पता होगा कि भारत और नेपाल के सैन्य रिश्ते बहुत पुराने हैं. इसलिए नेपाल की सेना अपने यहां के घटनाक्रमों की जानकारी भारतीय सेना को दे रही थी. नेपाल में राजशाही से जुड़ा जो तंत्र मौजूद है, उसकी तरफ से भी घटनाक्रम की निरंतर जानकारी भारत को दी जा रही थी. नेपाल में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की भी प्रभावी उपस्थिति है, और उसके नेटवर्क से भी भारत को सारी जानकारी मिल रही थी. सिर्फ आंदोलनकारी जेनरेशन जी से ही नयी दिल्ली का उस तरह का संपर्क नहीं था.


फिर वहां अब जो अंतरिम सरकार है, वह भी भारत के लिहाज से सकारात्मक है. जिन सुशीला कार्की को अंतरिम प्रधानमंत्री बनाया गया है, उनका भारत से रिश्ता रहा है. उन्होंने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से पढ़ाई की है. उनके पति दुर्गा प्रसाद सुबेदी नेपाली कांग्रेस के युवा नेता थे और जून, 1973 में नेपाल के विराटनगर से काठमांडू जा रहे रॉयल नेपाल एयरलाइंस के विमान अपहरण कांड से चर्चा में आये थे. उस मामले में चालक दल के साथ झड़प के बाद अपहर्ताओं ने विमान को फारबिसगंज में उतारने के लिए मजबूर कर दिया था. सुबेदी और अन्य को इस मामले में दो साल की सजा हुई थी और 1975 में आपातकाल के दौरान उन्हें रिहा कर दिया था. मेरा मानना यह है कि नेपाल की सेना और वहां की नौकरशाही अगर अंतरिम सरकार को पूरी तरह अपना समर्थन दें, तो अगले छह महीने तक यह सरकार आराम से चल सकती है. आगामी पांच मार्च को होने वाले चुनाव में जिस राजनीतिक पार्टी को जीत मिलेगी, उस पर नेपाल में नयी शुरुआत करने की जिम्मेदारी होगी. (ये लेखक के निजी विचार हैं.)