क्या भारत MDO के लिए पूरी तरह तैयार है?
Multi-Domain Operations : संयुक्त बहु-क्षेत्रीय सिद्धांत का जारी होना भारतीय सैन्य चिंतन में एक मील का पत्थर है. पहली बार यह औपचारिक रूप से स्वीकार किया गया है कि आने वाले युद्ध केवल खाइयों, समुद्र और आकाश में नहीं बल्कि उपग्रहों, नेटवर्कों और कथानकों (narratives) में भी लड़े जाएंगे.
-गौरव कुमार-
Multi-Domain Operations : 27 अगस्त 2025 को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने आर्मी वॉर कॉलेज, महू में आयोजित त्रि-सेवाओं के सेमिनार रण-संवाद 2025 के दौरान भारत का पहला संयुक्त बहु-क्षेत्रीय अभियान सिद्धांत (Multi-Domain Operations – MDO) जारी किया. एक 47 पृष्ठीय यह दस्तावेज, जो अब एकीकृत रक्षा स्टाफ (IDS) की वेबसाइट पर उपलब्ध है, इस बात का बड़ा संकेत है कि भारतीय सशस्त्र बल भविष्य के युद्धों को किस नज़रिए से देख रहे हैं.
संयुक्त बहु-क्षेत्रीय सिद्धांत का जारी होना भारतीय सैन्य चिंतन में एक मील का पत्थर है. पहली बार यह औपचारिक रूप से स्वीकार किया गया है कि आने वाले युद्ध केवल खाइयों, समुद्र और आकाश में नहीं बल्कि उपग्रहों, नेटवर्कों और कथानकों (narratives) में भी लड़े जाएंगे.हालांकि यह शुरुआत मात्र है. इसकी वास्तविक जरूरतों को संगठनात्मक ढांचे और दिखने वाले बदलावों में बदलने में समय लगेगा. लेकिन इतना तय है कि इसने त्रि-सेवाओं की जॉइंटनेस और भविष्य के थिएटर कमांड्स की दिशा में ध्यान केंद्रित कर दिया है. इस पर हाल के महीनों में गहन बहस भी हुई है. मुख्य रक्षा स्टाफ जनरल अनिल चौहान ने प्रस्तावना में लिखा है कि यह सिद्धांत, ‘भारतीय सशस्त्र बलों का पहला कदम है इस नए ढंग से अभियानों को परिभाषित और समझने की दिशा में. यह व्यापक तौर पर बताता है कि तीनों सेनाएं किसी भी डोमेन और युद्ध स्तर पर दुश्मन को परास्त करने के लिए किस तरह संगठन, योजना और युद्ध करेंगी.’ जारी करना महज इरादा दर्शाता है. असली चुनौती इसे संगठनात्मक क्षमता और संयुक्त ढांचे में बदलने की है.
क्यों महत्वपूर्ण है?
अमेरिका की FM 3-0, 2022 में बहु-क्षेत्रीय अभियान को परिभाषित करते हुए कहा गया है:
‘बहु-क्षेत्रीय अभियान, संयुक्त सेनाओं की विभिन्न क्षमताओं का सम्मिलित प्रयोग है, जिससे सापेक्षिक बढ़त लेकर उद्देश्यों की प्राप्ति, शत्रु बलों की हार और क्षेत्रीय नियंत्रण सुनिश्चित किया जाता है.’
यह सिद्धांत इसलिए ऐतिहासिक है क्योंकि भारतीय सेनाओं ने औपचारिक रूप से मान लिया है कि युद्ध की प्रकृति बदल चुकी है. भविष्य के संघर्ष बिना प्रत्यक्ष गोलीबारी के भी हो सकते हैं – साइबर हमले, सूचना युद्ध, और अंतरिक्ष आधारित प्रणालियों को बाधित करना उतना ही प्रभावी हथियार होगा. साथ ही, यह संज्ञानात्मक क्षेत्र (cognitive domain) को भी युद्धक्षेत्र में शामिल करता है, जहां जनमत को प्रभावित करना, कथानक पर नियंत्रण और शत्रु का मनोबल तोड़ना युद्धभूमि की गोलाबारी जितना ही निर्णायक हो सकता है.
आधिकारिक सिद्धांत में बहु-क्षेत्रीय अभियानों की दस प्रमुख विशेषताएँ गिनाई गई हैं – क्रॉस-डोमेन एकीकरण, पब्लिक-प्राइवेट सेक्टर सहयोग, क्रियाओं की समकालिकता, गतिज और गैर-गतिज प्रभावों का संगम, मिशन कमांड, डेटा-केंद्रीयता, सूचना और निर्णय श्रेष्ठता, एकीकृत कमांड एंड कंट्रोल, और परिचालन लचीलापन.इसके अलावा, इसमें छह-डोमेन ढांचे का विस्तार, कॉमन ऑल-डोमेन ऑपरेशनल पिक्चर (CADOP) और मल्टी-डोमेन ऑपरेशन्स रूम (MDOR) की स्थापना का प्रस्ताव है. साथ ही इसमें Whole-of-Nation Approach (WONA) का आह्वान किया गया है, जिसके तहत सेनाओं के साथ इसरो, डीआरडीओ, राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (NIC), विश्वविद्यालय और निजी उद्योग को जोड़ने की बात है.यह कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), बिग डेटा एनालिटिक्स, ड्रोन और सुरक्षित संचार की भूमिका को निर्णायक मानता है और साथ ही दुष्प्रचार (disinformation) के ख़तरे पर भी बल देता है.
अन्य देश क्या कर रहे हैं?
अमेरिका ने 2018 में मल्टी-डोमेन टास्क फोर्सेस (MDTFs) बनाई थीं. इनमें साइबर, अंतरिक्ष, इलेक्ट्रॉनिक युद्ध और लंबी दूरी की मारक क्षमता को सम्मिलित कर लड़ाकू इकाइयाँ तैयार की गईं. MDTF पहले ही इंडो-पैसिफ़िक में तैनात हैं और JADC2 नेटवर्क द्वारा रीयल-टाइम में सभी डोमेन्स को जोड़ते हैं.हाल ही में Talisman Sabre 2025 (ताइवान क्षेत्र) में 30,000 से अधिक सैनिकों ने भूमि, समुद्र, वायु, साइबर और अंतरिक्ष में संयुक्त बहु-क्षेत्रीय अभियान का अभ्यास किया.चीन ने बहु-क्षेत्रीय सोच को “(intelligentised warfare) के सिद्धांत में पिरो दिया है, जहाँ AI, साइबर, अंतरिक्ष और सूचना युद्ध उसकी रणनीति का मुख्य भाग हैं. बीजिंग के लिए प्रभाव अभियानों और दुष्प्रचार अभियान संघर्ष के केंद्र में हैं.भारत भी प्रयोग कर रहा है. इस वर्ष अरुणाचल प्रदेश में प्रचंड प्रहार अभ्यास में त्रि-सेवाओं ने ड्रोन, लूटेरिंग म्यूनिशन, रॉकेट सिस्टम और अंतरिक्ष आधारित निगरानी का उपयोग किया. इसी तरह सिक्किम में दिव्य दृष्टि अभ्यास में AI-संचालित सेंसर, मानव रहित हवाई प्रणाली और हाई-स्पीड संचार को कठिन पहाड़ी इलाकों में परखा गया.भारत की स्थिति अलग है. अमेरिका को महाद्वीपीय खतरे नहीं हैं. उसका मुख्य फोकस विदेशों में शक्ति-प्रक्षेपण है. भारत को एक साथ चीन और पाकिस्तान जैसे परमाणु-सशस्त्र पड़ोसियों से निपटना है, जिनके साथ लंबी और विवादित सीमाएँ साझा हैं.अमेरिका वैश्विक टास्क फोर्स प्रयोग करता है, लेकिन भारत की प्राथमिकता सीमाओं की सुरक्षा और शत्रु के साथ हाइब्रिड युद्ध का मुकाबला है.भारत को वही बदलाव अपनाने चाहिए जो हमारे भूगोल, खतरे की धारणा, चुनौतियों, संसाधनों और तकनीकी क्षमता के अनुरूप हों.
अभी भी कमी
इस सिद्धांत की सबसे बड़ी कमी है स्पष्ट समयसीमा (timelines) का अभाव. अन्य देश विस्तृत कार्यक्रम न भी बताएं, लेकिन वे अपने सिद्धांतों के साथ अल्प- और मध्यम-अवधि की योजनाएँ ज़रूर रखते हैं.भारतीय MDO में यह नहीं बताया गया कि थिएटर कमांड कब बनेंगे, AI-संचालित प्रणालियाँ कब आएंगी या MDOR कैसे आकार लेगा. यह छोटी बात नहीं है. बिना माइलस्टोन के सिद्धांत अपनी गति खो सकता है.2020 (गलवान) और 2025 (पाकिस्तान संघर्ष) के बाद हमारा MDO केवल वैचारिक नहीं रह सकता. अतीत में कोल्ड स्टार्ट डॉक्ट्रिन (2000s) भी अस्पष्ट योजनाओं के कारण अटक गया था.स्पष्ट समयसीमा सिद्धांत की ताक़त घटाती नहीं बल्कि उसे क्रियान्वयन योग्य बनाती है. लेकिन यह तभी संभव है जब सरकार बजट और प्राथमिकताओं को सिद्धांत के अनुरूप ढाले.
बहु-क्षेत्रीय अभियान मॉडल
मई में भारत-पाक संघर्ष ने दिखा दिया कि नागरिक अभिनेता, ड्रोन निर्माता, वॉलंटियर हैकर्स, AI विश्लेषक और साधारण नागरिक भी डिजिटल युद्धक्षेत्र को प्रभावित कर सकते हैं.हालाँकि साइबर और संज्ञानात्मक ख़तरों को मान्यता दी गई है, लेकिन दुष्प्रचार, हैकिंग और हाइब्रिड युद्ध का सामना करने के लिए ठोस निरोधक ढांचा (deterrence framework) अभी नहीं है.सिद्धांत प्रौद्योगिकी पर ज़ोर देता है, लेकिन यह स्पष्ट नहीं करता कि सीमित संसाधनों को किस तकनीक और क्षमता पर प्राथमिकता दी जाए. रक्षा बजट का बड़ा हिस्सा वेतन और पेंशन में जाता है, ऐसे में वास्तविक प्रश्न है – किस तकनीक में निवेश पहले किया जाए ताकि बहु-क्षेत्रीय एकीकरण सचमुच बनेआगे की राह सिद्धांत व्यापक दिशा बताते हैं, न कि विस्तृत कार्ययोजना. भारत के MDO की असली चुनौती प्रकाशन के बाद शुरू होगी – शब्दों को क्षमता और संस्थागत ढांचे में बदलना. सफलता का पैमाना सिद्धांत नहीं, बल्कि यह होगा कि क्या अधिग्रहण और सुधार से वास्तविक जॉइंटनेंस बनती है. CADOP और MDOR को वास्तविक समय के कमांड सिस्टम में बदला जाना चाहिए, जिनमें AI-सहायता प्राप्त निर्णय क्षमता हो.
हाइपरसोनिक, डायरेक्टेड-एनर्जी हथियार और स्वायत्त प्रणालियों जैसी उभरती तकनीकों में तेज़ निवेश चाहिए.भारत को केवल दुष्प्रचार का मुकाबला ही नहीं करना चाहिए, बल्कि सक्रिय रूप से कथानक और धारणाओं को गढ़ने की Offensive Cognitive Doctrine विकसित करनी चाहिए.इसरो, डीआरडीओ, IITs और निजी रक्षा स्टार्ट-अप्स को जोड़कर नवाचार का इकोसिस्टम बनाना होगा.सशस्त्र बलों पर अक्सर अलग-अलग खेमों में काम करने का आरोप लगता है. इसलिए त्रि-सेवाओं में एक समान शब्दावली का औपचारिक होना ही बड़ा कदम है.लेकिन जब तक इसे स्पष्ट ढांचों, समयसीमा और संसाधनों के साथ लागू नहीं किया जाता, यह महज़ पेपर टाइगर रह जाएगा. असली कसौटी है – क्या हम इसे क्रियान्वयन में बदल पाते हैं.
