भारत-चीन, दोनों को एक-दूसरे की जरूरत
India and China relations : वास्तव में वैश्विक स्तर पर मची उथल-पुथल के चलते भी भारत को बीते कुछ समय से ऐसा महसूस हो रहा है कि उसे अन्य विकल्पों को खुला रखने की जरूरत है, क्योंकि इस दौरान भारत पर अमेरिका का दबाव भी आया, विशेषकर कृषि और डेयरी जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्र को अमेरिका के लिए खोलने को लेकर, जिसे भारत ने अपने कारणों का हवाला देकर इनकार कर दिया.
India China relations : रविवार (26 अक्तूबर) की रात 10 बजे कोलकाता से चीन के ग्वांगझू के लिए इंडिगो एयरलाइंस के विमान के उड़ान भरते ही दोनों देशों के बीच पांच वर्षों से निलंबित सीधी हवाई सेवा की फिर से बहाली हो गयी. दोनों देशों के बीच फिर से उड़ान शुरू होने को लेकर भारत सरकार ने कहा कि इससे लोगों के बीच आपसी संपर्क बढ़ेगा और द्विपक्षीय आदान-प्रदान के सामान्यीकरण में मदद मिलेगी. विदित हो कि सीधी उड़ानों की बहाली को लेकर इस अगस्त में तियानजिन में नरेंद्र मोदी और शी जिनपिंग की बैठक के दौरान सहमति बनी थी. उस दौरान, चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने इस बात पर जोर दिया था कि चीन और भारत को अच्छे पड़ोसी, मित्र और साझेदार बनना चाहिए जो एक-दूसरे की सफलता में मदद करें. यह बताता है कि दोनों देश आपसी रिश्ते को सुधारने के लिए प्रयासरत हैं. सभी जानते हैं कि कोरोना महामारी के कारण दोनों देशों के बीच हवाई सेवा निलंबित हो गयी थी, जिसे बाद में दोनों देशों की वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर व्याप्त तनाव को देखते हुए पुन: शुरू नहीं किया गया था. यह भी महत्वपूर्ण है कि दोनों देशों ने एलएसी पर गतिरोध खत्म करने को लेकर भी बातचीत की है. ये सब सुखद संकेत है कि दोनों पड़ोसी देशों के बीच के राजनीतिक संबंधों में फिर से गर्माहट आ रही है.
यहां यह बात ध्यान देने योग्य है कि भारत और चीन के बीच राजनीतिक संबंध बीते कुछ वर्षों से भले ही बेहतर न रहे हों, पिछले दिनों जब दोनों देशों के बीच तनाव चरम पर था, तब भी दोनों के बीच के आर्थिक संबंध बेहतर ही रहे हैं. हम सब जानते हैं कि दोनों देश के बीच के राजनीतिक संबंधों में खटास का कारण भी चीन का रवैया ही रहा है, विशेषकर वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) को लेकर. चाहे वह डोकलाम हो या गलवान, यहां जो कुछ हुआ, वह सर्वविदित है. ऐसे में यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि आखिर ऐसी क्या जरूरत पड़ गयी है कि दोनों देशों ने अपने राजनीतिक संबंध को सुधारने के प्रयास तेज कर दिये हैं. इसके एक नहीं, बल्कि तीन मूलभूत कारण हैं. इस बदलती हुई विश्व राजनीति में, हाल-फिलहाल में, विशेषकर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने जिस तरीके का रवैया अख्तियार कर रखा है, उस कारण जो स्थापित विश्व व्यवस्था है, उसमें बहुत उथल-पुथल मची हुई है.
इस बदलती हुई विश्व राजनीति में बहुत अनिवार्य हो जाता है कि भारत और चीन जैसे दो बड़े देश एक साथ आयें और अपने संबंधों को विस्तारित करें. क्योंकि ये दोनों केवल एशिया के बड़े देश नहीं हैं, बल्कि विश्व स्तर पर भी बड़े देश हैं और विश्व राजनीति को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं- चाहे जनसंख्या के लिहाज से देखें, आर्थिक मामलों के लिहाज से देखें, राजनीतिक कारकों के लिहाज से देखें, चाहे रणनीतिक कारकों के लिहाज से देखें. तो यह एक बहुत महत्वपूर्ण कारक है, जिसके चलते दोनों देश एक साथ आने पर सहमत हुए हैं. दोनों ही देश विकासशील हैं और उनकी अपनी समझदारी है, जो पश्चिमी नेतृत्व वाली विश्व व्यवस्था से कई मामलों में मेल नहीं खाती है. दोनों देश चाहते हैं कि विश्व व्यवस्था का पुनर्गठन हो और उसमें उन तमाम देशों की आवाज शामिल हो, उन्हें भी मान-सम्मान मिले, जिन्हें अब तक पिछड़ा समझ कर नकारा गया है, विशेषकर वैश्विक दक्षिण के देशों को. हालांकि भारत और चीन के बीच कई मामलों में मतभेद हैं, पर इस संदर्भ में कहीं न कहीं दोनों देश अपने राजनीतिक संबंधों को सुधारने के प्रयास में जुटे हुए हैं.
वास्तव में वैश्विक स्तर पर मची उथल-पुथल के चलते भी भारत को बीते कुछ समय से ऐसा महसूस हो रहा है कि उसे अन्य विकल्पों को खुला रखने की जरूरत है, क्योंकि इस दौरान भारत पर अमेरिका का दबाव भी आया, विशेषकर कृषि और डेयरी जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्र को अमेरिका के लिए खोलने को लेकर, जिसे भारत ने अपने कारणों का हवाला देकर इनकार कर दिया. चूंकि चीन के साथ हमारे आर्थिक संबंध बेहतर हैं, इसलिए राजनीतिक संबंध को भी बेहतर करने की आवश्यकता है, इस बात को भारत समझ रहा है. मेरी समझ से केवल भारत ही ऐसा नहीं सोच रहा है, बल्कि चीन की ओर से भी यह समझ बन रही है कि वैश्विक उथल-पुथल के इस दौर में उसके लिए भारत के साथ राजनीतिक संबंधों को सुधारना जरूरी है. सो, इसके लिए भारत के साथ वह भी प्रयास कर रहा है.
एक महत्वपूर्ण कारण यह भी है कि चीन को फिलहाल यह बात समझ में आ रही है कि उसके लिए विश्व राजनीति में दिक्कतें अभी और बढ़ने वाली हैं, क्योंकि अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था में अमेरिका और चीन एक-दूसरे के प्रतिस्पर्धी हैं. चीन का जो आर्थिक विकास है, उसने जिस गति से आर्थिक विकास किया है, वह भी अमेरिका को कुछ विशेष पसंद नहीं आ रहा है, सो वह हर हाल में चीन को रोकना चाहता है, ताकि विश्व व्यवस्था में चीन उसकी जगह न ले ले. चीन इस बात को बखूबी समझ रहा है कि भारत जैसे देश को नजरअंदाज करके वह न तो नयी विश्व व्यवस्था बना सकता है, न ही मौजूदा व्यवस्था का पुनर्गठन कर सकता है. इतना ही नहीं, उसके सामने जो चुनौतियां हैं, जिनसे लड़ने का वह प्रयास कर रहा है, उनका समाधान भी भारत को दरकिनार करके संभव नहीं है. तो चीन को भी हाल-फिलहाल यह बात समझ आयी है कि भारत को वह केवल अपना प्रतिद्वंद्वी मान कर नहीं चल सकता. उसके साथ रिश्ते बेहतर करने में ही उसका लाभ है.
दुनिया में एक नये तरह की अर्थव्यवस्था भी बन रही है, उसको लेकर भी हलचल है, अनिश्चितताएं हैं. आप्रवासियों को लेकर जिस तरह दुनिया के देशों में विरोध हो रहा है, इसके साथ ही एआइ का जिस तरीके का प्रभाव दुनिया पर पड़ने वाला है, उसने भी दोनों देशों को चिंतित किया है. इन सबको देखते हुए भारत और चीन, दोनों को एक-दूसरे को सहयोग करने की आवश्यकता महसूस हो रही है. इन परिस्थितियों का सामना करने के लिए और उनका समाधान तलाशने के लिए भी भारत और चीन को एक साथ आने की आवश्यकता है. अंतिम बात, आने वाले समय में जिस तरह की अर्थव्यवस्था बनने जा रही है, उसमें सबसे बड़ी चुनौती उन्हीं देशों के सामने आने वाली है, जिनकी जनसंख्या बहुत अधिक है. तो दोनों देशों को एक साथ मिल कर सोचना होगा कि किस तरीके से वे आपसी रिश्ते में सुधार करें और मिल कर आगे बढ़ें.
(बातचीत पर आधारित)
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)
